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Written By ND

इन्‍हें भी चाहिए अपना बचपन...

नेपाल की जीवित कुमारी देवी परंपरा

इन्‍हें भी चाहिए अपना बचपन... -
किसी के लिए भी वह जीवन एक सपने की तरह ही होगा, जहाँ आपके दर्शनों के लिए भीड़ हाथ जोड़े खड़ी हो, यहाँ तक कि देश के शासक भी आपको 'पूजने' आएँ, चारों ओर लोग आपकी तीमारदारी में जुटे हों, आपकी सेवा को लोग पुण्य कमाने का अवसर समझते हों। कुल मिलाकर आपका जीवन राजसी ठाठ-बाट से भरपूर हो। ये लाइनें पढ़कर शायद आप भी कल्पना-लोक के सागर में गोते लगाने लग जाएँ, लेकिन नेपाल की जीवित देवियों (कुँवारी कन्याओं) के राजसी ठाठ से जुड़े सच को जानने क़े बाद हो सकता है आपके इरादे बदलजाएँ। नेपाल में छोटी बच्चियों के देवी बनकर जीवन गुजारने के साथ कितनी पाबंदियाँ जुड़ी हैं और देवीत्व की कुर्सी से उतरने के बाद उनका जीवन किन कठिन रास्तों पर मुड़ जाता है, इसकी पड़ताल करता यह आलेख।

NDND
वह केवल 10 साल की है। कार्टून नेटवर्क का नाम सुनते ही उसका चेहरा खिल उठता है। वह च्यूइंगम, चॉकलेट्स तथा नूडल्स खाना पसंद करती है और बड़ी होकर फोटोग्राफर बनना चाहती है। उसे बैडमिंटन खेलना भी पसंद है। हर बच्चे की तरह वह भी किलकती है और पहलीनजर में उसे देखते ही उसकी बाल सुलभ निश्छलता आपको मोहने लगती है। अपने हमउम्र बच्चों की ही तरह उसकी जिज्ञासाएँ भी उसकी आँखों में चमकती रहती हैं और हर नई चीज उसे अपनी ओर आकर्षित करती है। वह एक प्रमुख नेपाली परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी लेकिन परंपरावादियों को उसके एक सहज कदम पर ऐतराज हो गया, नतीजा... उसे उस राजसी जिंदगी से बेदखली दे दी गई। हालाँकि जितनी जल्दी उसे पद से हटाया गया था उतनी ही जल्दी पुनः देवी पद पर आसीन भी कर दिया गया है। यह है नेपाल की कुमारी देवियों में से एक, काठमांडू वैली में बसे 'भक्तापुर' की देवी 'सजनी शाक्य'। पिछले दिनों खुद पर बन रही एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के प्रचार हेतु अमेरिका चले जाने के कारण उसकी 'देवी गद्दी' विवादों के घेरे में आ गई थी।

नेपाल में हिन्दू तथा बौद्ध परंपरा के तहत अबोध कुमारी कन्याओं को देवी बनाकर पूजने की प्रथा बहुत पुरानी है। इसके तहत प्राथमिक चरण में 4-7 वर्ष की (मुख्यतः शाक्य वंश की तथा गरीब घरों की) कई ऐसी बच्चियों को जिनमें मान्यता अनुसार कुल 32 लक्षण हों, चुना जाता है। इन 32 लक्षणों में स्निग्ध त्वचा, गौर वर्ण, लंबी पलकें, हिरण जैसी जाँघें, आँखों का रंग, छोटी और नम जबान, दाँतों का आकार, शरीर पर कोई किसी भी कट या चोट का निशान न होना और नेपाल नरेश तथा नेपाल देश की जन्मकुंडली के साथ देवी बनने वाली बच्ची की कुंडली का मेल खाना आदि शामिल होते हैं। इसके अलावा भी कई बातें देखी जाती हैं। फिर अंतिम चरण में देवी के साहस की परीक्षा लेने के लिए एक अँधेरे कमरे में बच्ची को ले जाया जाता है, जहाँ भैंसे के कटे सिरों और चारों तरफ फैले खून के बीच बच्ची को खड़ा किया जाता है। उसके आस-पास कई भयानक मुखौटे पहने नर्तक डरावनी आवाजें करते हुए नाचते हैं। इस दृश्य को देखकर जो बच्ची न डरे, न बेहोश हो, बिलकुल शांत रहे उसे ही देवी बनाया जाता है।

इन बच्चियों को सहज बचपन जीने देने का अधिकार देने के लिहाज से एक स्थानीय वकील 'पनदेवी महारजन' ने एक केस भी दायर किया है। बकौल पनदेवी- 'वे परंपरा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वे चाहती हैं कि इन बच्चियों को आम बच्चों वाला बचपन जीने से दूर न रखा जाए
देवी चुनने के बाद बाकायदा बच्ची को महँगे वस्त्राभूषणों से सजाकर दर्शन देने के लिए बाहर लाया जाता है। कहा जाता है कि यह देवी ईश्वरीय शक्तियों से लैस है। इसके बाद हर त्योहार पर यह जीवित कुमारी देवी राजा तथा जनता को दर्शन देने के लिए ही अपने आवास 'कुमारी घर' से बाहर आती है। त्यौहारों के अलावा न तो वह कहीं आ-जा सकती है, न ही आम बच्चों की तरह खेलकूद सकती है। उसे आमजन और कभी-कभी तो परिवार से भी दूर रखा जाता है। शेष समय उसे कुमारी घर में ही सुबह से शाम तक की पूजा-पाठ आदि की दिनचर्या में व्यस्त रखा जाता है। देवी सहित उसकी देखभाल करने वालों का भी पूरा खर्चा सरकार द्वारा उठाया जाता है तथा देवी को हर तरह की सुविधा के बीच राजसी ठाठ-बाट से रखा जाता है। यहाँ तक कि उसे अपने लिए पानी का गिलास तक खुद नहीं उठाना पड़ता। इस बीच यदि कभी देवी को शरीर पर कोई चोट या खरोंच भी आ जाए तो वह पद से हटा दी जाती है और नई देवी की खोज शुरू कर दी जाती है, ऐसा नहीं हो तो देवी तब तक पद पर रहती है, जब तक कि वह 'प्राकृतिक रूप से बालिग' न हो जाए। ऐसा होते ही उसे देवी पद से हटा दिया जाता है या फिर इसके अलावा अन्य परिस्थितियों में भी जैसा कि सजनी के साथ हुआ था।

इसके बाद शुरू होता है समस्याओं का सिलसिला। चूँकि इतने समय से देवी बनी बच्ची राजसी ऐशो-आराम की आदी हो जाती है अतः उसके लिए पुनः अपने गरीब परिवार के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाता है। वह अपने लिए खाना परोसने से लेकर बिस्तर लगाने जैसे साधारण काम तक नहीं कर पाती। यहाँ तक कि सड़क पार करने और साधारण दालों में फर्क करने जैसी साधारण चीजें भी उनके लिए एक दुःस्वप्न की तरह हो जाती हैं। इन्हें पद से मुक्ति के बाद जो पेंशन दी जाती है, वह भी ऊँट के मुँह में जीरे के समान होती है। फिर अब तक अच्छा भोजन पाती रही बच्ची अचानक उससे महरूम कर दी जाती है। अधिकांशतः बेहद कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वह आगे भी पढ़ नहीं पाती और इसी तरह जीवन बिताती है। कभी-कभार उसे स्कूल में पढ़ना तो मिल जाता है, पर वह अपने हमउम्र बच्चों से काफी पिछड़ जाती है। देवी बने रहने के दौरान भी उसकी सारी क्रियाएँ यांत्रिक ही होती हैं। वह हर काम इसलिए कर रही होती है, क्योंकि एक देवी ऐसा ही करती है चाहे उसे इसका मतलब मालूम हो या न हो। फिर साधारण जीवन में लौटने के बाद सबसे बड़ा आघात तब भी होता है जबकि उसके देवीत्व के कारण उससे कोई शादी नहीं करना चाहता। चूँकि इनमें से अधिकांश ठीक से पढ़-लिख नहीं पातीं, अतः उन्हें कोई काम भी नहीं मिल पाता।

* देवी बनने के पीछे का सबसे बड़ा कड़वा सच यह है कि देवीत्व की गद्दी से उतरने के बाद इन बच्चियों को अचानक उसी जीवन में धकेल दिया जाता है जिससे वे लाई जाती हैं। नतीजा... इनमें से अधिकांश के सामने ढेर सारी समस्याएँ पेश आती हैं।

* एक बहुत बड़ा सच यह भी है कि देवी रही इन कन्याओं से कोई भी व्यक्ति बाद में शादी करने को तैयार नहीं होता, क्योंकि यहाँ यह मान्यता है कि देवी से शादी के बाद वर ज्यादा समय जीवित नहीं रह पाता। हालाँकि अब कई पढ़े-लिखे लोगों ने बाकायदा सर्वे करके यह सिद्ध कर दिया है कि कई देवियाँ शादी के बाद अपने पति के साथ हँसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही हैं। लेकिन लोग आज भी पुरानी मान्यता के अनुसार ही चलते हैं।

* हालाँकि बेड़ियाँ टूटनी शुरू हुई हैं। इसका एक उदाहरण है पूर्व में देवी रही रशमीला शाक्य। देवी के पद से हटने के बाद पेश आई मुश्किलों ने उन्हें नया रास्ता दिखा दिया और आज वे इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक डिग्री हासिल कर चुकी हैं। वे अन्य देवियों की तरह अशिक्षित नहीं हैं और फर्राटेदार अँग्रेजी में बात करती हैं। ऐसा करने वाली वे अब तक की एकमात्र देवी हैं।

* इन बच्चियों को सहज बचपन जीने देने का अधिकार देने के लिहाज से एक स्थानीय वकील 'पनदेवी महारजन' ने एक केस भी दायर किया है। बकौल पनदेवी- 'वे परंपरा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वे चाहती हैं कि इन बच्चियों को आम बच्चों वाला बचपन जीने से दूर न रखा जाए। उदाहरण के लिए मुख्य देवी को जिस तरह उसके माता-पिता, घर और सामान्य बच्चों से दूर रखा जाता है, उस नियम को बदला जाए। उन्हें सामान्य बचपन जीने दिया जाए। साथ ही उन्हें देवी पद पर रहते हुए भी इतना सक्षम कर दिया जाए कि भविष्य का सामना करने में उन्हें परेशानी न हो।'