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Written By DW

आसान नहीं बॉलीवुड की राह: प्रियंका चोपड़ा

आसान नहीं बॉलीवुड की राह: प्रियंका चोपड़ा -
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अपनी नई फिल्म बर्फी के प्रमोशन के सिलसिले में कोलकाता पहुंचती प्रियंका ने अपने बचपन, बॉलीवुड में अपने शुरुआती संघर्ष और पसंद के बारे में डॉयचे वेले से बातचीत की। पेश हैं प्रियंका के साथ इस खास बातचीत के प्रमुख अंश।

मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद फिल्मी दुनिया में कदम रखने के बावजूद प्रियंका चोपड़ा की राह आसान नहीं रही। प्रियंका बताती हैं कि कई फिल्में साइन करने के बाद इसलिए उनके हाथ से निकल गईं कि कोई और अभिनेत्री सिफारिश लेकर निर्माता के पास पहुंच गई थी। वह कहती हैं कि गैर-फिल्मी पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए बॉलीवुड में पांव जमाना बेहद मुश्किल है। लेकिन अब वह अपने काम और अपनी पहचान से खुश हैं।

*आज आप बॉलीवुड की एक स्थापित अभिनेत्री हैं। लेकिन आपके शुरुआती दिन कैसे रहे?
-मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बावजूद शुरुआती दिनों में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे साइन करने के बावजूद कई बार तो इसलिए फिल्मों से बाहर कर दिया गया कि कोई और अभिनेत्री किसी तगड़ी सिफारिश के साथ निर्माता के पास पहुंच गई थी। लेकिन मैं उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। इससे मुझे दुख तो हुआ। लेकिन यह सीख भी मिली कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए मैंने किसी भी मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। अपनी पहली फिल्म में तो मैं इंटरवल के बाद पर्दे पर आई और क्लाईमेक्स के पहले ही मेरी मौत हो गई। तो मेरी शुरुआत कुछ इसी तरह हुई।

*बॉलीवुड में आने से पहले क्या आपको इस बात का अंदेशा था?
-मुझे अंदेशा तो था, लेकिन यहां इस कदर हालात से जूझना होगा, यह नहीं सोचा था। लोग भी पूछते थे कि मैं यहां कैसे तालमेल बिठा सकूंगी। लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था। मुझे लगता था कि अगर मैं अमेरिकी स्कूल में एडजस्ट कर सकती हूं और ऊंची एड़ी के सैंडल पहन कर फैशन की दुनिया में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकती हूं तो अभिनय भी सीख सकती हूं।
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*आपका बचपन कैसा गुजरा?
-पिताजी के सेना में होने की वजह से मेरा बचपन बरेली, लद्दाख, पुणे, बॉस्टन, न्यूयॉर्क, शिकागो और दिल्ली जैसे शहरों में घूमते हुए बीता। हर शहर ने मुझे कुछ नया सीखने की प्रेरणा दी। बॉस्टन में स्कूल की पढ़ाई के दौरान मुझे रंगभेद से भी जूझना पड़ा। लेकिन हालात ने मुझे हर परिस्थिति में जीना सिखाया। अमेरिकी प्रवास ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।

*आपका पहला म्यूजिक एलबम ‘इन माई सिटी’ भी हाल में आया है। गाने की प्रेरणा कैसे मिली?
-संगीत का मेरे जीवन पर गहरा असर रहा है। मैं तो एबीसीडी से पहले ही गाना सीख गई थी। लेकिन सात खून माफ की शूटिंग के दौरान यूनिवर्सल ने मुझसे एलबम के लिए संपर्क किया। तब मुझे यह कुछ अजीब लगा था। इसके बावजूद मैंने इसके लिए हामी भर दी। इसकी वजह यह है कि मैं अपने जीवन में हमेशा लीक से अलग हट कर काम करना चाहती हूं।

*आप खुद को किस नजरिए से देखती हैं?
-मैं खुद को संपूर्ण या परफेक्ट नहीं मानती। बॉलीवुड की दूसरी अभिनेत्रियां इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। लेकिन मैं हमेशा अस्त-व्यस्त रही हूं। मुझमें कई कमियां थीं। लेकिन उनको दूर करने के लिए मैंने काफी मेहनत की और अब मेरा व्यक्तित्व काफी हद तक बदल गया है।

*क्या आप शुरू से ही हिंदी फिल्म उद्योग में आना चाहती थीं?
-नहीं, बचपन में तो मैं इंजीनियर बनना चाहती थी। लेकिन मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद जिंदगी में एक नया मोड़ आ गया।
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*आपको कैसी भूमिकाएं पसंद हैं?
मैं हमेशा चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं तलाशती हूं। बर्फी में भी मेरी भूमिका अलग किस्म की है। कठिन किरदार निभाने में मुझे मजा आता है। यह फिल्म संदेश देती है कि इंसान प्रतिकूल हालात में भी खुश रह सकता है। मुझे इस तरह की भूमिकाओं में संतोष मिलता है।

*जीवन के प्रति आपका नजरिया क्या है?
-जीवन खतरे उठाने और चुनौतियों से जूझने का नाम है। मैं नो रिस्क नो गेन की कहावत पर भरोसा रखती हूं। जीवन में अगर खतरे और चुनौतियां नहीं हो तो वह नीरस हो जाता है। खतरों ने मुझे कठिन से कठिन हालात से जूझने और आगे बढ़ने का जज्बा सिखाया है।

*आखिरी सवाल। शादी के लिए कैसा आदमी चुनेंगी?
-शादी तो उसी से करूंगी जो मेरे पापा जैसा हो। मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि वह करता क्या है। लेकिन वह ऐसा होना चाहिए जिसका मैं सम्मान कर सकूं। उसमें पारिवारिक मूल्यबोध होना चाहिए और साथ ही वह बुद्धिमान भी हो। अब यह मत पूछिएगा कि शादी कब करूंगी। हर चीज का समय तय होता है।

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: ईशा भाटिया