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Written By WD

प्रेग्नेंसी स्पेशल केयर टिप्स

डॉ. जिज्ञासा डेंगरा

Pregnancy Care Tips | प्रेग्नेंसी स्पेशल केयर टिप्स
ND
देश की कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान खुद की देखभाल की समुचित जानकारी नहीं होती। वे अपने से बड़ी किसी भी महिला की सलाह मान लेती हैं। कई बार सलाह देने वाली महिला को ही ठीक जानकारी नहीं होती। आइए जानते हैं कि गर्भवती महिला के लिए क्या सही और क्या गलत है।

गर्भावस्था को तीन भागों में बांटा गया है :

पहली तिमाही : पहले से तीसरे माह तक- इसमें शिशु पूर्ण रूप से बन जाता है। उसके हाथ, पैर व शरीर के अंगों को देखा जा सकता है। प्रथम 12 सप्ताह तक यह गर्भ अत्यंत संवेदनशील रहता है और उसको दवाइयों, जर्मन मीजल्स, रेडिएशन, तंबाकू, रासायनिक एवं जहरीले पदार्थों के संपर्क में आने से हानि हो सकती है।

इन प्रथम 12 हफ्तों में गर्भवती में कई परिवर्तन आते हैं- स्तन ग्रंथि विकसित होती है जिससे छाती में सूजन आती है और स्तनपान कराने की तैयारी करते हुए स्तन मुलायम होते हैं। इस समय आधार देने वाली ब्रा पहननी चाहिए। गर्भाशय का भार मूत्राशय पर आता है जिससे उसे बार-बार पेशाब लगती है। गर्भवती का मूड बदलता रहता है, जो मासिक धर्म के पहले के परिवर्तन जैसा है। गर्भावस्था के लिए बढ़े हुए हारमोन्स के स्तर से सुबह सुस्ती होती है व अरुचि और कई बार उल्टी करने की इच्छा भी होती है। कब्ज भी हो सकती है, क्योंकि बढ़ता हुआ गर्भाशय अंतड़ियों पर दबाव डालता है।

ये होते हैं परिवर्तन :
प्रोजेस्टरोन का स्तर अधिक होने की वजह से अंतड़ियों में स्नायुओं का खिंचाव धीमा हो जाता है जिससे एसिडिटी, अपच, कब्ज और गैस होती है। गर्भावस्था की शारीरिक एवं मानसिक मांग की वजह से महिला थकान महसूस करती है।

दूसरी तिमाही : चौथे से छठे माह का समय- इसके अंत तक बच्चे का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है और उसकी हलचल महसूस होती है। अधिकतर महिलाओं के लिए दूसरी तिमाही शारीरिक रूप से अधिक आनंददायक होती है। सुबह की सुस्ती कम हो जाती है, ज्यादा थकान महसूस नहीं होती और स्तनों में कोमलता भी कम होने लगती है। इस दौरान भूख अधिक लगना जैसी शिकायत हो जाती है।

लगभग 20 सप्ताह के बाद गर्भस्थ शिशु की हलचल महसूस होने लगती है। गर्भाशय की वृद्धि से मूत्राशय पर दबाव घट जाता है जिससे बार-बार पेशाब आने की समस्या कम होती है। ल्युकोरिया यानी सफेद रंग का डिस्चार्ज हो सकता है लेकिन रंगीन या रक्तयुक्त डिस्चार्ज होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें, यह समस्यासूचक है।

यह होती है समस्या :
वजन बढ़ने से पीठ दर्द हो सकता है। एसिडिटी, अपच और कब्ज की आशंका बनी रहती है।

तीसरी तिमाही : 7वें से 9वें माह तक शिशु का विकास पूर्ण रूप से हो जाता है। यह बढ़कर मां की पसलियों तक आ जाता है और तब उसका हिलना- डुलना कम हो जाता है। शिशु को पोषक तत्वों की आपूर्ति मां के रक्त से होती है। प्रसव की तिथि नजदीक आने के साथ तकलीफ बढ़ सकती है। पैरों, हाथों और चेहरे पर सूजन आ सकती है। नियमित अंतराल में झूठा प्रसव दर्द (फॉल्स पेन) हो सकता है। यह शिशु के जन्म की पूर्व तैयारी है।

ये न करें :
- चिकित्सक की बताई दवाओं के अलावा अन्य किसी दवा का उपयोग न करें। दवा के डोज में भी मन से परिवर्तन न करें। कोई भी तकलीफ होने पर चिकित्सक को बताएं।

- धूम्रपान या तंबाकू, नशीले पदार्थ, मदिरा आदि का सेवन न करें।

- गर्भावस्था के प्रारंभ व अंत में लंबी दूरी की यात्राओं से बचें। गर्भवती को मानसिक तनाव से दूर रहना चाहिए।

- गर्भावस्था एक प्राकृतिक अवस्था है तथा कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर इससे घबराने जैसी कोई बात नहीं है।

- खाली पेट रहने या उपवास से परहेज करें।

- भारी वस्तुएं न उठाएं व थकाने वाले कामों से दूर रहें।

- तली हुईं चीजें एवं पपीता न खाएं।

- फुटवेयर आरामदायक होने चाहिए। ऊंची एड़ी नही पहनें।

- कोई वस्तु उठाते समय आगे न झुकें। अपनी पीठ सीधी रखें और घुटने मोड़कर चीज उठाएं।