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Written By WD

शीतलचीनी (कबाबचीनी)

शीतलचीनी (कबाबचीनी) -
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यह काली मिर्ची जैसी होती है। इसे कच्ची अवस्था में तोड़कर सुखा लेते हैं। इसे मुंह में रखने पर जीभ पर ठंडक मालूम होती है, इसीलिए इसे शीतलचीनी भी कहते हैं।

इसका प्रचलित नाम कबाबचीनी है। यह सुगंधयुक्त होती है, अतः इसे मुंह में रखकर चबाने और चूसने से मुंह सुगन्धित हो जाता है।

यह भारत में मैसूर प्रान्त में और विदेशों में जावा, सुमात्रा, श्रीलंका आदि देशों में पैदा होती है। इसका तेल निकाला जाता है जो उड़नशील और सुगंधित होता है। यह बाजार में पंसारी या जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकान पर आसानी से मिल जाती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- कंकोलं। हिन्दी- शीतलचीनी, कबाबचीनी। मराठी- कंकोल। गुजराती- तड़मिरे, चणकबात। बंगला- कोकला, शीतलचीनी। तेलुगू- टोकामिरियालू, कबाबचीनी। तमिल- वलमिलाकू। मलयालम- चीनीमुलक। कन्नड़- गंधमेणसु, बालमेणस। फारसी- कबाबचीनी। इंग्लिश- क्यूबेब। लैटिन- पाइपर क्यूबेबा।

गुण : यह स्वाद में चरपरी, तीक्ष्ण, कड़वी, रुचिकर, मूत्रल, दीपन, पाचन, हल्की, वृष्य, ऊष्णवीर्य और हृदयरोग, कफ वात तथा अंधत्व को दूर करने वाली होती है।

रासायनिक संघटन : इसमें 5-20 प्रतिशत तेल, रालीय पदार्थ (6.4-8.5 प्रतिशत), गोंद, रंजक द्रव्य, स्थिर तेल, स्टार्च तथा नत्रजनयुक्त पदार्थ होते हैं। रालीय पदार्थ में अनेक घटक होते हैं, जिनमें क्युबेबिन, क्युबेबाल तथा क्युबेबिक अम्ल प्रमुख हैं। इसकी 100 ग्राम मात्रा से कम से कम 12-13 मि.ली. उड़नशील तेल निकलता है।

उपयोग : सुगंधित मसाले के रूप में, औषधि के रूप में, मुखलेप, उबटन में सुगंध के लिए इसका उपयोग होता है।

* कबाबचीनी का उपयोग कुछ उत्तम आयुर्वेदिक योगों में भी किया जाता है, जैसे अश्वगंधा पाक, कौंच पाक, मकरध्वज वटी, सालम पाक आदि।

पुराना सुजाक : कबाबचीनी का चूर्ण 100 ग्राम और सोडा बाईकार्ब 100 ग्राम या पिसी फिटकरी 50 ग्राम मिलाकर इस मिश्रण को 1-1 चम्मच सुबह-शाम दूध-पानी की लस्सी के साथ सेवन करना चाहिए। एक कप उबलता पानी लेकर एक चम्मच कबाबचीनी का चूर्ण डालकर ढंक दें। 15-20 मिनट बाद छानकर ठंडा कर लें। इसमें 5 बूंद चंदन तेल डालकर पीने से पेशाब खुलकर होता है और वेदना मिटती है। चाहे तो इसमें आधा चम्मच पिसी मिश्री भी डालकर पी सकते हैं।

मूत्रदाह : इसमें पेशाब थोड़ा-थोड़ा और तेज जलन के साथ होता है। पेशाब का रंग पीला हो जाता है, रात में पेशाब के लिए बार-बार उठना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सुबह-शाम आधा चम्मच कबाबचीनी का चूर्ण और पिसी मिश्री मिलाकर ठंडे पानी के साथ फांककर सेवन करें। तेज मिर्च-मसालेदार और तले पदार्थों का सेवन न करें।

बवासीर : यह चूर्ण आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम एक कप दूध के साथ सेवन करें। कब्ज न होने दें।

पुरानी खांसी : खांसी पुरानी हो, बार-बार खांसने पर थोड़ा-थोड़ा कफ निकलता रहता हो तो इस चूर्ण को दिन में तीन बार 1-1 ग्राम मात्रा में, जरा से शहद में मिलाकर चाटें। इससे कफ सरलता से निकल जाता है। धीरे-धीरे खांसी ठीक हो जाती है।

जुकाम : जुकाम होने पर इसके चूर्ण को नस्य की भांति सूंघने से आराम होता है।

मुख पाक : मुंह में छाले होने पर, मुख से दुर्गंध आने पर, जीभ पर मैली परत जमा होने पर, मुंह का स्वाद खराब होने पर कबाबचीनी के 2-2 दाने मुंह में डालकर 3-4 बार चबाते हुए चूस लिया करें। इसे पान में डालकर भी सेवन कर सकते हैं।

स्वप्नदोष : कबाबचीनी, छोटी इलायची के दाने, वंशलोचन और पिप्पल सब 10-10 ग्राम लेकर कूट-पीस लें और 40 ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर शीशी में भर लें। इस चूर्ण को सुबह-शाम आधा-आधा चम्मच, एक कप मीठे कुनकुने दूध के साथ फांक लिया करें। इससे स्वप्नदोष होना बंद होता है और वीर्य गाढ़ा भी होता है।

आवश्यकता से अधिक मात्रा में और अधिक समय तक कबाबचीनी का सेवन करने से पाचन क्रिया बिगड़ती है और त्वचा में खुजली हो सकती है, अतः इसके सेवन में अति न करें।