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Written By ND

नेपाल के सौभाग्य के सिपाही 'गोरखा'

गोरखा राइफल्स फ्रंटियर फोर्स की 125वीं वर्षगाँठ पर विशेष

नेपाल के सौभाग्य के सिपाही ''गोरखा'' -
- अशोक मेहता, सुरक्षा विशेषज्ञ और लेखक
भारतीय सेना की सबसे सुसज्जित गोरखा बटालियन- दूसरी बटालियन फिफ्थ गोरखा राइफल्स फ्रंटियर फोर्स अल्मोड़ा में आज अपनी स्थापना की 125वीं सालगिरह मना रहा है। इस बटालियन की स्थापना एबटाबाद में हुई थी और कांगो में संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना अभियान पूरा करने के 40 वर्षों बाद यह अल्मोड़ा आई थी।
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यह वही एबटाबाद है जहाँ अमेरिकी सैनिकों ने अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का काम तमाम किया था। पाँचवीं गोरखा राइफल्स ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तीन विक्टोरिया क्रॉस जीते थे और इस तरह यह गोरखा बटालियन की पहली ऐसी इकाई बनी जिसने गोरखा रेजिमेंट को मिले कुल 12 विक्टोरिया क्रॉस में से तीन स्वयं जीती। विक्टोरिया क्रॉस भारत के परम वीर चक्र के समकक्ष इंग्लैंड का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है।

वैश्विक योद्धा के रूप में मशहूर गोरखा युद्धक्षेत्र में अपनी दिलेरी और सैन्य कुशलता के लिए जाने जाते हैं। गोरखाओं से आप तीन चीजें कभी नहीं छीन सकते- उसकी खुखरी, मांदल और रक्षी (एक प्रकार का नशीला पदार्थ)। इसके साथ चेहरे पर उनकी स्थायी मुस्कुराहट भी कभी मिटने वाली नहीं होती है। यही वह चीज है जो उन्हें जाँबाज सैनिक बनाती है। गोरखा इतने साहसी, वफादार और भरोसेमंद होते हैं कि वे दुनिया के तीन देशों- इंग्लैंड, भारत और नेपाल की सेनाओं तथा सिंगापुर, हांगकांग और ब्रुनेई के पुलिस बलों में शामिल हैं।

कहने की आवश्यकता नहीं कि वे अनेक निजी सेनाओं में भाड़े के सैनिकों के रूप में भी काम करते हैं। उल्लेखनीय है कि एक समय में क्यूबाई सेना को सोवियत साम्राज्य का गोरखा कहा जाता था। सोवियत संघ के लिए क्यूबाई सेना का वही महत्व था जो भारत, नेपाल और इंग्लैंड के लिए गोरखा सैनिकों का है।

विक्टोरिया क्रॉस पलटन : नेपाल के लिए ये भाड़े के सिपाही या सौभाग्य के सिपाही पर्यटन के बाद आय के दूसरे सबसे बड़े स्रोत हैं। सिर्फ भारतीय सेना में काम करने वाले गोरखाओं से ही नेपाल को हर साल 1000 करोड़ की आमदनी होती है। वीरता के बारे में सोचिए और सोचिए जरा दूसरी पाँचवीं गोरखा बटालियन के बारे में। भारतीय गोरखाओं को प्राप्त हुए 12 विक्टोरिया क्रॉस में से इसने तीन विक्टोरिया क्रॉस अकेले जीते, जिसके चलते इसे विक्टोरिया क्रॉस पलटन का खिताब अता किया गया था।

इन तीन विक्टोरिया क्रॉस में से दो तो इसने 24 घंटे के अंदर सिर्फ एक अभियान में ही हासिल किए थे। यह कार्रवाई 1944 में इंफाल के निकट मोर्टार ब्लफ में हुई थी। इसी कार्रवाई में सूबेदार नेत्र बहादुर थापा वीर गति को प्राप्त हुए थे, जिन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस दिया गया था। यह पुरस्कार नेत्र बहादुर थापा की विधवा पत्नी नामसारी थापिनी को दिया गया था, जो नेपाल के कोल्मा नामक स्थान की रहने वाली थी। नामसारी थापिनी को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान करने के लिए तत्कालीन फिल्ड मार्शल और वायसराय विस्काउंट वेवेल काबुल नदी के किनारे नवशेरा के पोलो ग्राउंड में स्वयं पहुँचे थे। लाल रिबन से बँधा यह दुर्लभ कांस्य पदक सेवस्तापोल में रूसियों से छीने गए बंदूक से बनाया गया था। (गोरखा सिपाहियों की अद्भुत वीरता से भरे किस्से जानने के लिए पढ़े अगला पन्ना.... )

विक्टोरिया क्रॉस से नवाजे जाने वाले दूसरे महान शख्स थे नायक अगन सिंह राय, जिन्होंने अकेले दम पर जापानियों से रणनीतिक रूप से एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोर्चा जीता था। यह एक तरह से मोर्टार ब्लफ की लड़ाई का पुनर्प्रदर्शन था। तीसरा विक्टोरिया क्रॉस, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गोरखा बटालियन द्वारा जीता जाने वाला पहला था, गजे घाले को मिला था और वह इंग्लैंड की वर्तमान रानी एलिजाबेथ द्वारा दिया गया था। नेपाल के राजा त्रिभुवन ने उन्हें "नेपाल तारा" का खिताब दिया, जबकि नेपालियों ने प्यार से उन्हें "हामरो वीर गजे घाले " की पदवी से नवाजा।

गोरखा आदर्श
गोरखा बटालियन का आदर्श वाक्य - 'काफिर होनो भंडा मारनो जाति' है। यानी कायर होने से मर जाना बेहतर है
जब 1962 में इस बटालियन को कांगो में शांति कायम करने के लिए भारतीय ब्रिगेड के रूप में चुना गया तो अगन और गजे दोनों ही इसमें शामिल थे। इन दोनों विक्टोरिया क्रॉस पाने वालों को 1993 में साथ-साथ तब देखा गया जब बीबीसी ने अपने सीरियल इंडियन आर्मीः 50 इयर्स आफ्टर दी राज के लिए इन दोनों को साथ-साथ कैमरे में उतारा। यह शूटिंग धर्मशाला में हुई थी और उन्हें "बुधोस" यानी नायक के रूप में चित्रित किया गया था।

पाँचवीं गोरखा बटालियन के दूसरे नायकों में सूबेदार मेजर गिरी प्रसाद बुराथोकी, जो 60 के दशक में नेपाल के प्रथम रक्षामंत्री बने, उनके पुत्र कर्नल श्रीप्रसाद बुराथोकी, जो दो दशक बाद नेपाल के पर्यटन मंत्री बने तथा दर्जनों अन्य गोरखा सैनिकों ने अनेक सरकारी उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया।

गौरवशाली इतिहास : गोरखा बटालियन सिर्फ विक्टोरिया क्रॉस मेडल्स तक ही सीमित नहीं रहा है। इसने 1949 में जनरल जेएन चौधरी की अगुवाई में हैदराबाद पुलिस कार्रवाई, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों तथा कश्मीर में अनेक आतंकरोधी कार्रवाइयों में मुख्य भूमिका निभाई, जिसके लिए उसे दो महावीर चक्र, तीन वीर चक्र, एक शौर्य चक्र, 14 सेना मेडल्स तथा अनेक अन्य पुरस्कार प्राप्त हुए।

1947 में आजादी मिलने और देश का बँटवारा होने के बाद गोरखा बटालियन में शामिल होने वाले भारतीय भी अगर इंग्लैंड से बेहतर नहीं तो उसके बराबर तो थे ही। गोरखा बटालियन की अगुवाई करने वालों में फिल्ड मार्शल सैम (बहादुर) मानेकसॉ, जनरल गोपाल बेउर (जिन्होंने सैम मानेकसॉ से सेना प्रमुख का पदभार लिया था), लेफ्टिनेंट जनरल श्रीनिवास सिन्हा, जो सैन्य प्रमुख बनते-बनते रह गए थे लेकिन जिन्हें नेपाल का राजदूत बनाया गया और बाद में असम तथा जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया, शामिल रहे हैं।

अपने जीवन के 86 वसंत देख चुके लेफ्टिनेंट जोरावर (जोरू) बख्शी जिन्होंने गोरखा बटालियन का कांगो में नेतृत्व किया और जिन्हें बाद में 1965 में हाजीपीर दर्रा की लड़ाई के लिए परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया, भारतीय सेना के सबसे सुसज्जित सिपाही हैं। दूसरी पीढ़ी के जाँबाजों में कर्नल केके शर्मा का नाम उल्लेखनीय है जिन्हें शौर्य चक्र, सेना मेडल तथा सेना प्रमुख से वीरता ने लिए प्रशंसा पत्र प्राप्त हो चुके हैं।

चालीस वर्षों के बाद गोरखा बटालियन अल्मोडा के सिकंदर लाइंस में वापस आ चुकी है। इस सप्ताह यहां नए नए कार्यक्रमों एवं अतिथियों के लाए जाने को लेकर जबर्दस्त चहल-पहल रहेगी और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अतिथि होंगे नेपाल के विभिन्न अंचलों से पहुंचने वाले पूर्व गोरखा सैनिक, जो अपने परिवार को वह बटालियन दिखाने के लिए ले आएंगे जिसकी सेवा में वे कभी रहे थे।

इस अवसर पर यहां अनेक अनमोल नजारे देखने को मिलेंगे, जोर-जोर से पीठ थपथपाई जाएगी, ठहाके गूंजेगे, गोरखा सैनिक नेपाली नृत्य झामरे करेंगे। इस दौरान गोरखा सैनिक जापानियों और पाकिस्तानियों के साथ हुई खूनी झड़पों और घात लगाकर मारने की कहानियां सुनाना भी नहीं भूलेंगे।

जब ईश्वर ने गोरखा को बनाया होगा तो उनके मन में एक आदर्श किस्म का इंसान और मनुष्यों में अभिजात्य की कल्पना रही होगी। ऐसे में यदि द्वितीय गोरखा बटालियन का आदर्श वाक्य - 'काफिर होनो भंडा मारनो जाति' है। यानी कायर होने से मर जाना बेहतर है, तो आश्चर्य कैसा।