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Written By WD

बौद्धकालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना : साँची

बौद्धकालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना : साँची -
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संदीप पांडेय
भारतीय इतिहास की बौद्ध परंपरा के स्वर्ण युग का अमिट दस्तावेज है साँची। प्रदेश की राजधानी भोपाल से 46 किमी पर स्थित साँची के स्मारक भारत में स्थित बौद्ध स्मारकों में सर्वाधिक आकर्षक और अतुलनीय है।

एक खूबसूरत छोटी पहाड़ी पर स्थित इन स्मारकों में वि‍भिन्न स्तूपों के अलावा गुप्तकालीन मंदिर और विहार आदि शामिल है। विश्व धरोहर की सूची में शामिल इन स्मारकों का निर्माण तीसरी सदी ई.पू. से लेकर बारहवीं सदी ई. तक किया गया है।

प्रमुख आकर्षण-

स्तूप -: साँची स्थित इन स्तूपों का निर्माण प्राय: धार्मिक उद्देश्यों को लेकर किया गया था। कहा जाता है कि इन स्तूपों में बुद्ध और उनके शिष्यों के अवशेष रखे गए हैं। सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तूप क्रमांक एक का निर्माण महान मौर्य शासक अशोक ने करवाया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि अशोक की पत्नी ‘देव’ बेसनगर (वर्तमान विदिशा) के एक व्यापारी की बेटी थी। विदिशा साँची से 12 किमी दूर है।

स्तूप क्रमांक एक के चारो और स्थित चार द्वारों पर गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को चित्रों के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। खास बात यह है कि इन चित्रों में बुद्ध को प्रतीकों के रूप में दिखाया गया है। ये प्रतीक घोड़े-हाथी, तोरण, स्तूप आदि के रूप में है।

स्तूप क्रमांक दो पहाड़ी के शिखर पर स्थित है और यह पत्थर की सुंदर चारदीवारी से घिरा हुआ है। स्तूप क्रमांक तीन, पहले स्तूप के पास स्थित हैं। इस स्तूप के अंदरूनी भाग में बुद्ध के दो शिष्यों सारिपुत्र और महामोगल्लेना के अवशेष पाए गए हैं।

अशोक स्तम्भ - यह स्तम्भ, मुख्य स्तूप के दक्षिणी द्वार के पास स्थित है। वर्तमान में इसका स्तंभ ही वहाँ है। चार सिंहों वाला इसका प्रमुख शीर्ष नीचे संग्रहालय में देखा जा सकता है। एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए ये चार सिंह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक हैं। यह स्तम्भ वास्तुकला की ग्रीक बौद्ध शैली का उत्कृषट नमूना है।

गुप्तकालीन मंदिर - अब लगभग खंडहर हो चुका यह मंदिर 5वीं शताब्दी में बना था। यह मंदिर भारतीय मंदिरों की प्राचीन शैली की झलक देता है।

बौद्ध विहार - साँची में प्राचीन बौद्ध विहारो के भग्नावशेष देखे जा सकते हैं। जहाँ तत्कालीन बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।

बड़ा कटोरा - साँची में एक ही चट्टाको काटकर बनाया गया एक बड़ा कटोरा है। कहा जाता है कि सभी बौद्ध भिक्षु भिक्षा में मिला अन्न इसमें डाल देते थे, जिसे बाद में सभी को बाँट दिया जाता था।

संग्रहालय - पहाड़ी के ठीक नीचे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संग्रहालय की स्थापना की गई है। इस संग्रहालय में साँची के क्षेत्रों में मिली विभिन्न वस्तुएँ संग्रहित है। संग्रहालय का प्रमुख आकर्षण है, अशोक स्तम्भ का शीर्ष, बुद्द की विभिन्न मूर्तियाँ तथा विहारों में रहने वाले भिक्षुओं के बरतन आदि।

साँची के नजदीक अन्य आकर्षण-

हेलियोडोरस स्तंभ - साँची से 12 किमी दूरी पर प्राचीन नगरी बेसनगर (विदिशा) स्थित है। यहाँ पाँचवी शताब्दी में ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस द्वारा बनवाया गया स्तंभ दर्शनीय है।
उदयगिरी - विदिशा से चार किमी और साँची से सोलह किमी की दूरी पर स्थित हैं उदयगिरी की गु्‍फाएँ। इन गुफाओं में प्राचीन काल में हिंदू एवं जैन साधु-संत रहते थे। ऐतिहासिक महत्व की इन गुफाओं वाले पर्वत के शिखर पर छठी शताब्दी का गुप्तकालीन मंदिर है।

कब जाएँ - यूँ तो वर्षभर में किसी भी समय साँची की यात्रा की जा सकती है। लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च तक का समय साँची जाने के लिए बेहतर होता है। नवंबर में साँची में चैत्यगिरी विहार का उत्सव मनाया जाता है। उस समय बुद्ध के शिष्यों के अवशेष भी लोगों के दर्श‍‍न के लिए रखे जाते हैं।

कैसे जाएँ - साँची, झाँसी- इटारसी रेलमार्ग पर स्थित है। यहाँ एक छोटा सा रेलवे स्टेशन भी है, परंतु नजदीकी बड़ा स्टेशन विदिशा 12 किमी दूर है। भोपाल से साँची की दूरी मात्र 46 किमी है। सड़क मार्ग द्वारा एक से डेढ़ घंटे में आसानी से पहुँचा जा सकता है। भोपाल से टैक्सियाँ और बसें उपलब्ध है। भोपाल हवाई मार्ग से भी देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा़ हुआ है।

कहाँ ठहरें - साँची में ठहरने के लिए अनेक सुविधाएँ हैं। मप्र पर्यटन की ओर से लॉज एवं टूरिस्ट कैफेटेरिया में रूकने और भोजन की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त अनेक रेस्ट हाउस और लॉज हैं, जहाँ आराम से रूका जा सकता है।

बजट - छोटी जगह होने के कारण साँची बहुत महंगी जगह नहीं है। यहाँ आराम से ठहर कर घूमने के लिए लगभग 5000 रूपए पर्याप्त है।

टिप्स - 1. एक ऐतिहासिक स्थल होने के कारण साँची में पर्यटन का पूरा आनंद लेने के लिए गाइड अवश्य कर लें।
2. नकली गाइडों और दलालों से सावधान रहें।
3. साँची का धार्मिक महत्व होने के कारण वहाँ मर्यादित आचरण करें।