शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. एनआरआई
  4. »
  5. एनआरआई गतिविधि
Written By ND

जीवटता और हुनर की मिसाल

जीवटता और हुनर की मिसाल -
NDND
पारिवारिक जीवन की त्रासदियाँ और रूढ़िवादी समाज के बंधन उनका रास्ता रोक नहीं सके। आज वे पाकिस्तान की सबसे सफल महिला उद्यमी हैं।

पाकिस्तान जैसे रूढ़िवादी समाज में यदि कोई महिला उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में उतरे, उसमें अपने पैर जमाए और फिर सफलता के शिखर को छू ले तो यह निश्चित ही एक विशिष्ट उपलब्धि कही जाएगी। इंदिरा सलमा अहमद इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं कि तमाम विपरीत पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियों से जूझते हुए भी एक महिला अपने जीवट और हुनर के बल पर कामयाबी की बुलंदियों को छू सकती है। वे संभवतः पाकिस्तान की पहली महिला उद्यमी हैं तथा वहाँ के महिला चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की संस्थापक अध्यक्ष हैं। अभी पिछले दिनों उनकी आत्मकथा 'कटिंग फ्री' का नई दिल्ली में विमोचन हुआ, इस कारण उनकी उपलब्धियाँ एक बार फिर चर्चा का विषय बनीं।

यूँ सलमा भारत के लिए कोई अजनबी नहीं हैं। उनका जन्म स्वतंत्रता पूर्व भारत में एक संपन्ना परिवार में हुआ तथा आरंभिक बचपन नैनीताल में गुजरा। उनकी माता के अंकल सर शफात अहमद खान 1946 में संयुक्त भारत की अंतरिम सरकार में शिक्षामंत्री थे तथा प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू के काफी करीबी थे। उन्होंने ही नेहरूजी की बेटी के नाम से प्रेरित होकर बच्ची का नाम इंदिरा सलमा रखा। बँटवारे के बाद सलमा का परिवार पाकिस्तान चला गया। किशोरावस्था तथा आरंभिक युवावस्था में सलमा का निजी जीवन जबर्दस्त उथल-पुथल वाला रहा। वे तीन बार शादीऔर तलाक के दौर से गुजरीं। पहली शादी और तलाक के वक्त तक तो वे उम्र के 20 बसंत भी नहीं देख पाई थीं। 22 की होते-होते वे जान चुकी थीं कि उनका तीसरा पति भी सामंती अहंकार और अत्याचार के मामले में पहले दो पतियों से अलग नहीं है।

इतनी कम उम्र में तमाम मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाएँ झेलने के बाद भी सलमा ने हिम्मत नहीं हारी। उनके जन्मजात विद्रोही स्वभाव ने इसकी इजाजत नहीं दी। उन्होंने अपने जीवन को नई दिशा देते हुए उद्यम की राह पकड़ी, यानी पुरुष प्रधान सामंती समाज में महिला की एक और हिमाकत! उद्योग-व्यापार का ककहरा सीखते हुए 1967 में उन्होंने अपना पहला उद्योग खड़ा किया और एप्रन तथा पलंग का निर्माण करने लगीं। उन्हें विशिष्ट सफलता तथा प्रसिद्धि तब मिली, जब उन्होंने जहाज तोड़ने के व्यवसाय में कदम रखा। ऐसा करने वाली वे विश्व की पहली महिला थीं। बाद में उन्होंने अन्य उद्योगों में भी विस्तार किया।

आर्थिक स्वतंत्रता की सीख सलमा को अपनी माँ से मिली। वे कहती हैं, 'मेरे ख्याल से किसी पुरुष से पैसा लेते वक्त प्रत्येक औरत को बुरा लगता है। हम समाज को नहीं बदल सकते और न ही हम महिलाओं को बदल सकते हैं। महिलाओं को स्वयं ही बदलना होगा।' इसी दिशा में पहल करते हुए सलमा ने महिला चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना की। वे कहती हैं, 'यह कोई महिलाओं के पृथक्कीकरण की बात नहीं है। हमें स्वायत्तता चाहिए। भारत व बांग्लादेश की महिलाएँ भी ऐसा ही महसूस करती हैं।' इसके अलावा सलमा ने महिला उद्यमियों के लिए पाकिस्तान एसोसिएशन फॉर विमेन आंत्रप्रेन्योर्स की भी स्थापना की तथा महिला उद्यमियों के अंतरराष्ट्रीय संगठन की प्रथम अध्यक्ष रहीं। उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया तथा अस्सी के दशक में संसद के लिए चुनी गईं। अपने राजनीतिक करियर के कारण उन्हें बिजनेस में जहाँ फायदा हुआ, वहीं नुकसान भी उठाना पड़ा।

पाकिस्तान में महिला उद्यमियों की प्रतिनिधि के रूप में सलमा का लगातार भारत आना-जाना लगा रहता है। उन्होंने इच्छा जताई है कि जब वे इस जहान से रुखसत लें, तो उन्हें दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के समीप दफनाया जाए। अपने जीवन में आए तमाम उतार-चढ़ावों कोलेकर उनके मन में कोई कड़वाहट नहीं है। वे इस बात पर जोर देती हैं कि हर अनुभव से कुछ सीखा-समझा जाए।