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Written By वार्ता

थिएटर के विश्वकोष हबीब तनवीर

थिएटर के विश्वकोष हबीब तनवीर -
जाने-माने रंगकर्मी, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर का जाना विश्व रंगकर्म के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अवसान है। थिएटर के विश्वकोष कहे जाने वाले तनवीर का निधन ऐसी अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।

उनका जन्म अविभाजित मध्यप्रदेश के रायपुर (अब छत्तीसगढ़) राज्य की राजधानी में एक सितंबर 1923 को हुआ। उनके पिता हफीज अहमद खान पेशावर (पाकिस्तान) के रहने वाले थे।

स्कूली शिक्षा रायपुर और बीए नागपुर के मौरिस कॉलेज से करने के बाद वे एमए करने अलीगढ़ गए। युवा अवस्था में ही उन्होंने कविताएँ लिखना आरंभ कर दिया था और उसी दौरान उपनाम तनवीर उनके साथ जुडा। 1945 में वे मुंबई गए और ऑल इंडिया रेडियो से बतौर प्रोड्यूसर जुड़ गए। उसी दौरान उन्होंने कुछ फिल्मों में गीत लिखने के साथ अभिनय भी किया।

मुंबई में तनवीर प्रगतिशील लेखक संघ और बाद में इंडियन पीपुल्स थियेटर (इप्टा) से जुड़े। ब्रिटिशकाल में जब एक समय इप्टा से जुड़े तब अधिकांश वरिष्ठ रंगकर्मी जेल में थे। उनसे इस संस्थान को संभालने के लिए भी कहा गया था। 1954 में उन्होंने दिल्ली का रुख किया और वहाँ कुदेसिया जैदी के हिंदुस्तान थिएटर के साथ काम किया। इसी दौरान उन्होंने बच्चों के लिए भी कुछ नाटक किए।

दिल्ली में तनवीर की मुलाकात अभिनेत्री मोनिका मिश्रा से हुई जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनीं। यहीं उन्होंने अपना पहला महत्वपूर्ण नाटक 'आगरा बाजार' किया। 1955 में तनवीर इग्लैंड गए और रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक्स आर्ट्स (राडा) में प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब उन्होंने यूरोप का दौरा करने के साथ वहाँ के थिएटर को करीब से देखा और समझा।

अनुभवों का खजाना लेकर तनवीर 1958 में भारत लौटे और तब तक खुद को एक पूर्णकालिक निर्देशक के रूप में ढाल चुके थे। इसी समय उन्होंने शूद्रक के प्रसिद्ध संस्कृत नाटक 'मृच्छकटिका' पर केंद्रित नाटक 'मिट्टी की गाड़ी' तैयार किया। इसी दौरान नया थिएटर की नींव तैयार होने लगी थी और छत्तीसगढ़ के छह लोक कलाकारों के साथ उन्होंने 1959 में भोपाल में नया थिएटर की नींव डाली।

नया थिएटर ने भारत और विश्व रंगकर्म के मंच पर अपनी अलग छाप छोड़ी। लोक कलाकारों के साथ किए गए प्रयोग ने नया थिएटर को नवाचार के एक गरिमापूर्ण संस्थान की छवि प्रदान की। 'चरणदास चोर' उनकी कालजयी कृति है। यह नाटक भारत सहित दुनिया में जहाँ भी हुआ, सराहना और पुरस्कार अपने साथ लाया।

छत्तीसगढ़ की नाचा शैली में 1972 में किया गया उनका नाटक 'गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद' ने भी खूब वाहवाही लूटी।

अपने जीवन में उन्होंने रिचर्ड एटनबरो की ऑस्कर विजेता फिल्म गाँधी सहित कई अन्य फिल्मों में बतौर अभिनेता काम किया। कुछ समय पहले आई उनकी हिंदी फिल्म 'ब्लैक एंड व्हाइट' थी।

विश्व रंगकर्म की जानी-मानी शख्सियत हबीब तनवीर की जीवनशैली सादगीपसंद थी और वे सत्ता के गलियारों में कभी मदद की आस लेकर नहीं गए।

हमेशा यह बात उठती रही कि अपना पूरा जीवन थिएटर को समर्पित करने के बाद भी उन्हें क्या मिला लेकिन तनवीर को इसका मलाल कभी नहीं रहा।

अपने जीवन की साँझ में वे आत्मकथात्मक पुस्तक पर काम कर रहे थे। समझा जाता है कि यह किताब पूर्णता के नजदीक पहुँच गई थी। अब यह जिम्मेदारी उनकी एकमात्र वारिस बेटी नगीन की है कि वे इस किताब को पाठकों तक पहुँचाएँ।

तनवीर को 1969 में और फिर 1996 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। 1983 में पद्श्रमी और 2002 में पद्मभूषण मिला। 1972 से लेकर 1978 तक वे उच्च सदन 'राज्यसभा' के सदस्य भी रहे।