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Written By WD

पेट को डस्टबीन न बनने दें

पेट को डस्टबीन न बनने दें -
कविता मनीष नीमा

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लगभग न के बराबर शारीरिक गतिविधियाँ और घरों में बंद रहने की आदत अब बच्चों की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। ऊपर से "फास्ट फूड" अब उनकी पहली पसंद बन चुका है। स्नैक्स के नाम पर अक्सर बच्चे अटरम-शटरम चीजें पेट में डालते रहते हैं, नतीजतन ढेर सारी तकलीफें उन्हें घेर लेती हैं।

शांतनू ने मम्मी से कहा- 'मम्मी कल मेरी छुट्टी है? पिज्जा बनाना और उसमें खूब सारी 'चीज़' डालना।' पापा भी हाँ मैं हाँ मिलाते बोले- "कल बच्चों की छुट्टी है। बढ़िया-सा स्नैक्स बनाना।" यह एक घर की बात नहीं, अक्सर बच्चे आइसक्रीम, पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट्स आदि पर टूट पड़ते हैं, खासतौर पर छुट्टियों के दिन। लेकिन ऐसी चीजें आपके बच्चों की सेहत को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

आजकल के बच्चों को जंक फूड तथा कोल्डड्रिंक ही ज्यादा पसंद आता है। यही वजह है कि बच्चों में भी कम उम्र में वजन बढ़ने जैसी दिक्कतें आम हो गई हैं। अभी तक तो यह आनुवांशिक ही समझा जाता था कि माता-पिता दुबले हैं तो बच्चे भी दुबले ही होंगे और माता-पिता मोटे हैं तो बच्चा भी मोटा होगा। लेकिन अब दुबले-पतले पैरेंट के बच्चे भी मोटे होते हैं। इसकी एक वजह है खानपान में असंतुलन।

  माता-पिता को इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को क्या खिलाएँ कि उनका संपूर्ण विकास हो सके। जिन चीजों को वे खा रहे हैं, उनमें पौष्टिकता का स्तर क्या है?      
बच्चे या टीनएजर्स अब अपनी बर्थडे पार्टी घर पर नहीं, फास्ट फूड रेस्त्राँ पर मनाना पसंद करते हैं। पैरेंट्स को भी लगता है कौन घर में बनाने का झंझट करे, पैसे दिए और काम हो गया। फिर बच्चे खाकर या तो पढ़ाई करने बैठ जाएँगे या फिर टीवी देखने या कभी कम्प्यूटर के आगे। आजकल के बच्चे खेलकूद कम ही करते हैं। क्योंकि पढ़ाई का बोझ उनके दिमाग पर इतना ज्यादा होता है कि वे शारीरिक गतिविधियों में कम ही हिस्सा लेते हैं।

फिर जब छुट्टियाँ आती हैं तो उनका "स्नैक अटैक" शुरू हो जाता है। घर पर भी ये स्नैक्स जल्दी तैयार हो जाते हैं और आजकल के बच्चे खाने में बहुत ना-नुकुर करते हैं इसलिए माँ बच्चों की पसंद के अनुसार फटाफट तैयार होने वाले स्नैक्स तैयार करके एक तरह से बरी होना चाहती हैं। पहले की तरह पारंपरिक नाश्ते जो पौष्टिकता से भरे होते थे न अब माँओं को पसंद आते हैं न ही बच्चों को। उनका ध्यान तब जाता है जब उन्हें कोई टोक देता है कि आपका बच्चा कहीं मोटापे का शिकार तो नहीं हो रहा है।

फिर माता-पिता उसके खाने-पीने पर कंट्रोल करना शुरू करते हैं और बच्चों को भूखा रखते हैं। इससे तो अच्छा है कि पहले से ही जागरूक हुआ जाए ताकि यहाँ तक नौबत ही न आए। माता-पिता को इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को क्या खिलाएँ कि उनका संपूर्ण विकास हो सके। जिन चीजों को वे खा रहे हैं, उनमें पौष्टिकता का स्तर क्या है? खाना तभी संतुलित होगा जब उसमें विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण और फाइबर शामिल हों।

आप कामकाजी महिला हों या घरेलू, शहरी हों या ग्रामीण यह आपकी जिम्मेदारी है कि देखें आपका बच्चा क्या खा रहा है। यह मत खाओ, वह मत खाओ या तुम मोटे हो रहे हो, डाइटिंग करो कहने के बजाए बच्चों को भोजन की सही उपयोगिता की जानकारी देना चाहिए।

इन बातों का ध्यान रखें :-

* फ्रिज में चॉकलेट, मक्खन, मिठाई, केक, कुकीज, पेस्टी, आइसक्रीम की जगह ताजा मौसमी फल रखें।

* सॉफ्ट ड्रिंक की जगह फलों का ताजा रस, लस्सी, शिकंजी, ठंडाई पीने की आदत डालें।

* बच्चे जो भी खाएँ निश्चित जगह पर बैठकर खाएँ। टीवी और कम्प्यूटर के सामने बैठकर ना खाए।

* दिनभर खाने की आदत से बच्चों को बचाएँ।

* अकेलेपन, दुःख या गुस्से में कई लोग ज्यादा खाते हैं इस स्थिति से बच्चे को बचाएँ।

* कम वसा वाला पौष्टिक आहार दें। हरी सब्जियाँ, दालें, कच्ची सब्जियाँ, रेशेयुक्त खाद्य पदार्थ, सलाद, फल खिलाएँ।

* बच्चों को ताजा व गर्म भोजन खिलाएँ।

* नाश्ते में दूध, फल, अंकुरित अनाज, दलिया आदि खाने की आदत डालें।

* मैदे से बनने वाली खाद्य वस्तुओं से परहेज करें।

* बच्चों में खेलने-कूदने की आदत विकसित करें क्योंकि आजकल की पीढ़ी में इसकी कमी है।

* बच्चों को यह लालच ना दें कि तुम यह काम करोगे तो चॉकलेट मिलेगी।

* सिर्फ सही खानपान से ही अच्छी सेहत नहीं बनती, बल्कि फिट रहने के लिए दिनचर्या में भी बदलाव लाना जरूरी है। खान-पान के साथ फिटनेस प्रोग्राम पर भी ध्यान देना जरूरी है।

* यह देखें बच्चा कितना शारीरिक और मानसिक काम कर रहा है। उसी के अनुसार संतुलित खान-पान रखें।

* बच्चे की छुट्टी है और वह कभी-कभार जिद कर रहा है तो उसे स्नैक्स दे सकते हैं पर उसे रोज की आदत न बनाएँ क्योंकि उससे सेहत पर विपरीत असर होगा। उसकी छुट्टी है तो मजा दीजिए, सजा नहीं।