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Written By WD

क्या अब भी सबूत चाहिए?

क्या अब भी सबूत चाहिए? -
-वेबदुनिया डेस्क
असम में गुरुवार को हुए बम धमाकों का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि राज्य सरकार और खुफिया एजेंसियों को इनकी भनक तक नहीं लगी और घटना की गंभीरता के बाद ये सब हतप्रभ हैं। यह तथ्य और भी चिंताजनक है क्योंकि दुर्गा पूजा और दीपावली के अवसर पर राज्य सरकार की ओर से हाई अलर्ट घोषित किया गया था। सुरक्षा की व्यवस्था के दावों के बावजूद हमारी सतर्कता की यह स्थिति है?

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अब बम धमाकों के बाद भी हम यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर इनके पीछे कौन जिम्मेदार है? राज्य के आतंकवादी गुट यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) ने चूँकि बयान जारी कर कह दिया है कि यह उसकी करतूत नहीं है। इसलिए अब उल्फा पर शक करने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है क्योंकि इस संगठन के नेता तो सत्य-निष्ठा के साक्षात अवतार हैं?

केन्द्रीय गृह सचिव ने अपनी खोज कर जरूर बताया है कि बाहरी मदद लेकर यह काम स्थानीय गुटों ने किया है। बस सुरक्षा बल जरूर कहते हैं कि इसके पीछे उल्फा जैसे संगठन का हाथ हो सकता है। उनका दोष यह है कि वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं और उन पर आम-खास लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी होती है, इसलिए वे किसी संगठन का नाम लेने के लिए विवश होते हैं।

राज्य के मुख्‍यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि उन्हें ऐसी सूचना ही नहीं थी कि इतने भीषण धमाके होंगे (शायद उनका मतलब रहा होगा कि अगर पहले से सूचना मिल जाती तो संभवत: इन्हें रोक लिया जाता?) जबकि हाल के कुछेक महीनों में देश के विभिन्न भागों में बम विस्फोट हुए हैं और हर मामले में यही बात कही जा सकती है कि पहले से जानकारी ही नहीं थी।

पर क्या विस्फोट करवाने वाले पहले से सूचना भी देते हैं? हालाँकि गोगोई खुद मानते हैं कि राज्य के उग्रवादी संगठनों में बहुत कम अंतर है और एक आतंकवादी तो आतंकवादी ही होता है। उसे सजा मिलनी ही चा‍हिए। पर कैसे? आखिर क्या हम कभी इन आतंकवादियों को पकड़ पाते हैं? जो देश के विभिन्न हिस्सों में पकड़े जाते हैं उन्हें सजा भी सुना दी जाती है, लेकिन जो सीमा पार हैं और सुदूर देशों से आतंकवादी नेटवर्क संचालित कर रहे हैं, उन पर हम कैसे काबू पा सकते हैं?

अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी ऐसा ही है कि ये विस्फोट स्थानीय लोगों की मदद से विदेशी शत्रु देशों के एजेंटों ने करवाए हैं। इस मामले में भी ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है कि इनके पीछे उल्फा जैसे देशद्रोही संगठन और पा‍किस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की उपज हूजी जैसे संगठनों का हाथ है।

उल्फा, हूजी और आईएसआई का गठजोड़ : राज्य के पुलिस प्रमुख आरएन माथुर का कहना है कि उल्फा के अलावा कोई और संगठन राज्य में इतने बड़े पैमाने पर और इतने योजनाबद्ध तरीके से इतने सारे धमाके करने में सक्षम नहीं है, इसलिए खुफिया एजेंसियों को शक है कि हूजी जैसे जिहादी आतंकवादी संगठन पूर्वोतर के उग्रवादी संगठनों से साँठगाँठ कर इन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इसलिए वे भी मानते हैं कि असम में हुई तबाही हूजी और उल्फा के नापाक गठजोड़ का परिणाम है।

खुफिया अधिकारियों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हूजी स्थानीय संगठनों का उपयोग कर रहा है। अगरतला में हुए विस्फोटों में इसने त्रिपुरा टाइगर फोर्स का इस्तेमाल किया था और अब इसने उल्फा की मदद से असम में विस्फोट कराए हैं।

सेना अधिकारी भी कहते हैं कि उल्फा की 709 बटालियन इन विस्फोटों में मददगार हो सकती है। निचले असम में अपनी कमजोर पकड़ को देखते हुए अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए उल्फा उग्रवादियों ने हूजी उग्रवादियों को सहयोग दिया है।

इन विस्फोटों में आईएसआई से जुड़ी हूजी की आशंका इस कारण से भी बलवती होती है क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले बीस वर्षों से अलगाववाद और हिंसा फैलाई जाती रही है, लेकिन उसमें आरडीएक्स जैसे विस्फोटक शामिल नहीं रहे हैं। इनका इस्तेमाल पाक समर्थित एजेंसियाँ ही ज्यादा करती हैं।

राज्य के जिन इलाकों में धमाके हुए हैं उनमें तस्करी के जरिये हथियार और विस्फोटकों को लाए जाने की भी कोई समस्या नहीं है। पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएँ बांग्लादेश, म्याँमार से मिलती हैं, जहाँ सीमा पर लगातार निगरानी संभव नहीं है। ऐसे में असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की बांग्लादेश से लगी 1870 किमी लंबी सीमा से हथियारों, विस्फोटकों को लाया जाना कोई बड़ी बात नहीं है।

गौरतलब है कि म्याँमार से लगी सीमा पर वर्षों से हथियारों की तस्करी होती रही है, लेकिन यहाँ से पूर्वोत्तर राज्यों में आरडीएक्स नहीं पहुँचा था। यह पहली बार बांग्लादेश के जरिये असम में आया है। म्याँमार सीमा पर उस देश के सैनिकों की चौकसी के चलते उग्रवाद और हिंसा का सामान बांग्लादेश सीमा पर लगे चटगाँव के पहाड़ी इलाकों से आने लगा है।

खुफिया सूत्रों का कहना है कि छोटे हथियारों जैसे लाइट मशीन गन, एसाल्ट राइफल्स, ग्रेनेड्‍स और रॉकेट लांचर्स के लिए समुद्री मार्ग का सहारा लिया जाता है, जिसमें अरकान लिबरेशन आर्मी उल्फा की मदद करती है। इसकी मदद का प्रमुख स्रोत भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई है, जो कि बांग्लादेश में बैठकर हूजी को संगठित बनाए रखती है।

बांग्लादेश की राजनीतिक पार्टी : भारत में कई आतंकवादी हादसों के सिलसिले में जिस हूजी (हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी) का नाम आ रहा है, उसे बांग्लादेश सरकार ने इस्लामिक डेमोक्रेटिक पार्टी (आईडीपी) के नाम से राजनीतिक गतिविधियाँ शुरू करने की भी इजाजत दे दी है। आईडीपी ने कुछ महीने बाद होने वाले आम चुनाव में हिस्सा लेने का भी ऐलान कर दिया है।

  नाम जो भी रहे। सच यह है कि हूजी का पूरे बांग्लादेश में बहुत बड़ा नेटवर्क कायम हो चुका है। मदरसे इनमें अहम रोल अदा करते हैं। हथियार चलाने और विस्फोटक तैयार करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।      
गौरतलब है कि 2005 में आतंकवाद फैलाने के आरोप में बांग्लादेश में हूजी पर रोक लगा दी गई थी। दल का गठन देश की कार्यवाहक सरकार की अनुमति के बाद किया गया था। बांग्लादेश सरकार का कहना है कि उसे समूह के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।

संगठन के सलाहकार काजी अजीजुल हक ने समाचार-पत्र ‘द डेली स्टार’ से कहा कि खुफिया संगठनों ने साक्ष्य एकत्रित कर पाया कि हमारा किसी आतंकवादी नेटवर्क से कोई संबंध नहीं है। सरकार ने कुछ शर्तें रखी हैं जिनके अनुसार पार्टी को देश के संविधान के अनुसार ही चलाना और देश में शरीयत कानून लाने के लिए हिंसा का सहारा न लेने की बात शामिल है।

उल्लेखनीय है कि हूजी को अमेरिका ने आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल रखा है और देश में उस पर प्रतिबंध लगा हुआ है। विभिन्न भारतीय शहरों में हुई आतंकवादी घटनाओं के सिलसिले में भी भारत सरकार हूजी का नाम लेती रही है।
नाम जो भी रहें, सच यह है कि हूजी का पूरे बांग्लादेश में बहुत बड़ा नेटवर्क कायम हो चुका है। मदरसे इनमें अहम रोल अदा करते हैं। हथियार चलाने और विस्फोटक तैयार करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। हूजी अपने लड़ाकों को अफगानिस्तान भेजती रही है। म्याँमार से बांग्लादेश भागकर आने वाले रोहिंगिया मुसलमानों का साथ देने के लिए हूजी के प्रशिक्षित लड़ाके म्याँमार की सेना के खिलाफ कार्रवाई में भी शामिल रहे हैं।

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आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को असम में हूजी के संभावित हमलों को लेकर आगाह कर दिया था। पुलिस ने इन हमलों को विफल करने के लिए अपने कर्मियों को चौकस किया और पुलिस थानों पर सबसे अधिक चौकसी बरती जाने लगी। पर इसके बावजूद गुरुवार को धमाके कर दिए गए।

हूजी के सदस्य समय-समय पर जगह-जगह खुली भारत-बांग्लादेश सीमा का उपयोग कर असम के करीमगंज आते हैं। उसके बाद वे दूसरे हिस्से में चले जाते हैं। यह कहना गलत न होगा कि इस संगठन की भारत में जड़ें गहरी जमी हुई हैं।

कैसे हुआ हूजी का जन्म : जिस 'हूजी' (हरकत-उल-जेहाद अल इस्लामी) का बार-बार नाम आ रहा है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जिसके रिश्ते हैं, उसका गठन अफगानिस्तान में सोवियत फौजों से लड़ चुके कट्टरपंथियों ने 30 अप्रैल, 1992 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में किया था।

उस समय इसका सबसे बड़ा नेता शेख अब्दुल सलाम था। सलाम ने ढाका के नेशनल प्रेस क्लब में ऐलान किया था कि हूजी का उद्देश्य बांग्लादेश में निजामे मुस्तफा कायम करना है, अर्थात एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना जो सिर्फ शरीयत पर चले।

आतंकवादी घटनाओं में हाथ होने के कारण हूजी को बांग्लादेश में गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया और उसके बाद 2005 में बांग्लादेश में उसके सबसे बड़े नेता मुफ्ती अब्दुल हन्नान को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन बांग्लादेश सरकार कट्टरपंथियों के साथ लुका-छिपी का खेल खेलती रही है, इसीलिए कुछ महीने पहले हूजी के नेताओं को इस्लामिक डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीजी) नामक नया संगठन खड़ा करने की इजाजत दे दी गई। नई पार्टी का ऐलान करने के वक्त हूजी के नेता अजीजुल हक ने शरीयत पर अमल का ऐलान किया।

भारत में, खासतौर से पूर्वोत्तर राज्यों में हूजी पैर जमा चुका है। उसके डैने किस कदर फैल चुके हैं, इसका अंदाजा यों लगाया जा सकता है कि त्रिपुरा की सीपीएम सरकार में मंत्री शाहिद चौधरी से उसका गहरा संपर्क था। बात खुलने पर अप्रैल 2008 में चौधरी को इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफे के साथ ही यह प्रकरण खत्म-सा हो गया। न तो कोई जाँच हुई और न खुलासा कि सीपीएम के एक मंत्री से हूजी का रिश्ता आखिर कैसे कायम हो गया और हूजी की जड़ें कितनी गहरी हैं।

26 फरवरी 2008 को दिल्ली पुलिस ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अनीसुल मुर्सलीन और महीबुल मुत्तकिन नामक दो व्यक्तियों को तीन किलो आरडीएक्स, दो पिस्तौलों और दो इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेटर के साथ गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान पता चला कि ये धमाके करने के इरादे से आए थे। ये दोनों आतंकवादी बांग्लादेश के फरीदपुर के रहने वाले हैं। अभी तक ये तिहाड़ जेल में बंद हैं। इसी महीने 10 तारीख को पूर्वी मेघालय में सीमा पर बातचीत के दौरान बांग्लादेश राइफल्स के प्रमुख मेजर जनरल शकील अहमद ने स्वीकार किया कि हूजी दोनों देशों के लिए खतरा है।

पिछले महीने 26 तारीख को असम के ढुबरी जिले में सेना ने हूजी के सात आतंकवादियों को मार गिराया। ये आतंकवादी गुवाहाटी में सीरियल ब्लास्ट करना चाहते थे। गुवाहाटी में उन्हें एक गुप्त आतंकवादी दस्ते से मिलकर यह करतूत करनी थी। गुवाहाटी में नाकामयाबी के बाद हूजी ने त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में धमाके किए। प्राप्त जानकारी के अनुसार हूजी ने एटीटीएफ (ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स) का भी सहयोग हासिल किया था। दिलचस्प बात यह है कि एटीटीएफ को ट्रेनिंग बांग्लादेश मिलिट्री इंटेलिजेंस से मिली।

त्रिपुरा पुलिस के मुताबिक मार्च 2008 में जिन छह बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया गया था, उनका संबंध आईएसआई से है। अगरतला में धमाकों के सिलसिले में अब तक नौ लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इन्हीं में ममून मियाँ उर्फ मफीजुर रहमान भी है, जिसके त्रिपुरा के मार्क्सवादी मंत्री शाहिद चौधरी से संबंध उजागर हुए।

बांग्लादेश में 8 दिसंबर को राष्ट्रीय चुनाव होने हैं, जिसमें हूजी आईडीपी के नाम से हिस्सा लेगा। यह मौका पार्टी के लिए अपना जाल फैलाने का अच्छा मौका होगा। उसे कितने फीसदी वोट मिलते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे राजनीतिक प्रतिष्ठा तो किसी न किसी हद तक मिल ही जाएगी।

वैसे भी बांग्लादेश की नौकरशाही, सेना, पुलिस और राजनीतिक बिरादरी में एक प्रभावशाली तबका कट्टरपंथियों से सहानुभूति रखता है। कट्टरपंथियों से हमदर्दी रखने वालों की संख्‍या बेगम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी में सबसे ज्यादा हैं। अगर आम चुनाव में बीएनपी जीतती है, तो वह भारत के लिए चिंताजनक होगा।

हूजी चीफ पर हत्या का मुकदमा : हूजी के चीफ मुफ्ती अब्दुल हन्नान पर इन दिनों ढाका की एक अदालत में हत्या और बम धमाके करने के केस चल रहे हैं। अगर वह दोषी पाया जाता है, तो उसे फाँसी की सजा हो सकती है। अगस्त 2004 में बांग्लादेश अवामी लीग की नेता शेख हसीना वाजेद की सभा में हुए धमाकों में 24 लोग मारे गए थे और 200 से ज्यादा घायल हुए थे। घायलों में शेख हसीना भी थीं। इसी सिलसिले में हन्नान सहित 12 लोग बंद हैं। इनमें हन्नान का भाई मोहिबुल्ला उर्फ मफीजुर रहमान भी है। आठ अभियुक्त फरार हैं।

बुधवार को अदालत ने इन 12 लोगों को रिहा करने की याचिकाएँ रद्द कर दीं। अब 5 नवंबर से मुकदमे की कार्रवाई शुरू होगी। इस केस में बेगम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी का एक सांसद अब्दुल सलाम पिंटू भी बंद है। अभियोजन पक्ष ने इस केस में 408 व्यक्तियों को गवाह बनाया है, जिनमें शेख हसीना भी हैं।

इस तरह बांग्लादेश में एक राजनीतिक पार्टी बन चुका आतंकवादी संगठन अगर बांग्लादेश में सत्ता में आता है या सरकार में शामिल होता है, तो इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बांग्लादेश भी एक सुविचारित नीति के तहत भारत के साथ वही सब करने लगेगा जोकि पाकिस्तान अपने जन्म के बाद से ही भारत के साथ करता आ रहा है।