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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 30 जुलाई 2011 (18:01 IST)

मंत्रियों के विवेकाधिकार खत्म-प्रणब

मंत्रियों के विवेकाधिकार खत्म-प्रणब -
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि केंद्रीय मंत्रियों के बहुत सारे विवेकाधिकार समाप्त किए जा रहे हैं।

भ्रष्टाचार से निपटने के लिए गठित मंत्रियों के समूह (जीओएम) के अध्यक्ष प्रणब ने कहा कि समूह ने अपनी सिफारिशें सौंप दी हैं और इन्हें लागू करने के संबंध में विधि मंत्रालय तथा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) समीक्षा कर रहा है।

प्रणब ने साक्षात्कार में कहा कि मंत्रियों के जो विवेकाधिकार खत्म किए गए हैं, उनमें सामाजिक कल्याण मंत्रालय जैसे कुछ मंत्रालयों के विवेकाधीन कोष भी शामिल हैं। गैस पम्प और गैस कूपन आवंटन जैसे विवेकाधिकार पहले ही समाप्त कर दिए गए हैं।

बहरहाल, उन्होंने स्पष्ट किया कि मेडिकल सीटों के संबंध में भूटान और नेपाल जैसे देशों के छात्रों के लिए भारत सरकार का कोटा और बैंकों के गैर आधिकारिक निदेशक की नियुक्ति का विषय मंत्रियों के विवेकाधिकार क्षेत्र में नहीं आता बल्कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति के माध्यम से सरकार के सामूहिक निर्णय के तहत आता है।

भ्रष्टाचार से निपटने का खाका पेश करते हुए प्रणब ने कहा कि भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ अदालती मामलों और विभागीय प्रक्रियाओं को त्वरित निपटान प्रणाली के तहत लाया जाएगा और अभियोजन के लिए मामलों पर निर्णय तीन महीने के भीतर कर लिया जाएगा।

भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ मामलों को तेजी से आगे बढ़ाने के अलावा मंत्रियों के समूह ने अति शीघ्र 71 विशेष सीबीआई अदालतों के गठन की सिफारिश की है। इसकी मंजूरी दी जा चुकी है। 10 अदालतें पहले ही शुरू हो चुकी हैं।

भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत 10 वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों की समीक्षा करने, इनका तेजी से निपटारा करने तथा केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों (विशेष तौर पर डीओपीटी की सतर्कता इकाई) में सतर्कता प्रशासन को मजबूत बनाने की सिफारिश की गई है।

बहरहाल, जीओएम ने संविधान के अनुच्छेद 311 में संशोधन किए जाने के खिलाफ निर्णय किया है, जो लोक सेवकों की ओर से भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों की प्रक्रियाओं से जुड़े हैं। (भाषा)