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Written By भाषा
Last Modified: वॉशिंगटन , शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010 (18:31 IST)

मुद्राओं के बीच बेहतर तालमेल हो-भारत

मुद्राओं के बीच बेहतर तालमेल हो-भारत -
चीन की अपनी मुद्रा युआन की विनिमय दर को जानबूझकर कम रखने की चर्चा के बीच भारत और विश्व बैंक ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए विश्व मुद्राओं के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया है।

भारत ने विश्व व्यापार को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाली मुद्राओं वाले देशों के बीच बेहतर तालमेल पर जोर देते हुए विभिन्न देशों के बीच व्यापक भागीदारी का आह्वान किया है।

विश्व बैंक ने भी कुछ देशों को अपनी मुद्रा के मूल्य को कम रखने के प्रति आगाह करते हुए कहा है कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में किए जा रहे सुधार पटरी से उतर सकते हैं।

वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हमें देशों को बातचीत के लिए तैयार करना चाहिए तथा ऐसी सहमति बनानी चाहिए जिससे इस मुद्दे को सुलझाया जा सके।

उन्होंने यह टिप्पणी चीन द्वारा अपनी मुद्रा को मजबूत करने की अनिच्छा के बीच मुद्रा युद्ध की आशंका का जिक्र करने पर की।

अमेरिका लगातार चीन पर दबाव बनाए हुए है कि वह डालर की तुलना में अपनी मुद्रा को मजबूत हो जाने दे। लेकिन चीन की तरफ से बदलाव की अनिच्छा के चलते वह अभी भी वॉशिंगटन के साथ व्यापार अधिशेष का फायदा उठा रहा है।

चीनी मुद्रा रेनमिंबी के सस्ता होने का नुकसान अन्य देशों को भी होता है क्योंकि उनके निर्यात की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।

मुखर्जी ने आईएमएफ-विश्व बैंक की सालाना बैठकों से पहले कहा कि चीनी रेनमिंबी के पुन:मूल्यांकन के मुद्दे को आपसी मुकाबले से नहीं सुलझाया जा सकता। हमें सहमति बनाने की प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए।

इससे पहले विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जोएलिक ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आगाह किया कि मुद्रा को लेकर जारी मौजूदा खींचतान को ढंग से नहीं निपटाया गया तो यह बड़ी समस्या बन सकती है।

उन्होंने कहा कि आज हमारे समक्ष मुद्रा को लेकर तनाव है। ये तनाव अगर सही ढंग से निपटाए नहीं गए तो बड़ी समस्या बन सकते हैं।

जोएलिक ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि किसी को भी इन हालात को हल्के में लेना चाहिए क्योंकि मेरा प्राथमिक संदेश यही है कि सुधार बहुत कमजोर है और संभावित जोखिमों के प्रति सावधान रहना होगा।

जोएलिक ने कहा कि चीन के मामले में उनका मानना है कि मुद्रा को मजबूत करना चाहिए, यह आसान नहीं है क्योंकि इसमें बचत-खपत संतुलन जैसे कई मुद्दे जुड़े हुए हैं। (भाषा)