गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. राष्ट्रीय
Written By WD

विकास का अर्थ है आंखों में आंसू न आए : धर्माधिकारी

'गांधी नि:शस्त्रीकरण एवं विकास' पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

विकास का अर्थ है आंखों में आंसू न आए : धर्माधिकारी -
WD
इंदौर। न्यायमूर्ति सीएस धर्माधिकारी ने कहा कि विकास का अर्थ है आंखों में आंसू न आए। उन्होंने कहा कि आज हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वे कुरीतियां हैं। आज विपत्तिशास्‍त्र की स्‍थापना हो गई है, जिससे सभी लोगों में विपरीत बुद्धि आ गई है। हमें इसके लिए रास्ता खोजना होगा और इस दकियानूसी सोच के खिलाफ बगावत करने की जरूरत है। वे तीन दिवसीय 'गांधी नि:शस्त्रीकरण एवं विकास' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन अवसर पर बोल रहे थे।

अंतिम दिन न्यायमूर्ति धर्माधिकारी के अलावा वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक, विश्व शांति संगठन के अध्यक्ष टी इक्रालिस तथा जापान से आए यासुओ ओगाथा ने महात्मा गांधी के शांति स्थापित तथा परमाणु नि:शस्त्रीकरण को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। अंतिम दिन का विषय था 'एशियन यूनियन फॉर पीस एंड डेवलपमेंट।'

धर्माधिकारी ने कहा कि गांधीजी की अहिंसा को संभालना आसान नहीं है। हमें हिंसा का डटकर सामना करना होगा। दोस्ती की बात करनी होगी। चुप रहने से कातिल को बढ़ावा मिलता है। युद्ध अपने क्षेत्रों में अपना अस्तित्‍व स्‍थापित करने का कारण है।

उन्होंने कहा कि हमें अपने पिता की कार्बन कॉपी नहीं बनना है। आज के युवा रेसीडेंट नॉन युवा हैं, क्योंकि उनकी आंखें कहीं ओर हैं और वे कहीं ओर। उन्होंने मनुष्य के जीवन, पूरी राजनीति, व्यवस्था, धर्म, कर्म, आजादी, देश तथा आर्थिक नीतियों पर भी बहुत ही कड़े शब्दों में कटाक्ष किया।

धर्माधिकारी ने कहा कि कल्चर साथ में रहने से होता है, छोड़ने से नहीं। गांधी को भगवान मत मानिए, नहीं तो हम अपना कार्य छोड़ देंगे। डिक्शनरी में प्रतिशब्द होता है, अर्थ नहीं। व्यक्ति की पहचान उसके व्यक्तित्व से होती है न कि कपड़ों से। दुनिया में रोगियों को दवा नहीं मिलती है जबकि पैसे वाले को दवा आसानी से मिल जाती है, यह हमारी विडंबना है।

पीपुल्‍स सार्क का गठन हो...आगे पढ़ें..


WD
दक्षिण एशिया शांति संगठन के सदस्‍य विजय भारती ने कहा कि मैं पिछले 30 सालों से काम कर रहा हूं। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि पीपुल्‍स सार्क का गठन हो और सार्क एक ऐसा संगठन है जिसमें केवल संबंधित देश चर्चा करते हैं और इसमें मुख्य बातें निकलकर सामने नहीं आती हैं।

उन्होंने कहा कि हमारा संगठन 2007 में शुरू हुआ जिसमें तीन सेमिनार अलग-अलग देशों में हो चुके हैं। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें समाज के लिए डिटरमाइलाइजेशन, फेडरालाइजेशन, कॉर्पोरेट कंट्रोल तथा लिब्रालाइजेशन पर कार्य हो रहा है। इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में कार्य हो रहा है। हमारी योजना है सार्क फिल्म फेडरेशन दिल्ली में शुरू करने की। हम पाकिस्तान और भारत को एकसाथ मिलाकर एक संगठन तैयार करने तथा उस पर चर्चा करने का प्रयास कर रहे हैं।

प्यार से ही हम पूरा विश्‍व जीत सकते हैं...आगे पढ़ें..


WD
फटीक प्रसाद बौद्ध, नेपाल : पावर दो तरह के होते हैं। प्यार से ही हम पूरा विश्‍व जीत सकते हैं, मगर डर से नहीं। वहीं दुनिया अपने डर से दूसरों को सता रही है। यूनियन को चाहिए कि पूरे विश्‍व को एक छतरी के नीचे लाए। एशियन यूनियन की स्थापना द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद हुई। सार्क इसके बाद से लगातार इसके लिए कार्य करता रहा है। दूसरे यूनियन को भी इसके लिए कार्य करना चाहिए।

सार्क सरकारी तंत्र के अनुसार कार्य नहीं करता है, वहीं छोटे यूनियन सरकारी तंत्र के अनुसार कार्य करते हैं। सरकार की पावर लोगों का प्यार है, यह गांधी ने कहा था। हमें गांधी के विचारों को प्यार और कम्पैशन के साथ कार्य करने की जरूरत है। शोभना राणाडे ने गांधी के विचारों के साथ कस्तूरबा गांधी संगठन, पुणे के बारे में सभा को बताया।

एडमिरल विष्‍णु भागवत : आज के समय में लव और कैम्पेशन से ही शांति स्थापित नहीं की जा सकती है। आज विश्व के कुछ देश अन्य देशों पर दबाव बनाकर अपना कार्य करना चाहते हैं और हमें खुलकर कोई कार्य नहीं करने देते। लोग सोचते हैं कि केवल आवाज उठाने से हमें सफलता हाथ लग जाएगी, तो ऐसा नहीं है। वहीं लोगों का मानना है कि सिविल सोसायटी हमें इम्पेरियलिज्म दे सकती है। यहां पर लोग गलत हैं। यह कोई बच्चों का खेल नहीं है। हमारे पास सबकुछ है, मगर कुछ भी नहीं। हम बहुत कुछ करने का प्रयास करते हैं, मगर कुछ कर नहीं पाते।

1920 से लेकर 1948 तक पूरी दुनिया ने गांधी को जाना...आगे पढ़ें..


WD
वेदप्रताप वैदिक : 1915 से पहले गांधी को कोई नहीं जानता था, लेकिन 1920 से लेकर 1948 तक पूरी दुनिया ने गांधी को जाना। उनका सपना देश की आजादी ही नहीं था बल्कि इंसान को आजाद कराने का था। उन्‍हें सत्यनिष्ठ बनाना, मनुष्य बनाना तथा पशु से अलग करना था। पूरी दुनिया गांधी के विचारों के बिना नहीं चल सकती। आज जरूरत है गांधी के बाद पूरे भारत को साथ में आकर कार्य करने की।

पहले सत्र का मंच संचालन वेबदुनिया डॉट कॉम के संपादक जयदीप कर्णिक ने किया।


आनंद मोहन माथुर ने देश के आए सभी डेलीगेट्‍स का आभार व्यक्त किया और बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों से तथा विश्व के हिस्सों से भी डेलीगेट्‍स आए हैं। सेमिनार में उपस्थित सभी संख्याओं में से 70 फीसदी युवा हैं तथा 10 विभिन्न संगठनों का सहयोग है। अब तक 3 दिनों में 70 विशेषज्ञों ने अपनी राय व्यक्त की है। इसमें 10 संस्थाओं ने सहयोग दिया।

एनपी जैन ने कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि इंदौर डेलीगेट्‍स ने मिलकर कार्य किया। हमारे जीवन में महात्मा गांधी के दर्शन की बहुत आवश्यकता है। विकास जरूरी है, मगर वह जनकेंद्रित हो और उसका लाभ जनता को मिले।

राजीव गांधी ने 1985 में परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में पहला प्रस्ताव दिया था। उनका कहना था कि कोई भी देश किसी से भेदभाव न करे और जब तक विकसित राष्ट्र इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करते, हमें लगातार इसके लिए प्रयास करते रहना चाहिए कि वे हस्ताक्षर करें कि वे निरस्त्रीकरण के पक्ष में हैं।

जब तक अमेरिका सहित अन्य राष्ट्र अपने ऊपर कंट्रोल नहीं करेंगे, हम भी कंट्रोल नहीं करेंगे। हमें गांधी के सपने को पूरा करना होगा और जनआंदोलन की आवाज को तेज करना होगा।

टी. इक्रालिस (वर्ल्‍ड पीस फाउंडेशन के अध्‍यक्ष) ने अपने संगठनों के प्रयासों की सराहना करते हुए इस सेमिनार के दौरान प्राप्त किए गए अपने अनुभवों के बारे में विस्तार से चर्चा की। यासुओ ओगाथा (जापान) ने भी अपने अनुभव बताए, खासकर मौसम और भोजन के बारे में।

आजादी को तार्किक स्तर पर ले जाने की जरूरत...आगे पढ़ें..


WD
वेदप्रताप वैदिक : जन दक्षेस (सार्क) का मतलब होता है जनता के लिए और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, जो दक्षिण एशिया में शांति स्थापित करने के लिए कार्य करता है। पहले इसमें केवल 7 देश थे, मगर 2007 में अफगानिस्तान भी इसमें शामिल हो गया तथा हमें 5 देशों को और इसमें शामिल करना है।

इन सभी देशों की संस्कृति और परंपरा एक है। भारत की आजादी को तार्किक स्तर पर ले जाने की जरूरत है। आज 100 करोड़ लोग दो वक्त की रोटी तक नहीं खा पाते। भारत से ज्यादा गरीब पाकिस्तान में हैं और उनकी हालत दयनीय और बेकार है।

आज दक्षेस कमजोर हो गया है, जरूरत है इसे और मजबूत करने की। इसके लिए हमें जन दक्षेस (सार्क) की तुरंत स्थापना करनी होगी। आज सभी एशियाई देश हमारे इस प्रस्ताव के साथ हैं। हम सभी देशों के वीजा तथा पासपोर्ट को खत्म कर सभी देशों में शांति स्थापित कर सकते हैं और एक कॉमन मार्केट तैयार कर सकते हैं और भारत को पूरे एशियाई देशों का नेतृत्‍व करना होगा। इसके साथ ही हमें कॉमन संसद बनानी होगी।

वह दृश्‍य बहुत ही अनमोल होगा, जब सभी देशों से कुछ चुने हुए प्रतिनिधि यहां आएंगे और संसद में नए तरह का कानून तैयार कर पूरी दूनिया को शांति का पाठ पढ़ाएंगे। आज हमें ह्युमन कम्युनिकेशन बढ़ाने की जरूरत है। हमें सबके दिलों में राज करना है। हमें पहले नेताओं में भेद खत्म करना होगा उसके बाद देशों में भेद खत्म होगा।