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Written By भाषा

पच्चीस साल बाद बजट पेश करेंगे मुखर्जी

After 25 years Mukherjee will present budjet | पच्चीस साल बाद बजट पेश करेंगे मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी पच्चीस साल बाद सोमवार को एक बार फिर देश का आम बजट पेश करेंगे। इससे पहले वे इंदिरा गाँधी सरकार में वित्तमंत्री के रूप में 1982 से 1984 तक तीन बजट पेश कर चुके हैं।

मनमोहनसिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की पहली पारी के अंतिम दिनों में पी. चिदंबरम को वित्तमंत्री की जगह गृहमंत्री बना दिए जाने के बाद मुखर्जी को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था और तब उन्होंने 16 फरवरी 2009 को अंतरिम बजट पेश किया था।

चुनाव बाद सिंह ने अपनी सरकार की दूसरी पारी शुरू करने पर मुखर्जी को वित्त मंत्रालय का पूर्ण प्रभार सौंप दिया और अब सोमवार को 25 साल बाद वे एक बार फिर आम बजट पेश करेंगे।

आपातकाल का गुस्सा शांत होने और जनता सरकार का प्रयोग असफल होने पर जनता ने जब एक बार फिर इंदिरा गाँधी को सत्ता में लौटाया तो उस समय देश की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल हो चुकी थी। इंदिराजी ने हालात को काबू करने के लिए भरोसा मुखर्जी में जताया और सत्ता वापसी के दो साल बाद उन्हें वित्तमंत्री बना दिया।

मुखर्जी ने 1982 में जब अपना पहला बजट पेश किया तो जनता शासन 21 प्रतिशत रिकॉर्ड मुद्रास्फीति छोड़ गया था और आर्थिक तंगी से उबरने के लिए भारत द्वारा आईएमएफ से ऋण लेने का प्रयासों का अमेरिका विरोध कर रहा था।

उन दिनों को याद करते हुए मुखर्जी ने कहा कि जब मैंने प्रभार संभाला था तब विदेशी मुद्रा के भंडार की स्थिति बहुत खराब थी। किसानों की स्थिति सुधारने के लिए मुखर्जी ने नाबार्ड के गठन की अनूठी पहल की।

मुखर्जी ने अपने पहले बजट भाषण में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य में 'संरक्षणवाद की प्रवृत्ति' पर चिंता जताई थी और भारत सहित विकासशील देश आज भी यही शिकायत कर रहे हैं।

अपने दूसरे बजट भाषण में उन्होंने विश्व बाजार में मंदी और विश्व व्यापार में ठहराव का उल्लेख किया था और इस बार भी वे सोमवार को ऐसे वक्त में बजट पेश करेंगे, जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी के संकट से जूझ रहा है।

उस समय के अपने अंतिम बजट भाषण में मुखर्जी ने औद्योगिक वृद्धि दर के 4.5 प्रतिशत तक गिरने पर चिंता जताते हुए उसे सात से आठ प्रतिशत तक ले जाने का प्रयास करने को कहा था ताकि सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाते हुए रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित किए जा सकें।

इस बार के बजट में भी वे कुछ वैसी ही चिंताओं से जूझते और उनसे उबरने के प्रयास करते नजर आ सकते हैं।