गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By Author जयदीप कर्णिक

इसे खेल ही रहने दें तो बेहतर

इसे खेल ही रहने दें तो बेहतर -
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तमाशा देखना इंसान की मूल प्रवृत्ति में शामिल है। खास तौर पर दो प्राणियों को, दो लोगों को या दो टीमों को भिड़ाकर तमाशा देखना। मुर्गों की लड़ाई, कबूतरबाजी, जान जोखिम में डालकर सांड से लड़ाई हो या मल्लयुद्ध, इन सबमें इंसान को खूब मजा आता रहा है। खेलने वाले की जान चली जाए तो भी। सभ्यता के साथ खेल और खिलाड़ी भावना का विकास हुआ। लेकिन ये पाशविक प्रवृत्ति कहीं ना कहीं लौट आती है।

भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट विश्व कप के सेमीफाइनल मैच को लेकर जो प्रचार-युद्ध चल रहा है, वह डरावना है। पूरे उपमहाद्वीप में ही क्रिकेट को लेकर जबर्दस्त जुनून है। 26/11 के दर्दनाक जख़्म पर क्रिकेट की कूटनीति का मरहम लगाने से भी गुरेज नहीं, गर ऐसा जख़्म दोबारा ना देने और जख्म देने वालों को कड़ी सजा दिलाने की दवा भी इस मरहम में शामिल हो। लेकिन इस सारी कवायद में जो इन सबका मूल है, जो इस सबका केंद्रबिन्दु है, क्रिकेट की पिच, जिस पर ये बिसात बिछाई जा रही है, कहीं उसी का दम ना निकल जाए। प्रचार की वजह से बुधवार के मैच में दोनों ही देशों के खिलाड़ियों पर जो मानसिक दबाव पड़ेगा, उसकी कल्पना भी मुश्किल है।

दरअसल असली मजा तो खेल का है, उससे जुड़े रोमांच का है। वैसे ही व्यावसायिकता ने इस खेल का नैसर्गिक आनंद बहुत हद तक कम किया है। इस खेल से जुड़े पैसे ने खेल के लाइव कवरेज के दौरान होने वाले कमर्शियल ब्रेक को खेल से बड़ा बना दिया है। खिलाड़ी ब्रॉण्ड एम्बेसेडर बन गए हैं।
क्रिकेट के इस गन्नो से निकलने वाले रोमांच रूपी रस को ज्यादा से ज्यादा निचोड़ लेने के चक्कर में उसे इतनी बार तोड़-मरोड़कर मशीन में डाला जाने लगा है कि उसका रोमांच खत्म हो जाने का डर भी अब सच बनकर सामने खड़ा है। इस सबके बावजूद और मैच फिक्सिंग जैसी कड़वी सच्चाई सामने आने के बाद भी यदि लोगों का इस खेल के प्रति लगाव बना हुआ है, तो उसे बचाए रखना बहुत जरूरी है।

निश्चित ही भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच को दोनों देशों के इतिहास की काली परछाइयों से पूरी तरह मुक्त करना मुश्किल है। लेकिन इस समय मीडिया और खास तौर पर टीवी चैनल जिस तरीके से इस मैच को लेकर हौवा खड़ा कर रहे हैं, वह आम जनता के बीच तनाव कम करने की बजाए बढ़ा रहा है।

मैच के बारे में बात करने की बजाय दोनों देशों के बीच हुए युद्धों के विजुअल्स दिखाए जा रहे हैं। सीमा पर तैनात फौजियों के इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। भारत-पाक मैच के तनाव का भी एक बड़ा बाजार है। ये बाजार इस तनाव के हर मिलीमीटर से पैसा बना लेना चाहता है। खूब खींचे जाने पर कहीं रस्सी ही ना टूट जाए, इसकी परवाह भी इस बाजार को नहीं है। उसे तो सिर्फ पैसे से मतलब है।

ऐसे में तो अब सारा दारोमदार देश की जनता पर है। उसे चाहिए कि वह क्रिकेट के प्रति अपनी दीवानगी को यों किसी के हाथों बाजार में ना बिक जाने दे। ये खेल है और खेल में हार-जीत चलती रहती है। इस भावना के साथ क्रिकेट का आनंद लें तो उससे क्रिकेट का भी भला होगा और देश का भी। इससे भी जरूरी ये है कि हम खेल को धर्म और इतिहास के छालों से जोड़कर कहीं पाशविक ना हो जाएँ।