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Written By WD

भारत के दर्शन ने मेरा जीवन बदल दिया-फिलिप गोल्डबर्ग

कहा- अमेरिका की घटिया वस्तु भारत में श्रेष्ठ मानी जा रही है...

Philip Goldberg | भारत के दर्शन ने मेरा जीवन बदल दिया-फिलिप गोल्डबर्ग

मशहूर पुस्तक 'अमेरिकन वेदा' के लेखक फिलिप गोल्डबर्ग से जयदीप कर्णिक की बातचीत

इमर्सन और थोरो जैसे महान दार्शनिक भी भारत के अध्यात्म और चिंतन से ही प्रभावित थे। पश्चिम ने दुनिया को जो दिया वो दिखाई देता है जैसे मोबाइल, कैमरा लैपटॉप, मगर भारत ने जो दिया वो दिखाई नहीं देता पर वो इन भौतिक वस्तुओं से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। भारत ने सारी दुनिया को सही जीवन शैली दी है, दर्शन और अध्यात्म दिया है। सनातन धर्म और वेदांत के सिद्धांत ही वो ताकत है जो मनुष्य को सुख देगी। योग महज कसरत नहीं है, इसकी ताकत अद्भुत है। भारत ने जो दुनिया को दिया है उसके लिए मैं भारत का शुक्रिया अदा करता हूँ, सारी दुनिया को करना चाहिए। ये विचार हैं अमेरिकन वेदा जैसी मशहूर पुस्तक के लेखक और वक्ता फिलिप गोल्डबर्ग के। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के अंश।
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प्रश्न : भारत के प्रति आपके झुकाव की शुरुआत कैसे हुई?
-1960 का समय अमेरिका के लिए बहुत अहम था। भौतिकवाद चरम पर था। युवा बस अपनी मस्ती में खोए थे। समाज टूट रहा था। हमें अपना सबकुछ त्याज्य-सा लग रहा था। मैं भी उस वक्त युवा था। मुझे ये तो ध्यान नहीं की मैंने पहली किताब कौन-सी पढ़ी पर उस समय चंद किताबों से मैंने भारतीय दर्शन के बारे में जाना। मुझे जैसे उम्मीद की किरण मिल गई। जैसे शून्य को पाटने वाली चीज। तभी वो हुआ जिसने कमोबेश अमेरिका के हर युवा को प्रभावित किया। 1968 में मशहूर रॉक बैंड 'बीटल्स' के जॉर्ज हैरिसन सुकून, शांति और अध्यात्म की तलाश में महर्षि महेश योगी के ऋषिकेश स्थित आश्रम पहुँच गए। बीटल्स अमेरिका के रोल मॉडल थे। सारा अमेरिका उनका दीवाना था और उनके पीछे था... और वो ख़ुद भारत के पीछे खड़े हो गए।

ये एक ऐतिहासिक घटना थी। इसने मुझे प्रभावित तो किया पर इसका सिरा ढूंढने पर मजबूर भी कर दिया। और ये सिरा 200 से भी अधिक साल पीछे जाकर 'राल्फ वाल्डो इमर्सन', और हैनरी डेविड थोरो से जा मिला। अमेरिका के भारत से लगाव की शुरुआत बीटल्स से नहीं हुई थी। बीटल्स चूंकि बहुत मशहूर थे इसलिए चर्चा ज्यादा हुई।

बस फिर तो मैं भी भारत का दीवाना हो गया। मैंने गीता पूरी पढ़ी। वेदों को जाना और फिर तो इसमें डूबता चला गया। मुझे लगा कि जैसे मुझे ख़जाना मिल गया। मैं इस सब पर लिखना चाहता था। बताना चाहता था कि भारत ने हमें कितना कुछ दिया है। 1980 के बाद मैंने काफी कुछ लिख भी लिया। पर कोई प्रकाशक राजी ही नहीं हुआ। मैं अपने नोट्स बनाता रहा। आखिरकार 20 साल के इंतजार के बाद 2003 में मेरी किताब आ पाई। और मैं बेहद ख़ुश हूँ कि लोग इसे पढ़ रहे हैं।

* अमेरिका के पास देने के लिए कुछ नहीं

* पश्चिम ने अपना पूरा दर्शन भारत से ही आयात किया है

* भारत के लोगों को भौतिकवाद, पिज़ा और बर्गर छोड़ना होगा


प्रश्न : अगर भारत ने दुनिया को इतना कुछ दिया तो भारत को उसका श्रेय उस रूप में अभी तक क्यों नहीं मिल पाया?
-इसका एक बड़ा कारण ये है कि लोगों ने भारत से मिले ज्ञान की अपने-अपने हिसाब से व्याख्या की और उसकी पैकेजिंग की। उन्होंने वो संदर्भ हटा दिए जिससे भारत का संबंध जुड़ता हो। किसी ने इसे सकारात्मक सोच के रूप में बेचा तो किसी ने प्रबंधन शैली के रूप में। अमेरिका में जैसे होड़-सी लग गई भारत से मिले ज्ञान को अपना बना कर बेचने की। कुछ लोगों ने इसे धंधा बना लिया।

प्रश्न : संदर्भ भारत का हटाया गया या धर्म का?
-आप सही हैं। दरअसल लोग ये नहीं चाहते थे कि इसे हिंदू धर्म के प्रचार के रूप में लिया जाए। इसीलिए वो संस्कृत के श्लोक या उस तरह का संदर्भ हटा देते थे। जिससे ये किसी धार्मिक विवाद का रूप ना ले ले। (देखेवीडियो : गोल्डबर्बातचीत)


प्रश्न : तो क्या आप को लगता है कि ये हिंदू धर्म की कमजोरी है कि वो ख़ुद अपनी बात मजबूती के साथ नहीं रख पाया? जैसे बाकी धर्म बाकायदा अपना प्रचार करते हैं, इसे 'मिशन' मानकर उस तरह का मिशनरी तरीका नहीं अपनाना ग़लत है?
-ये तो सही है कि हिंदू धर्म ने ऐसा नहीं किया, अपने आप को किसी पर थोपा नहीं। मैं ये भी सोचता हूँ कि इस तरह का मिशनरी कार्य जिससे कट्टरवाद की बू आती हो दूसरे धर्म का सम्मान ख़त्म होता हो वो ग़लत ही है चाहे वो कोई भी धर्म हो। अगर हम ईसाई धर्म की ही बात करें तो सेवा कार्य जैसे स्कूल और अस्पताल खुलवाना तो ठीक है पर हर धर्म की तरह यहाँ भी 'अच्छे' और 'बुरे' ईसाई हैं। अगर हम धर्म की बजाय उसकी दी हुई शिक्षा पर ध्यान दें तो बेहतर है।

रोचक और प्रेरक साक्षात्कार का शेष भाग... अगले पेज पर....



प्रश्न : अगर कोई शिक्षा अच्छी है तो वो धर्म का प्रश्न बन ही क्यों जाती है। अगर किसी धर्म ने अच्छी शिक्षा दी है तो उसका सम्मान तो होना ही चाहिए? यहाँ भारत में भी स्कूलों में योग की शिक्षा धर्म का सवाल बन जाती है?

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-यह दु:खद है, पर ऐसा ही है। आपके यहाँ ही नहीं अमेरिका में भी स्कूलों में योग पढ़ाया जाना धार्मिक सवाल बन गया। पर फिर भी वो लोकप्रिय हुआ, लोगों ने अपनाया अलग-अलग संस्थाओं और कक्षाओं में जाकर उसे सीखा। देखिए, फायदा होगा तो हर आदमी उसे अपनाएगा। भारत की तमाम शिक्षाएँ बस यों ही लोकप्रिय नहीं हो रही हैं। उनका वैज्ञानिक आधार है। इस पूरी जीवन शैली से तनाव कम करने में, रक्तचाप को बेहतर करने में और बीमारियों को दूर रखने में मदद मिली है और इसका वैज्ञानिक प्रमाण है।

आज अमेरिका में 2 करोड़ से भी ज्यादा लोग नियमित रूप से योग कर रहे हैं, 4 करोड़ से अधिक लोग ध्यान कर रहे हैं। जैसा कि मैंने कहा भारत का योगदान भौतिक नहीं सूक्ष्म है। ये बस लोगों की जीवन शैली का हिस्सा बन गया। अच्छी बात ये थी कि भारत से आने वाले विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने भी बस इसे उस रूप में ही प्रचारित किया, धर्म से जोड़ने की बजाय जीवन से जोड़ा, बस एक प्रारूप दिया। जिसे हम अपने हिसाब से भर सकते हैं। उन्होंने ये नहीं कहा कि सबको संन्यासी बन जाना चाहिए तभी उद्दार होगा, अपना जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिक हुआ जा सकता है, यही भारतीय दर्शन की ख़ासियत है। (देखें बातचीत का अगला वीडियो)


प्रश्न : आप सब भारत को अपना रहे हैं पर यहाँ भारत में तो उल्टा हो रहा है, चमचमाते मॉल्स की संख्या बढ़ रही है। हर जगह मैक्डोनाल्ड्स और पिजा हट का बोलबाला है।

-ये अफसोसजनक है। ऐसा नहीं होना चाहिए। पिजा और बर्गर को तो अमेरिका में भी बुरा माना जाता है उसे यहाँ प्रतिष्ठित क्यों किया जा रहा है? वो श्रेष्ठ नहीं घटिया है। दरअसल अमेरिकी जीवन शैली अपनाने वालों को नुकसान ही होगा। हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं सिवाय खालीपन के। अगर ये आपको भुगतने के बाद पता चले तो और भी बुरा होगा।

प्रश्न : आपके परिवार के बारे में बताइए?
-मेरी पत्नी से मेरी मुलाकात लॉस एंजिल्स में श्री श्री रविशंकर जी के शिविर में ही हुई थी। मेरे भाई भी आध्यात्मिक राह ही अपनाते हैं।

प्रश्न : भारत के किन लोगों ने अमेरिका को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है?
-मैं तीन नाम लूँगा। हालाँकि इसका ये मतलब नहीं है कि मैं बाकियों के योगदान को नकार रहा हूँ पर हाँ इन 3 ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, ये मैं कहूँगा। ये लोग हैं- स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद और महर्षि महेश योगी।

(देखें बातचीत का अंतिम वीडियो)