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Written By WD

शिशु को दूध पिलाने के नियम

शिशु को दूध पिलाने के नियम -
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माँ की गोद के शिशु का आहार सिर्फ दूध ही होता है। यह दूध माता का भी हो सकता है और गाय, भैंस या बकरी का भी हो सकता है। शिशु को दूध पिलाने के कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करना शिशु के शरीर और स्वास्थ्य का पोषण व रक्षण करने के लिए बहुत जरूरी होता है।

यूँ तो शिशु के लिए माता का दूध ही सर्वाधिक उपयुक्त रहता है, लेकिन यदि माता अस्वस्थ हो, बहुत कमजोर हो, पर्याप्त मात्रा में दूध न आता हो या माता का दूध किसी रोग के कारण दूषित हो गया हो तो इन सब स्थितियों में शिशु को माता का दूध पिलाना उचित नहीं होता।

* यदि माता स्वस्थ और निरोग शरीर की हो तब तो उसे शिशु को दूध अवश्य ही पिलाना चाहिए, लेकिन ऐसी स्थिति न हो तो फिर गाय, भैंस या बकरी का दूध ही पिलाना चाहिए।

* गाय का दूध, माता के दूध के बाद सबसे श्रेष्ठ आहार होता है। यह दूध जल्दी पच जाने वाल तथा स्फूर्तिदायक होता है तथा इसमें बहुत कुछ गुण माँ के दूध जैसे ही मौजूद होते हैं।

* अन्न की अपेक्षा दूध जल्दी हजम होता है। हम जल्दी-जल्दी अन्न नहीं खा सकते, पर दूध पी सकते हैं और हजम भी कर सकते हैं। यह दूध का एक विशेष गुण है। शिशु को नियमित समय पर दूध अवश्य पिलाना चाहिए, पर सोते हुए बच्चे को जगाकर दूध नहीं पिलाना चाहिए।

* यदि शिशु को गाय या भैंस का दूध पिलाना हो तो गाय का दूध खूब गरम करके, मलाई हटाकर पिलाना चाहिए। भैंस का शुद्ध (बिना पानी मिला) दूध हो तो आधा पानी मिलाकर इतना उबालें कि पानी जल जाए, सिर्फ दूध रह जाए। इस दूध को कुनकुना गरम शिशु को पिलाना चाहिए।

* बच्चे को दूध पिलाने का समय निश्चित कर लेना चाहिए और निश्चित समय पर ही दूध पिलाना चाहिए। बच्चे को दूध में जरा सी शकर घोल देना चाहिए। दूध की शीशी हर बार गरम पानी से धो लेना चाहिए।

* माता यदि अपना दूध पिलाती हो तो भी निश्चित समय पर पिलाया करे और इस बात का खयाल रखे कि दूध पिलाते समय किसी भी कारण से उसका शरीर गरम न हो, ज्यादा थका हुआ न हो, विचार अच्छे हों, मन प्रसन्न हो। क्रोधित, शोक पूर्ण, दुःखी और कुढ़न वाली मनःस्थिति में बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए।

* लेटे हुए, सोते हुए और रोते हुए दूध नहीं पिलाना चाहिए। पालथी लगाकर बैठकर, बच्चे को गोद में लिटाकर दूध पिलाना चाहिए।

* जब तक शिशु के दाँत ठीक से निकल न आएँ, तब तक यदि माता अपना ही दूध शिशु को पिलाती रहे तो शिशु का शरीर कमजोर और रोगी नहीं होता तथा दाँत-दाढ़ आसानी से निकल आते हैं।