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विवाहेतर संबंध : ऎसा रिश्ता किस काम का?

विवाहेतर संबंध : ऎसा रिश्ता किस काम का? -
विशाल मिश्रा

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परिवर्तन ही संसार का नियम है लेकिन यह परिवर्तन कुछ चीजों तक सीमित है। आज की युवा पीढ़ी अब हर चीज में परिवर्तन चाहने लगी है। यहाँ तक कि उसे अपने जीवनसाथी को छोड़कर किसी और के साथ नया जीवन शुरू करने में भी कोई एतराज नहीं होता। इस तरह अनेक मामलों में तलाकशुदा लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

कुछ शादीशुदा लोगोएक पुरुष और एक स्त्री से जी नहीं भरता और ऎसे लोग बाद में अपने घर के आसपास या फिर ऑफिस में एक ऎसा नाजायज रिश्ता बना लेते हैं जिसे यह समाज कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता। ऎसे लोग अपनी जिंदगी जीने में मस्त हो जाते हैं। वे यह भी भूल जाते हैं कि इसका बुरअसकेवनहीदोनोपरिवारोपड़ेगा

रचना गुप्ता एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। वह शादीशुदा है और उसके दो बेटे भी हैं। हर दिन सुबह ऑफिस जाती है और अपना काम करके चली जाती है। पिछले कुछ दिनों से वह ऑफिस में दिखाई नहीं दी। उसकी अनुपस्थिति के बारे में तलाश की गई तो मालूम पड़ा कि वह अपने पति और बच्चों को अकेला छोड़कर उसी ऑफिस के किसी शादीशुदा आदमी के साथ अपनी जिंदगी सँवारने निकल चुकी है।

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रचना जैसे ही कई स्त्री और पुरुष हैं जो हमेशा यह भूल जाते हैं कि उनका यह फैसला पूरे परिवार को किसी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। उन बच्चों का क्या जो हर दिन शाम होते हुए अपने माता-पिता का इंतजार करते रहते हैं और उस जीवनसाथी का क्या जिसने अपने आपसे भी ज्यादा आप पर भरोसा किया था। वे दोनों तो अपनी नई दुनिया बनाने निकल पड़ते हैं। उन्हें मालूम नहीं रहता कि वे दोनों जिस आशियाने को बनाने जा रहे हैं उसकी नींव कितनी मजबूत है, क्या वह लम्बे समय तक टिक पाएगा?

मनोचिकित्सकों के अनुसार ज्यादातर पुरुष व महिला उस समय किसी दूसरे शादीशुदा लोगों के प्रेम में पड़ते हैं जब उन्हें उनके साथ रहने से सुकून व सुरक्षा महसूस होती है। महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि जब उसे सामने वाले के पास से भावनात्मक लगाव मिलता तब वह उस व्यक्ति से आकर्षित होती है। शादीशुदा पुरुष कुँवारे पुरुषों की तुलना में इन मामलों में ज्यादा अनुभवी रहते हैं इसलिए वे आसानी से उस महिला का दिल जीतने में सफल हो जाते हैं।

कहाँ गए हमारे सामाजिक मूल्य
आपको याद होगा फिल्म 'मदर इंडिया' ऑस्कर के लिए नामित तो हुई लेकिन ऑस्कर जीतने में उसे एक बड़ी बाधा यह खड़ी हुई थी कि सुनील दत्त की माँ (नरगिस) लाला (कन्हैयालाल) के पास अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जिस्म की सौदेबाजी करने से इनकार कर देती है।

  ऐसी महिला और पुरुषों को चाहिए कि वह किसी भी तरह के भावनात्मक लगाव से न जुड़ें। इस प्रकार के रिश्ते को समाज कभी भी नहीं स्वीकारेगा चाहे अपने प्यार की गुहार क्यों नहीं लगाएँ।      
ऑस्कर के निर्णायकों को यह बात नागवार गुजरी क्योंकि उनके लिए तो यह एक बड़े ही आश्चर्य का विषय होता है कि कैसे विधवा भारतीय नारी अपना जीवन अकेले काट लेती है। यही तो हमारे भारतीय संस्कार हैं। आखिर ऐसे पथ भटके लोगों ने क्यों भुला दिए वे मूल्य? आखिर किस चीज की खातिर अपने पति या पत्नी और बच्चों को छोड़कर जीवन की राह में कोई दूसरा जीवनसाथी तलाश कर सकता है।

जबकि भारतीय समाज में तो यदि लड़की कितने ही ऐशो-आराम वाले घर से आए, जरूरत पड़ने पर परिस्थितियों से समझौता कर अपने पति के साथ हर हाल में गुजारा करने को तैयार हो जाती है।

ऐसी महिला और पुरुषों को चाहिए कि वे किसी भी तरह के भावनात्मक लगाव से न जुड़ें। इस प्रकार के रिश्ते को समाज कभी भी नहीं स्वीकारेगा चाहे अपने प्यार की गुहार क्यों नहीं लगाएँ। बेहतर होगा ऐसा करने से पहले जरा सोचें आप किसी के पति या पत्नी हैं। किसी के माता-पिता हैं, इसलिए आपको यह शोभा नहीं देता। क्या यह स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता या उच्छृंखलता नहीं है? अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो शामिल हों एक ऐसी बहस में जो परिवारों को बिखरने से बचाने के लिए बेहद जरूरी हो गई है।