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Written By WD

संजय जगदाले : ऊंचा कद, ऊंचे आदर्श

संजय जगदाले : ऊंचा कद, ऊंचे आदर्श -
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मेजर एमएम जगदाले के दूसरे बेटे संजय जगदाले की पहचान किसी जमाने में होलकर नगरी की नगरी इंदौर में महज सीसीआई नामक छोटे से क्लब के संचालनकर्ता के रूप में हुआ करती थी, जो नेहरू स्टेडियम से बिलकुल सटे मैदान पर अपनी गतिविधि संचालित करता था। बाद में वे सीधे मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव बने। फिर उन्हें दो मर्तबा राष्ट्रीय क्रिकेट चयनकर्ता बनाया गया, बीसीसीआई में पहले वे संयुक्त सचिव बने और फिर उन्होंने सचिव पद की गरिमा बढ़ाई। इस तरह ऊंचे कद से ऊंचे आदर्श स्थापित करने की वहज से वे बीसीआई जैसे दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट संगठन में अध्यक्ष के बाद सबसे बड़ी जिम्मेदारी वहन करते रहे।

स‍ंजय जगदाले यानी ईमानदारी की प्रतिमूर्ति...क्रिकेट जैसे खेल में जहां धनवर्षा होना आम बात है और क्रिकेटरों पर करोड़ों रुपए न्यौछावर होते हो, वहां संजय ने अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। बीसीसीआई के उस संजय जगदाले को जानने के पहले यह जान लीजिये कि यह इंसान हमेशा मैदान से जुड़ा रहा और अपनी सौम्यता से उसने कभी का दिल जीता। कभी चेहरे पर यह भाव नहीं आया कि वह इतने ऊंचे औहदे पर पहुंच गया है।

इंदौर से मेजर एमएम जगदाले का गहरा नाता रहा है और वे तब की होलकर टीम के प्रमुख स्तंभ थे, जिसकी कमान कर्नल सीके नायडू के हाथों में हुआ करती थी। तुकोगंज के छोटे से मकान में रहने वाले संजय ने बाद में श्रीनगर एक्सटेंशन में छोटा सा मकान बनाया और सालों तक मोटरसाइकल पर मैदान आया जाया करते थे।

मप्र क्रिकेट एसोसिएशन में माधवराव सिंधिया का वरद हस्त सालों तक एमके भार्गव की पीठ पर रहा लेकिन जब विश्वास उठने की नौबत आई तब संजय जगदाले ने पहली बार उनके खिलाफ मप्र क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव पद का चुनाव लड़ा और जीतकर बताया। आज जो ऊषा राजे स्टेडियम दूधिया रौशनी में नहा रहा, उसकी नींव के पत्थर रहे हैं संजय जगदाले। माधवराव सिंधिया का सपना था कि इंदौर में मप्र क्रिकेट एसो. का खुद का अपना स्टेडियम हो लेकिन अचानक विमान दुर्घटना में वे चल बसे।

बाद में संजय की टीम ने माधवराव के बेट ज्योतिरादित्य के साथ मिलकर शहर को शानदार स्टेडियम का नायाब तोहफा दिया और उसमें 6 अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय मैच भी संयोजित हो चुके हैं। संजय जगदाले का क्रिकेट करियर रणजी ट्रॉफी तक सीमित रहा लेकिन अपनी ईमानदारी के साथ ही कर्तव्यनिष्ठता ने उन्हें शरद पवार का मुरीद बना दिया। पवार जानते थे कि संजय की कार्यशैली पर कोई सपने में भी अंगुली नहीं उठा सकता, इसी का नतीजा रहा कि वह चयनकर्ता से लेकर बोर्ड सचिव की कुर्सी तक सुशोभित करते रहे।

संजय कभी खुद भारतीय टीम के लिए नहीं खेल सके लेकिन उनके शिष्य नरेंद्र हिरवानी न केवल भारतीय टीम के लिए खेले बल्कि उन्होंने चेन्नई टेस्ट में 16 विकेट लेकर एक कीर्तिमान भी स्थापित कर डाला। जो लोग संजय को निजी रुप से जानते हैं, उन्हें पता है कि वह कभी कोई गलत काम नहीं कर सकते है और न ही किसी की सिफारिश करने के लिए उन्हें कोई बाध्य कर सकता है।

इंदौर ने देश के क्रिकेट को दो-दो सचिव दिए हैं। किसी समय जज साहब के नाम से मशहूर अनंत वागेश कनमड़ीकर ने बीसीसीआई के सचिव पद की गरिमा बढ़ाई तो संजय के कार्यकाल में भारतीय टीम 28 साल बाद विश्वकप को जीतने में कामयाब रही।

संजय जगदाले देश के क्रिकेट को ऊंचाईयों पर ले जा रहे थे कि स्पॉट फिक्सिंग और बीसीआई अध्यक्ष एन.श्रीनिवासन के अड़ियल रवैये ने इस जैंटलमेन क्रिकेट को अंधी खाई में धकेल दिया। आने वाले समय में क्रिकेट की रोचकता और रोमाचंकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन यह तय है कि भारतीय क्रिकेट को संजय जगदाले जैसा दूसरा कोई ईमानदार सचिव ढूंढे नहीं मिलेगा। (वेबदुनिया न्यूज)