शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By गायत्री शर्मा

बच्चों की करे हौसला अफजाई

तुलना न करें बच्चे की

बच्चों की करे हौसला अफजाई -
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'अरे, पड़ोसी के रोहन को तो देखो। हर काम में कितना आगे है और हमारे बच्चे को तो कुछ आता ही नहीं।' इस तरह की कई भली-बुरी बातें हम अपने बच्चों के बारे में करते हैं।

हर बच्चे की ग्राह्यक्षमता अलग-अलग होती है। कोई बच्चा किसी बात को जल्दी से समझ लेता है और किसी को समझाने में घंटों लग जाते हैं।

ऐसे में बच्चे को बार-बार डाँटना व ताने देना उसमें हीन भावना भर देता है। जिससे वह अपने आपको निकृष्ट समझने लगता है और गलत कदम उठा लेता है।

* तुलना न करें :-
बार-बार अपने बच्चे को 'नाकारा' कहकर दूसरे बच्चे को उससे श्रेष्ठ बताना बच्चे के मन में आपके प्रति अविश्वास व हीन भावना पैदा कर सकता है। जिससे बच्चा आपसे खुलकर बात करने में झिझक महसूस करेगा।

कई बार माता-पिता अपने ही बच्चों में तुलना करने लगते हैं। हर बच्चा हर काम में परिपूर्ण हो, यह संभव नहीं है। हर बच्चे में कुछ न कुछ खामी हो सकती है। वह खामी तभी दूर होगी। जब हम बच्चे की तुलना न करके आउसकी हौसला अफजाई करेंगे।

  कई बार माता-पिता अपने ही बच्चों में तुलना करने लगते हैं। हर बच्चा हर काम में परिपूर्ण हो, यह संभव नहीं है। हर बच्चे में कुछ न कुछ खामी हो सकती है। वह खामी तभी दूर होगी। जब हम बच्चे की तुलना न करके आप उसकी हौसला अफजाई करेंगे।      
* प्रोत्साहित करें :-
बच्चे को बात-बात पर उलाहना देने की बजाय उसे प्रोत्साहित करें। उसे विश्वास दिलाए कि वह किसी से कम नहीं है। चाहे तो वह भी दूसरे बच्चों जैसा कार्य कर सकता है।

बच्चे भी चाहते हैं कि उनके अच्छे कार्यों की सराहना की जाएँ। आपका प्रोत्साहन बच्चे के मन में आपकप्रति विश्वास पैदा करेगा। जिससे बच्चा उस विश्वास पर खरा उतरने के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन करेगा

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* बच्चों के स्कूल जाएँ :-
माता-पिता को बच्चों के स्कूल जाकर उसके शिक्षकों, सहपाठियों व मित्रों की जानकारी रखनी चाहिए। उन्हें स्कूल का माहौल भी देखना चाहिए।


जिससे पता चल सके कि बच्चा स्कूल में क्या-क्या करता है। क्या स्कूल में आपके बच्चे को कमजोर कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है या उसे क्लासरूम से बाहर निकाल दिया जाता है।

  मजाक की बातों को भी कई बार बच्चे इतनी गंभीरता से ले लेते हैं कि वे बगैर कुछ सोचे-समझे हिंसक कदम उठा लेते हैं। बच्चे कच्ची माटी के समान होते हैं जिन्हें जैसा ढालोगे, वो वैसे ही ढल जाएँगे।      
यह सब आपको बच्चे के स्कूल जाने पर ही पता चलेगा। बच्चे को कोई भी परेशानी होने पर उसके शिक्षकों से इस संबंध में बात करें।

बच्चों के शिक्षकों से भी उसके साथ मारपीट की बजाय सुधारात्मक रवैया अपनाने को कहे। प्यार से दी गई समझाइश बच्चे की जिंदगी बदल सकती है। ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा है कि पढ़ाई में कमजोर बच्चे कभी आगे नहीं बढ़ सकते।

* प्यार से समझाएँ :-
आए दिन यह सुनने में आता है कि अमुक बच्चे ने दूसरे बच्चे की खिल्ली उड़ाई तो दूसरे दिन उस बच्चे ने कुंठा से ग्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। ऐसी घटनाएँ अब एक आम बात हो गई है।

मजाक की बातों को भी कई बार बच्चे इतनी गंभीरता से ले लेते हैं कि वे बगैर कुछ सोचे-समझे हिंसक कदम उठा लेते हैं। बच्चे कच्ची माटी के समान होते हैं जिन्हें जैसा ढालोगे, वो वैसे ही ढल जाएँगे।

उन्हें समझाने के लिए प्यार की आवश्यकता है। कई बार जो काम वे आपकी डाँट पर नहीं करते वही काम वह आपके प्यार से समझाने पर कर देंगे।