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Written By भाषा

प्रचार सामग्री बेचने वाले निराश

प्रचार सामग्री बेचने वाले निराश -
आर्थिक मंदी और चुनाव आयोग की हिदायतों का असर उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव प्रचार की सामग्री बेचने वालों पर भी इस बार अच्छा खासा देखा गया।

छोटी-छोटी झंडियाँ, पोस्टर, बैनर और बिल्ले विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को बेचकर धन कमाने वाले छोटे व्यापारियों को इस बार अपनी लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है।

आमतौर पर चुनाव शुरू होते ही शहर झंडियों और पोस्टरों से पट जाया करते थे लेकिन इस बार इक्का-दुक्का जगहों पर ही पोस्टर दिखाई दे रहे हैं।

पिछले 30 वर्षों से प्रचार सामग्री का कारोबार कर रहे राजेश कुमार सुमन ने बड़ी मायूसी से बताया कि इस बार प्रशासन की जबरदस्त कड़ाई से पूरा का पूरा प्रचार बाजार ही मंदा पड़ा हुआ है। राजेश ने कहा कि इस बार अभी तक दस-बारह हजार रुपए का भी कारोबार देहरादून में नहीं हो सका है, जबकि चंद वर्षों पूर्व तक दस लाख रुपए की सामग्री बिक जाना मामूली बात होती थी।

उन्होंने बताया कि राज्य के गठन के पूर्व अन्य हिस्सों के प्रत्याशी यहीं से चुनाव प्रचार सामग्री ले जाया करते थे, लेकिन इस बार अधिकांश प्रत्याशियों ने दिल्ली का रुख कर लिया है और वहीं से सीधे सामग्री ला रहे हैं।

चुनाव सामग्री के काम में लगे बुजुर्ग व्यापारी प्रकाश चौहान ने कहा कि पिछले 30 वर्षों के दौरान उन्होंने कई चुनाव देखे हैं। लोकसभा के चुनाव से लेकर स्थानीय निकाय तक के चुनाव में उनका कारोबार अच्छा खासा हो जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पा रहा है।

उन्होंने बताया कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से भी चुनाव सामग्री लाकर वहाँ के व्यापारी बेचा करते थे लेकिन इस बार आर्थिक मंदी ने लगता है प्रत्याशियों की भी हालत पतली कर दी है।

चौहान ने कहा कि अब परम्परागत तरीके से चुनाव प्रचार नहीं होता, बल्कि चुनाव प्रचार का तरीका 'हाईटेक' हो गया है और प्रत्याशी टेलीविजन तथा अन्य साधनों पर अधिक पैसा खर्च करने लगे हैं, इससे झंडियों, पोस्टरों और बिल्लों की खरीदारी बहुत ही कम हो रही है।

एक अन्य व्यापारी रामसिंह रावत ने बताया कि गाँवों में अभी भी परम्परागत चुनाव प्रचार सामग्रियों से ही लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन आधुनिक चकाचौंध के आगे प्रत्याशी ध्यान नहीं दे रहे हैं।