- राम यादव दुनिया को उजाला देने वाले सूर्य पर भी अंधेरा होता है। इस अंधेरे को सौर कलंक या सौर धब्बे भी कहते हैं। धब्बों की संख्या बढ़ने को सौर सक्रियता में वृद्धि और संख्या घटने को सौर सक्रियता में कमी का प्रतीक माना जाता है।
ठीक इस समय सौर धब्बों की संख्या बढ़नी, यानी सौर सक्रियता में वृद्धि होनी चाहिए थी। लेकिन, ऐसा है नहीं। वैज्ञानिक पहेलियाँ बूझ रहे हैं कि सूर्य के इस आलस्य का आखिर कारण क्या है?
अनुभव दिखाता है कि सौर सक्रियता दिखाने वाले कलंक औसतन हर 11 वर्ष बाद अपने चरम पर होते हैं। अगस्त के मध्य में रियो दी जनेरो में हुए अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान सम्मेलन में भी सूर्य की सुस्ती पर चर्चा हुई। अमेरिका में बौल्डर स्थित वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला में काम कर रही जर्मन सौर विशेषज्ञ मार्गरेट हाबाराइटर भी वहाँ उपस्थित थीं।
'सौर सक्रियता-चक्र औसतन 11 साल लंबा होता है। इसका मतलब है कि वह 9 से 14 साल तक भी हो सकता है। पिछली न्यूनतम सक्रियता को अब 12 वर्ष हो गए हैं। दूसरे शब्दों में, सूर्य इस समय शांत जरूर है, लेकिन वह अपने सामान्य दायरे के भीतर ही है।'
सूर्य की सुस्ती : सौर सक्रियता का पिछला चरम सन 2000 में देखा गया था। उसके बाद धब्बों की संख्या लगातार घटती गई। जुलाई 2006 में पहला नया धब्बा देखा गया। अनुमान था कि धब्बों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 2011-12 तक अपने चरम पर पहुँच जाएगी। तब यह संख्या 100 से ऊपर भी जा सकती है। लेकिन, अभी तक तो ऐसे कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। 2009 के पहले 90 दिनों में से 78 दिन एक भी धब्बा नहीं दिखाई पड़ा।
2008 में तो सूर्य ने अपनी सुस्ती की हद ही कर दी। 266 दिनों तक वह बिल्कुल कलंकहीन रहा। कलंकहीन रहने का सबसे लंबा रेकॉर्ड है 311 दिनों का, जिसे सूर्य ने 1913 में बनाया था। लंबी शांति का कहीं यह मतलब तो नहीं है कि सूर्य जब जागेगा तब आकाश को हिला देगा?
'दो भविष्यवाणियाँ हैं। वैज्ञानिकों का एक हिस्सा कहता है कि नई सौर सक्रियता बहुत जोरदार होगी। दूसरे कहते हैं कि वह खासी कमजोर होगी। पिछले रुझानों से यही आभास मिलता है कि वर्तमान दुर्बलता जितनी लंबी चलेगी, भावी सक्रियता भी उतनी ही मद्धिम होगी। वैसे, दोनों की संभावना 50 -50 समझनी चाहिए।'
सौर सक्रियता का महत्व : सौर सक्रियता को, यानी सूर्य पर के काले धब्बों के घटने-बढ़ने को आखिर इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है? इसलिए, क्योंकि ये धब्बे ही उन सौर आँधियों को जन्म देते हैं, जो कई बार पृथ्वी तक भी पहुँचती हैं और यहाँ रेडियो-टेलीविजन जैसी दूरसंचार सेवाओं को अस्तव्यस्त कर सकती हैं।
समझा जाता है कि सौर धब्बे तब बनते हैं, जब सूर्य के भीतर विस्फोट-जैसी किसी खलबली से ऐसे प्रचंड चुंबकीय क्षेत्र बनते हैं, जो किसी फौव्वारे की तरह तेज़ी से ऊपर उठते हैं और अपने साथ के अरबों टन परमाणु कणों को अंतरिक्ष में उछाल देते हैं।
20 साल पहले, 1989 में ऐसी ही एक घटना के साथ सूर्य ने कुछ ही मिनटों के भीतर एक अरब टन अयनीकृत परमाणु कणों का एक ऐसा बादल उछला, जो 10 लाख किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से भी टकराया।
ध्रुवीय प्रकाश, बिजली गायब : 12 मार्च की उस रात को रंगीन ध्रुवीय प्रकाश की एक ऐसी अद्भुत लीला पैदा हुई, जिसे अमेरिका में फ्लोरिडा और क्यूबा तक देखा गया। साथ ही कैनडा के क्यूबेक प्रांत में बत्तियाँ गुल हो गईं। 12 घंटे तक बिजली गायब रही। पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे बहुत से उपग्रह भी बुरी तरह प्रभावित हुए।
संयोग से ऐसी प्रचंड सौर आँधियाँ बहुत अधिक नहीं आतीं। तब भी, हर सौर सक्रियता के दौरान दो-तीन बार आ सकती हैं। यदि उनकी भविष्यवाणी की जा सके, तो कितना अच्छा रहे। अभी-अभी सूर्य ने सक्रिय होने का पहला संकेत दिया है। उसके चुंबकीय क्षेत्र के ध्रुव बदल गए हैं। तो क्या अब सौर आँधियों के लिए तैयार हो जाना चाहिए?
मार्गरेट हाबरराइटर कहती हैं, 'न्यूनतम से अधिकतम की ओर बढ़ रही सौर सक्रियता की विकिरण-मात्रा के बीच 0.1 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव हो सकता है। लेकिन, विकिरण के स्पेक्रट्रम को, उसके वर्णक्रम को यदि बाँट कर देखें, तो यह उतार-चढ़ाव कुछेक क्षेत्रों में दो गुना भी हो सकता है या धुर-अल्ट्रावॉयलेट अथवा एक्स-रे किरणों के मामले में दस से सौ गुना भी हो सकता है।'
भविष्यवाणी टेढ़ी खीर : दूसरे शब्दों में, यह भविष्यवाणी कर सकना बहुत ही मुश्किल है कि सूर्य के धब्बों की संख्या बढ़ने से किस प्रकार का विकिरण सबसे अधिक बढ़ेगा। गनीमत है कि पृथ्वी का वायुमंडल हर सौर आँधी वाले विकिरण से हमारी रक्षा करता है, हालाँकि ऐसा करते हुए वह कुछ गरम भी हो जाता है।
हमारे वायुमंडल का तापमान सूर्य के धब्बे बढ़ने के साथ बढ़ता और धब्बे घटने के साथ घटता है। सन 1650 से 1700 के बीच सूर्य 50 वर्षों तक काफ़ी निष्क्रिय रहा था। तब, करीब उसी समय पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर एक लघु हिमयुग आ गया था। लेकिन, इस समय वैज्ञानिकों को किसी हिमयुग से अधिक यह चिंता सता रही है कि सौर विकिरण से हमारी रक्षा करने वाले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में 2012 में एक असाधारण बड़ा छेद पैदा होने वाला है। यदि उसी समय सौर सक्रियता अपने चरम पहुँचती है, तो दूरसंचार और बिजली आपूर्ति सेवाओं में भारी गड़बड़ी पैदा होगी।
कहने की आवश्यकता नहीं कि सूर्य का उजाला ही नहीं, उसका अंधेरा भी पृथ्वी पर हमारे जीवन के लिए असीम महत्व रखता है।