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Written By भाषा

तवांग पर चीनी दावे से दलाई लामा हैरान

तवांग पर चीनी दावे से दलाई लामा हैरान -
दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश की अपनी यात्रा का विरोध किए जाने पर रविवार को चीन की आलोचना की और सीमावर्ती कस्बे तवांग पर चीन के दावे पर हैरानी जताई।

छह वर्ष के अंतराल के बाद यहाँ पहुँचे 74 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि चीन के साथ तिब्बत मुद्दे पर बातचीत करने का तब तक कोई अर्थ नहीं है, जब तक वह तिब्बत पर अपनी नीति में साफगोई नहीं लाता।

यहाँ 400 साल पुराने तवांग मठ में एक संग्रहालय का उद्घाटन करने के बाद दलाई लामा ने कहा कि मैं जहाँ भी जाऊँ, वहाँ मेरे खिलाफ चीन का अभियान तेज कर देना मामूली बात है। चीन ने दलाई लामा के इस दौरे पर पुरजोर आपत्ति जताई है क्योंकि वह संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों पर अपना दावा जताता है।

दलाई लामा ने तिब्बत में चीन शासन के खिलाफ विद्रोह नाकाम रहने के बाद 50 साल पहले हिमालय पार कर उनके तवांग आने के दौरे को याद किया। उन्होंने कहा कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने 1962 के युद्ध में तवांग पर कब्जा कर लिया था और वह बोमडिला के निकट पहुँच गई थी।

दलाई लामा ने तवांग पर चीन के जाहिरा तौर पर किये दावों के संदर्भ में कहा कि लेकिन तत्कालीन चीन सरकार ने एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की और अपने बलों को वापस बुला लिया। अब चीन का दृष्टिकोण अलग है। यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में मैं सही में कुछ नहीं जानता। मुझे कुछ अचरज हुआ है।

गुवाहाटी से आज सुबह तवांग आए तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जब हेलीपैड से तवांग मठ की 10 किलोमीटर की दूरी वाहन से तय की तो उत्साहित तिब्बतियों ने उनका स्वागत किया। उनके साथ अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू भी थे।

पर्वतों के बीच तवांग 11400 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ दलाई लामा के रंगीन पोस्टर और भारत तथा तिब्बत के झंडे नजर आए, जिस अतिविशिष्ट मार्ग से उन्हें ले जाया गया, वहाँ की इमारतों का कायाकल्प किया गया।

दलाई लामा ने चीन के इन आरोपों को खारिज कर दिया कि वे स्वतंत्र तिब्बत बनाकर देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन की साम्यवादी सरकार का यह कहना पूरी तरह से बेबुनियाद है कि मैं अलगाववादी आंदोलन को बढ़ावा दे रहा हूँ।

तवांग का मेरा दौरा गैर राजनीतिक है और इसका उद्देश्य सार्वभौमिक भाईचारे को बढ़ावा देने के अलावा कुछ और नहीं है। उन्होंने कहा कि यहाँ आकर वे ‘भावुक’ हुए हैं। तिब्बत से भागते वक्त 1959 में वे यहाँ से गुजरे थे।

दलाई लामा ने कहा कि मैं भावुक हूँ, जब मैं भागा था तब मानसिक दबाव में था। मुझमें निराशा का भाव था, लेकिन जब मैंने सीमा पर (कृष्णा) मेनन तथा विदेश मंत्रालय के अन्य अधिकारियों को देखा तो मुझे एकजुटता और सुरक्षित होने की भावना महसूस हुई। उन्होंने कहा कि लिहाजा, अब मैं यहाँ आकर काफी खुश हूँ। मैं जहाँ कहीं जाता हूँ मेरा मकसद मानवीय मूल्यों का संवर्धन होता है। अभी मैं जापान से लौटा हूँ जहाँ मैंने बताया कि खुशी का स्रोत हमारे भीतर है।

आध्यात्मिक नेता से पूछा गया कि क्या चीन के लिए उनका कोई संदेश है। उनका जवाब था कि कुछ नहीं, नहीं कुछ नहीं। तिब्बत मुद्दे पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि चीन को अपनी तिब्बत नीति स्पष्ट करनी चाहिए।

तिब्बती धर्मगुरु ने कहा कि जब तक वे तिब्बत पर अपनी नीति स्पष्ट नहीं करते तब तक उनसे बातचीत का कोई मतलब नहीं है। बातचीत की मेज पर दोबारा आने में तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक वे 60 लाख तिब्बतियों की खुशहाली की चिंता न करें

उन्होंने कहा कि मेरे बारे में उनके (चीनियों के) विचार समय-समय पर बदलते रहते हैं। उनके विचारों में अंतर है। अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे के बारे में दलाई लामा ने कहा कि इस मुद्दे पर आप मेरे विचार जानते हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बत बौद्ध क्षेत्र और संस्कृति एक कठिन दौर से गुजर रही है।

दलाई लामा ने कहा कि लिहाजा इस देश में और इस इलाके में तिब्बती बौद्ध धर्म तथा संस्कृति के सरंक्षण की वास्तविक जिम्मेदारी लोगों की है। तिब्बती शरणार्थी समुदाय के कई लोग, खासकर युवा, मठों तथा विभिन्न तिब्बती संस्थानों से जुड़े रहे हैं, जो काफी उत्साहवर्धक संकेत है। उन्होंने कहा कि खासकर दक्षिण भारत में ऐसे 2000 सामुदायिक सदस्य संस्थानों से जुड़े हैं और स्थानीय लोग बौद्ध धर्म के अध्ययन तथा संस्कृति के संरक्षण में वास्तविक रुचि दिखा रहे हैं।

दलाई लामा का काफिला तीन स्थानों पुराने बाजार, मंजूश्री विद्यापीठ और नए बाजार पर रुका। यहाँ आध्यात्मिक नेता ने उनका अभिवादन कर रहे लोगों को आशीर्वाद दिया। दलाई लामा के काफिले को हेलीपैड से तवांग मठ पहुँचने में 45 मिनट से अधिक समय लगा।

वर्ष 2003 के बाद यहाँ पहली बार आए तिब्बती नेता ने तवांग मठ के अंदर एक संग्रहालय का उद्घाटन किया। ‘गेंडेनमैमग्यालहाट्सा’ नामक इस संग्रहालय में बौद्ध धर्म से जुड़े ऐतिहासिक लेख मौजूद हैं।

उद्घाटन के तुरंत बाद दलाई लामा को 700 बौद्ध भिक्षुओं के जुलूस में भाग लेने के लिए दुआक्कन ले जाया गया, जहाँ उन्होंने खांडू और अन्य आध्यात्मिक नेता पीजी रिनपोचे के साथ प्रार्थनाएँ कीं। दलाई लामा को 1983, 1997 और 2003 में भी आमंत्रित किया गया था। (भाषा)