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Written By भाषा
Last Modified: मुंबई , रविवार, 25 मार्च 2012 (20:54 IST)

महाशतक पर सचिन तेंडुलकर का दार्शनिक जवाब

मैंने भगवान से पूछा, मुझे इतना लंबा इंतजार क्यों करवाया

महाशतक पर सचिन तेंडुलकर का दार्शनिक जवाब -
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सचिन तेंडुलकर से आज जब उनके 100वें अंतरराष्ट्रीय शतक के लंबे इंतजार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दार्शनिक अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मैंने शतक लगाने के बाद भगवान से पूछा कि उन्होंने इसके लिए मुझे इतना लंबा इंतजार क्यों करवाया?

सचिन ने कहा, ‘मैं हमेशा ईश्वर में विश्वास करता हूं। मेरे पिताजी भी ईश्वर को मानते थे और मेरी मां भी। यहां तक कि जब मैं स्कूली दिनों में शिवाजी पार्क पर खेलता था तो ड्रिंक्स के दौरान मैं दौड़कर पास में स्थित गणपति मंदिर जाता था और वहां पानी पीता था। मुझे वहां का पानी पीने के बाद सकारात्मक ऊर्जा मिलती थी।

उन्होंने कहा, ‘जब मैंने 100वां शतक पूरा किया तो मैंने अपना बल्ला देखा और आसमान की तरफ देखकर भगवान से पूछा कि मैंने क्या गलत किया था? इसके लिए इतना लंबा इंतजार क्यों करना पड़ा? यह मेरे लिए मुश्किल समय था। मेरी प्रतिबद्धता में कहां कमी रह गई थी। आखिर में मैं उसे हासिल करने में सफल रहा और मैंने ड्रेसिंग रूम की तरफ देखा तथा खिलाड़ियों की तरफ अपना बल्ला और तिरंगा किया जो कि मेरे हेलमेट पर लगा है। मैंने यह देश के लिए किया था और सभी इसका हिस्सा थे।'

तेंडुलकर ने कहा मुझे याद है कि जब मैं बच्चा था तब मेरे कोच (रमाकांत आचरेकर) मुझसे कहा करते थे कि यह खेल कभी क्रूर भी हो सकता है। चिंता मत करो प्रत्येक ऐसे दौर से गुजरता है। जब आप अच्छा करते हो तो खुद से सवाल नहीं करते हो कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। आपको लगता है कि आपने अच्छा किया। यहां तक कि बुरा दौर भी गुजर जाएगा। कुछ भी स्थायी नहीं होता।

तेंडुलकर ने कहा अपने स्कूली दिनों में मैंने काफी कुछ सीखा और इन चीजों से मुझे काफी मदद मिली। इन सबसे उपर खेल का सम्मान करना जो कि मैंने सीखा।

तेंडुलकर ने महाशतक के इस लंबे इंतजार पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा विश्वकप में जब मैंने 99वां शतक लगाया तब कोई भी मेरे 100वें अंतरराष्ट्रीय शतक के बारे में बात नहीं कर रहा था क्योंकि सभी का ध्यान विश्वकप पर था। लेकिन जैसे जैसे समय गुजरने लगा जो लोग मीडिया की सुनते हैं वे लोग मुझे 100वें शतक के लिए शुभकामनाएं देने लगे लेकिन इनमें मेरे दोस्त और परिजन नहीं थे।

उन्होंने कहा यदि क्रिकेट की दृष्टि से देखा जाए तो यह मुश्किल दौर था क्योंकि लोगों की शुभकामनाएं नहीं थम रही थी। अब कम से कम वे मेरे 100वें शतक के लिए दुआ नहीं करेंगे और मेरे कानों को भी कुछ आराम मिलेगा। मैं इन सभी दुआओं के बारे में शिकायत नहीं कर सकता।

अपनी पिछले एक साल की फार्म के बारे में तेंडुलकर ने कहा ऐसा भी समय आया जब मैंने अच्छी बल्लेबाजी नहीं की। ऐसा समय भी आया जब मुझे लगा कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मैं समझता हूं कि कभी भाग्य भी आपके साथ होना चाहिए। कुछ अवसरों पर भाग्य ने साथ नहीं दिया क्योंकि जहां तक तैयारी, मेरी प्रतिबद्धता और जुनून की बात है तो वो सभी थे।

उन्होंने कहा उम्मीद नहीं छोड़ना महत्वपूर्ण होता है। मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी और लगातार अपना अच्छा प्रदर्शन किया। यहां तो मैंने केवल एक साल का इंतजार किया लेकिन विश्वकप के लिए तो 22 साल तक इंतजार किया। (भाषा)