शीघ्र सुनवाई मौलिक अधिकार-सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मामले की शीघ्रता से सुनवाई आरोपी का मौलिक अधिकार है और कानूनी कार्यवाही में देरी कर उसे परेशानी में नहीं डाला जा सकता।चेक बाउंस के एक मामले में न्यायाधीश एसबी सिन्हा और एलएस पंटा की पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता अनिश्चितकाल के लिए मामले को निलंबित नहीं रख सकता। आरोपी एस. रामकृष्ण ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट के आरोपी के पक्ष में सुनाए गए फैसले को खारिज कर दिया था। शिकायतकर्ता एस. रामी रेड्डी ने रामकृष्ण के खिलाफ छह जून 2001 को शिकायत दर्ज की थी। अपनी शिकायत में रेड्डी ने कहा था कि उन्हें पाँच लाख का चेक जारी किया गया था, जो बैंक में बाउंस हो गया। मामले की सुनवाई के दौरान रामी रेड्डी की 10 अक्टूबर, 2003 को मौत हो गई। रेड्डी का कानूनी उत्तराधिकारी कानूनी कार्यवाही के दौरान उपस्थित हुआ।बहरहाल 18 अप्रैल 2005 और 21 जनवरी 2006 के बीच 14 बार मामलों की सुनवाई हुई, लेकिन शिकायतकर्ता की ओर से मामले में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ।मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 256 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए रामकृष्ण को बरी कर दिया। बाद में शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने 23 जनवरी 2006 को दिए अपने आदेश में आरोपी को बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला करना चाहिए न कि तकनीकी आधार पर। रामकृष्ण ने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।