या तो प्रार्थना करें या फिर काम पर लग जाएं
'आप' के नेता मनीष सिसौदिया से जयदीप कर्णिक की बातचीत
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अक्टूबर को जब आम आदमी पार्टी ने अपने पूरे उम्मीदवार घोषित भी नहीं किए थे, तब आत्मविश्वास से लबरेज मनीष सिसौदिया ने दावा किया था कि उनकी पार्टी दिल्ली में 43 सीटें जीतेगी। हालांकि पार्टी 43 तो नहीं, लेकिन अपने पहले ही प्रयास में 28 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। और 20 सीटें ऐसी रहीं जहां आप के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। प्रस्तुत है 19 अक्टूबर को मनीष सिसोदिया से लिया साक्षात्कार.......
और वो काम पर लग गए हैं....आम आदमी पार्टी के नेता और अरविंद केजरीवाल के खास सिपाहसलार मनीष सिसौदिया का मानना है कि एक समय के बाद आंदोलन को चलाए रखना अप्रासंगिक हो गया था। लक्ष्य हासिल करने के लिए राजनीति की राह चुनी। आज भी अण्णा हजारे अगर हमें आशीर्वाद देते हैं चुनाव जीतने के लिए तो यह हमारे लिए बहुत ख़ुशी का दिन होगा। उन्होंने अण्णा आंदोलन और आम आदमी पार्टी से जुड़े सवालों पर खुलकर अपनी बात रखी। नोएडा की चौड़ी सड़कों से होते हुए दिल्ली के पटपड़गंज की तंग सड़कों पर पहुँचे। एक गैरेज वाले से पूछा- ये डी-59 कहाँ पड़ेगा? उसने थोड़ा समय लिया, एक-दो बार हमें देखा फिर कहा पीछे है गली में, आप आगे से घूम कर भी जा सकते हैं। हमने देखा कि आगे तो गली तंग है गाड़ी जा नहीं पाएगी। फिर उस गैरेज वाले से पूछा- भैया वो मनीष सिसौदिया जी के यहाँ जाना है, जानते हो? उसने मोटरसाइकल के पहिए से चिपका अपना सिर तपाक से उठाया और पूछा- कौन वो नेताजी? मैंने कहा- हाँ, वो ही नेताजी आम आदमी पार्टी वाले। वो एकदम से हाथ के पाने छोड़कर उठा और हमें थोड़ा पीछे तक ले गया। इशारा करते हुए बोला वो लोहे का काला दरवाजा देख रहे हैं, वहीं से ऊपर चले जाइए तीसरी मंजिल पर। वो जो बालकनी में कबूतर उड़ते हुए दिख रहे हैं ना बस वही है। और हाँ गाड़ी भी यहीं लगा दीजिए, मैं देख लूँगा। मनीष सिसौदिया का फ्लैट बाहर से भीतर तक चुनाव कार्यालय ही नज़र आता है। हम पहुँचे तो वो अपने लैपटॉप पर व्यस्त थे। दीवार पर दोनों ओर लगे व्हाइट बोर्ड चुनावी रणनीति और तैयारियों की झलक दिखा रहे थे। मैंने कहा- मनीष जी आप अब पत्रकार से पक्के राजनेता हो गए हैं, फिर गैरेज वाले का किस्सा बताया। हम सभी हँस पड़े और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।हाल ही में आपका सर्वे आया है जो कहता है कि आपकी पार्टी को 43 सीटें मिलेंगी जबकि 'सी-वोटर' और अन्य सर्वे 18 से ज्यादा सीटें नहीं बता रहे। कौन सही है?* देखिए ये निर्भर करता है कि सर्वे कितनी ईमानदारी से हुआ है। क्या पद्धति अपनाई गई है। हमारे सर्वे पर शक इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारी पार्टी ने करवाया। पर हम लोगों से कुछ भी थोड़ी बुलवा सकते हैं। बाकायदा एक प्रोफेशनल कंपनी ने सर्वे किया है। जो लोग सर्वे के लिए मैदान में गए थे उन्हें बिलकुल नहीं पता था कि वो किसके लिए काम कर रहे हैं। इस सर्वे में हमने अपने साथी योगेंद्र यादव का पूरा सहयोग लिया जो इस काम का लंबा अनुभव रखते हैं। 35 हजार लोगों से बात की गई। जो बात सामने आई वो हमें भी उत्साहित करती है पर सर्वे की पद्धति शंका से परे है। ...
तो दूसरों के सर्वे में इतना अंतर क्यों है?* पहले वो लोग ये तो बता दें कि उन्होंने सर्वे किया किस तरह से। सैम्पल साइज क्या था? हम तो सब बता रहे हैं। अभी तो सर्वे आया है, 8 दिसंबर को नतीजे भी आ जाएँगे।अगर बहुमत नहीं आया तो क्या आप सरकार बनाने में मदद करेंगे?* नहीं, किसी हाल में नहीं। ये तो उन लोगों के साथ धोखा होगा जिन्होंने हमें वोट दिया। लोग कहेंगे कि फिर हमने 'आप' को वोट क्यों दिया, सीधे ही कांग्रेस या भाजपा को दे देते। मनीष जी, पीछे चलते हैं, आंदोलन के समय, जो माहौल बना था, जो एक लहर थी, अभी वैसा उत्साह या लहर दिखाई नहीं देती। कई सवाल और दायरे खड़े हो गए हैं। आपको क्या लगता है, कहाँ चूक हुई? दिल्ली के रामलीला मैदान में जो माहौल था वो मुंबई में एकदम ग़ायब क्यों हो गया था?* देखिए हमने आंदोलन कोई शौक के लिए नहीं किया था। हमने आंदोलन कोई भीड़ इकट्ठी करने के लिए भी नहीं किया था। हमने आंदोलन किया था एक गंभीर और बड़े लक्ष्य के लिए। जब हमें लगा कि आंदोलन की भी अपनी एक सीमा है और हम केवल आंदोलन के जरिए लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाएँगे तो हमने दूसरी बस पकड़ी। हमारी लड़ाई तो भ्रष्टाचार से है। ये उन करोड़ों लोगों की भी लड़ाई है जो इस भ्रष्टाचार से परेशान हैं। देश में भ्रष्टाचार करने वाले खुले आम घूमते हैं, अट्टहास करते हैं। वो सब जिनकी जगह तिहाड़ में होनी चाहिए। हम चाहते थे कि लक्ष्य तक पहुँचने के लिए गंभीरता से काम करें बजाय आंदोलन की प्रसिद्धि में खो जाने के।
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कुछ लोगों का ये भी मानना है कि ये 'दूसरी बस' पकड़ना ही असली मकसद था..... आंदोलन तो बस उद्देश्य तक पहुँचने के लिए खड़ा किया गया था? या तो हम 120 करोड़ भारतीय अगरबत्ती जला कर देश के सुधर जाने की प्रार्थना करें ... या फिर काम पर लग जाएँ
* पहली बात तो ये कि ऐसा सोचने वाले लोग बहुत कम हैं। और जो ये सोचते हैं कि हमारे लिए राजनीति में आना ही मुख्य लक्ष्य था ये दरअसल वो लोग हैं जो हमारे आंदोलन का फायदा उठाकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते थे। चूंकि उनका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ तो अब वो इस तरह कि बातें कर रहे हैं। अण्णा हजारे, जो कि इस पूरे आंदोलन का चेहरा थे, जो प्रणेता थे वो आपसे अलग क्यों हो गए?* अण्णा जी हमारे लिए बहुत सम्माननीय हैं। ये सवाल तो उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनकी नाराजी की वजह क्या है।जब बहुत सारे लोग एक साथ आए, जनता के बीच गए फिर ऐसा क्या हुआ कि आंदोलन में टूटन आ गई, जिसको लेकर पूरे देश में बहुत सारे लोग दुखी भी हुए?* मैं यहाँ टूटन शब्द के इस्तेमाल से सहमत नहीं हूँ। हमने एक रास्ता चुना। कुछ लोग साथ आए कुछ नहीं। आपने भी करियर के दोराहे पर फैसले लिए होंगे। ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं। वो टूटन नहीं है।कोई व्यक्तिगत फैसला और इतना बड़ा जन-आंदोलन दोनों को साथ कैसे रखा जा सकता है? आप बताइए ना आज यदि अरविंद केजरीवाल के साथ अण्णा हजारे खड़े होते, उनकी इस चुनावी मुहिम में भी, तब क्या आंदोलन की बात ज्यादा मजबूती से आगे नहीं बढ़ती?* हम तो चाहते हैं कि ऐसा हो। ये दिल्ली की और पूरे देश की जनता के लिए अच्छा होगा। जहाँ तक लक्ष्य की बात है तो मूल मुद्दा है भ्रष्टाचार का। लोकपाल तो बस एक तरीका है उसे कम करने का। आपको क्या लगता है, लोकपाल आने से भ्र्ष्टाचार खत्म हो जाएगा? क्योंकि अगर लोग भ्रष्ट हैं तो वो किसी नए सिस्टम को भी ख़राब कर देंगे?* लोग खराब हैं ये बात वो लोग करते हैं जो सिस्टम को ख़राब बनाए रखना चाहते हैं और उसमें मौजूद कमियों का फायदा उठाते हैं। अगर सिस्टम मजबूत होगा तो शुरुआत तो होगी। अब या तो हम इस देश के 120 करोड़ लोग रोज सुबह अगरबत्ती जला कर भगवान से प्रार्थना करें कि ये देश सुधर जाए और या तो हम काम पर लग जाएँ। इसीलिए हम लोकपाल के जरिए ये शुरुआत करना चाहते हैं।
आपने आंदोलन में भी ये कहा था कि अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए। आप लोग तो आ गए लेकिन एक शंका तब भी जाहिर की गई थी कि इतने अच्छे लोग आप कहाँ से लाएँगे और कैसे तस्दीक करेंगे? अभी इस चुनाव में ही देखिए दिल्ली के शहादरा सीट के उम्मीदवार को आपको बदलना पड़ा क्योंकि उसका आपराधिक रिकॉर्ड था। * अच्छे लोगों को ढूँढ़ना चुनौती तो रहेगी, लेकिन उससे डरकर ही अच्छे लोग इसे आगे नहीं बढ़ाएँगे तो कैसे चलेगा? शहादरा के उम्मीदवार को इसलिए बदला कि उन्होंने कुछ बातें छिपाईं। ये तो सतत प्रक्रिया है। अभी क्या चुनाव के एक दिन पहले 3 दिसंबर तक भी हमें किसी के बारे में कुछ ग़लत मालूम होगा तो हम उसे बिठा देंगे, चाहे मैं खुद मनीष सिसौदिया ही क्यों ना होऊँ। .... क्या कांग्रेस और भाजपा सुन रही है?