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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 20 फ़रवरी 2011 (21:00 IST)

वामपंथियों ने दिया सोनिया को धोखा

आत्मकथा में आईके गुजरात का खुलासा

वामपंथियों ने दिया सोनिया को धोखा -
FILE
यह सर्वज्ञात तथ्य है कि अप्रैल 1999 में भाजपा नीत राजग सरकार के पतन के बाद सपा नेता मुलायमसिंह के सोनिया गाँधी का खुला विरोध करने से कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावना क्षीण हो गई थी, लेकिन हकीकत यह है कि दिवंगत हरकिशनसिंह सुरजीत और वाम दलों ने उन्हें धोखा दिया था।

पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने आत्मकथा ‘मैटर्स ऑफ डिस्क्रिशन’ में कहा है कि सुरजीत और वाम दलों के कारण ही उन्हें सरकार बनाने की योजना को छोड़ना पड़ा था।

गुजराल ने अपनी आत्मकथा में कांग्रेस के भीतर ऐसे ‘तत्वों’ का उल्लेख किया है, जिन्होंने द्रमुक मंत्रियों की मौजूदगी के खिलाफ 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब जैन आयोग की रिपोर्ट में पार्टी को राजीव गाँधी हत्या मामलों से जोड़े जाने की बात सामने आई थी। संयोग से अभी केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में द्रमुख दूसरा सबसे बड़ा घटक दल है।

गुजराल (91 वर्ष) पुस्तक में अपनी चार महीने पुरानी सरकार के नवंबर 1997 में गिरने से जुड़ी घटनाओं एवं राजनीतिक गतिविधियों को विस्तृत ब्योरा पेश किया है। उनकी सरकार राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश एमसी जैन की रिपोर्ट दिल्ली की एक पत्रिका में लीक होने के बाद गिर गई थी।


पूर्व प्रधानमंत्री ने लिखा कि राजग सरकार के 17 अप्रैल को एक वोट से गिरने के बाद उन पर और रामविलास पासवान पर राजग को समर्थन देने के लिए भाजपा का काफी दबाव था। विश्वास मत हासिल करने में विफल रहे प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और भाजपा नेता जसवंतसिंह ने उन्हें काफी मनाने की कोशिश की। भाजपा ने अकाली नेता प्रकाशसिंह बादल को उनके पास भेजा और तेदेपा नेता चंद्रबाबू नायडू के जरिए उन पर दबाव बनाने की कोशिश की।

हे हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक में गुजराल ने उन महत्वपूर्ण क्षणों को याद करते हुए कहा कि उस समय सुरजीत उनके पास आए और उन्होंने सोनिया गाँधी का नाम सुझाया और अगली सरकार के गठन के लिए उन्हें प्रयास करने के लिए मनाने का प्रयास किया। सोनिया गाँधी 20 अप्रैल 1999 को मेरे आवास पर कॉफी की दावत पर आईं। उन्होंने कहा कि उनका आवास पर आना वास्तव में मेरे समर्थन प्राप्त करने के लिए शिष्टाचार भेंट थी।

गुलजार के मुताबिक उन्होंने सोनिया को स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री पद के लिए मैं उनका समर्थन करूँगा और वाम दलों में उनके मित्र अंतिम क्षणों में उनका साथ छोड़ देंगे। मैंने कहा कि उनका यह सोचना गलत होगा कि सुरजीत उनका गंभीरता से समर्थन कर रहे हैं। गुजराल ने लिखा कि वास्तव में उनकी ओर से छिपा हुआ नाम ज्योति बसु का है, जिन्हें सुरजीत ने अनिश्चितता समाप्त करने के लिए इस प्रमुख पद (प्रधानमंत्री) के लिए सामने आने के लिए समझाया था।

अपनी आत्मकथा में गुजराल ने लिखा कि 21 अप्रैल 1999 में सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति केआर नारायण से मुलाकात की और सरकार बनाने का औपचारिक दावा पेश करते हुए कहा उन्हें 271 सांसदों का समर्थन प्राप्त है और कई अन्य लोग समर्थन कर सकते हैं। सोनिया का समर्थन करने वाले मुलायमसिंह अचानक उनके मुखर विरोधी हो गए और उन्होंने मीडिया में घोषणा की कि उनकी पार्टी कांग्रेस का समर्थन नहीं करेगी।

अगली सुबह मुलायमसिंह ने ज्योति बसु का नाम आगे कर दिया और वाम दलों ने जल्दबाजी में उसका अनुमोदन कर दिया। इस समय सोनिया गांधी ने तीसरे मोर्चा की सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया।

गुजराल ने याद किया कि कुछ समय बीत जाने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि उन घटनाओं के बारे में मेरा आकलन कितना सही था। इसका उत्तर देते हुए मैंने कहा कि मैंने राजनीति के क्षेत्र में सुरजीत के साथ 50 वर्ष गुजारे हैं और कुछ चीजें आप अपने अनुभवों से सीखते हैं। (भाषा)