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Written By वार्ता

भारत में गरीबी रेखा का पैमाना रवांडा से भी नीचे

भारत में गरीबी रेखा का पैमाना रवांडा से भी नीचे -
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नई दिल्ली। दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भारत में गरीबी का पैमाना अफ्रीकी देश रवांडा से भी नीचे है।

योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक देश में ग्रामीण क्षेत्रों में 816 रुपए प्रतिमाह की आय वाला शख्स गरीबी की रेखा से नीचे माना गया है जबकि गरीबी और भुखमरी से जूझ रहे रवांडा में यह पैमाना 892 रुपए है।

दुनिया में गरीबी का पैमाना हर देश में अलग-अलग तय किया गया है। ब्रिटेन में 11 लाख रुपए प्रतिवर्ष से कम की आय वाले ऐसे परिवार को गरीबी की रेखा से नीचे माना गया है जिसमें सदस्यों की न्यूनतम संख्या 5 है, जबकि अमेरिका में 4 सदस्यों वाले ऐसे परिवार को गरीब माना गया है जिसकी सालाना आया 11 लाख से कम है।

अमेरिका और ब्रिटेन अमीर देश हैं ऐसे में यहां गरीबी के पैमाने का स्तर ऊंचा होना ताज्जुब की बात नहीं है लेकिन जब तुलना रवांडा जैसे देशों के साथ हो तो हैरानी होना स्वाभाविक है।

भारत और रवांडा की अर्थव्यवस्थाओं में दूर-दूर तक कोई समानता नहीं है। रवांडा में 3 स्तर की गरीबी रेखा निर्धारित की गई है और यह तीनों ही भारत की गरीबी की रेखा से ऊपर है।

सुरेश तेंदुलकर समिति की सिफारिश पर योजना आयोग की ओर से गरीबी रेखा को नए सिरे से परिभाषित करते हुए यह कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 4,080 रुपए से अधिक की और शहरी क्षेत्रों में 5,000 रुपए से अधिक का मासिक खर्च करने वाला परिवार गरीबी की रेखा से ऊपर माना जाए।

योजना आयोग ने यह भी कहा है कि वर्ष 2011-12 के दौरान देश में गरीबों की संख्या वर्ष 2004-05 के 37.2 प्रतिशत से घटकर 21.9 प्रतिशत पर आ गई है।

गरीबी की रेखा ऐसे समय में फिर से परिभाषित की जा रही है जबकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत का मध्यप्रदेश राज्य 30.87 प्रतिशत भुखमरी के स्तर के साथ इथोपिया के समकक्ष है।

बिहार में भुखमरी की स्थिति यमन के बराबर है। गुजरात भुखमरी के लिहाज से बांग्लादेश के समकक्ष खड़ा है। भुखमरी के मामले में महाराष्ट्र की स्थिति जीबूटी के बराबर, असम की माली के बराबर, केरल की सेनेगल के बराबर और पंजाब की फिलीपींस के बराबर है।

आर्थिक विशेषज्ञों की राय में गरीबी की रेखा में एक स्थायित्व होना चाहिए। हर बार इसे नए सिरे से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए। इससे विषमताएं पैदा होंगी और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाएगा। (वार्ता)