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Written By DW

तीसरे मोर्चे के गठन की सुगबुगाहट

तीसरे मोर्चे के गठन की सुगबुगाहट -
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भारत में वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह ने तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद शुरू कर दी है। बीजेपी विरोधी पार्टियों को जुटाने पर चर्चा

मुलायम सिंह अब उस भूमिका में उतर रहे है जो कभी वीपी सिंह, देवीलाल और एनटी रामाराव से लेकर हरिकिशन सिंह सुरजीत निभा चुके है। उनका सपना इस तीसरे मोर्चे के सहारे केंद्र की सत्ता पर काबिज होना है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 12-13 सितंबर को हुई दो दिवसीय बैठक में कांग्रेस और भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियों को एक साथ जुटाने पर ही चर्चा हुई।

समाजवादी पार्टी ने अपनी बैठक में केंद्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार पर सीधा हल्ला बोलते हुए तीसरी ताकतों की एकजुटता पर जोर दिया है ताकि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा सरकार के गठन का रास्ता साफ हो सके।

हाल के वर्षों में पहली बार समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ सीधा और निर्णायक हल्ला बोला है। इससे तीसरी ताकतों की एकजुटता का रास्ता भी खुल सकता है।

समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद पार्टी महासचिव मोहन सिंह ने कहा, 'क्षेत्रीय दलों को अब कांग्रेस सरकार का पिछलग्गू बनने की बजाए नए गठबंधन की तरफ देखना चाहिए। इस टिप्पणी से समाजवादी पार्टी की आगे की राजनीति को ठीक से समझा जा सकता है।'

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुलायम सिंह यादव, मोहन सिंह, आजम खान, जया बच्चन, अखिलेश यादव, राम गोपाल यादव, किरणमय नंदा, अनुराधा चौधरी, शिवपाल यादव और राजेंद्र चौधरी समेत दिग्गज समाजवादी नेता शामिल हुए। कार्यकारिणी में खांटी समाजवादी मोहन सिंह ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया।

राजनीतिक प्रस्ताव में कांग्रेस सरकार की जमकर बखिया उधेड़ी गई है और देश के मौजूदा हालात के लिए उसे ही जिम्मेदार बताया गया गई जिसमें महंगाई और भ्रष्टाचार को सबसे गंभीर मुद्दा बताया गया है। आम लोगों की बदहाली के लिए कांग्रेस की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार बताया गया है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि अगला लोकसभा चुनाव वह अकेले लड़ेगी।

सपा के राजनीतिक प्रस्ताव की भाषा से साफ है कि कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाने वाले मुलायम सिंह का तेवर अब बहुत कड़ा होता नजर आ रहा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूपीए की सरकार आते ही राजनीतिक भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गई है। लाखों-करोड़ों की लूट और बेईमानी हुई।

आगे कहा गया कि हमने सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया था लेकिन यह भी साफ कर दिया था कि महंगाई और भ्रष्टाचार के सवाल पर इस सरकार को कोई समर्थन नही रहेगा। हम गुण-दोष के आधार पर सरकार का समर्थन करेंगे। सपा की दलील है कि देश की जनता को बार-बार होने वाले चुनावी बोझ से बचाने के लिए ही वह कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की बैसाखी बनती रही है।

प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि मनमोहन सरकार की आंतरिक नीतियां राष्ट्र के लिए आत्मघाती है। असम की घटनाएं आजाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। पार्टी ने असम सरकार को इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हुए उसे बर्खास्त करने की भी मांग उठाई है।

इसके अलावा महाराष्ट्र में राज ठाकरे का बिना नाम लिए कहा गया है कि कांग्रेस की शह पर मुंबई में नए तरह का आतंकवादी चेहरा उभर रहा है। पार्टी ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है। जबकि शुरू में ही यह कह दिया गया है कि संसद के चुनाव कभी भी हो सकते हैं। पार्टी 2014 पर भरोसा कर निश्चिन्त नहीं बैठ सकती है।

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः आभा मोंढे