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Written By भाषा

जीएसटी के इंतजार में उद्योग जगत

Industrial Sector is eager to GST | जीएसटी के इंतजार में उद्योग जगत
उत्पादन, बिक्री और उपभोग पर अलग-अलग कर लगाने की जगह राष्ट्रीय स्तर पर एक गुड्स एंड सर्विसेज (जीएसटी) टैक्स को लागू किया जाना है। अब इस नई कर प्रणाली को लागू करने के लिए दस माह का ही समय बचा है, पर कर की इस वृहद योजना को अब तक सार्वजनिक न किए जाने से उद्योग एवं व्यवसाय जगत में अप्रैल 2010 से जीएसटी को लागू किए जाने को लेकर संशय है।

व्यवसायी और विशेषज्ञों का कहना है कि नई जीएसटी कर प्रणाली के रोड मैप में विलंब को देखते हुए अप्रत्यक्ष कर क्षेत्र में सुधार संबंधी इस महत्वपूर्ण योजना को लागू करने में देरी हो सकती है।

सरकार भी जल्द चाहती है : इस विलंब के बारे में पूछे जाने पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के सदस्य सचिव सतीश चंद्रा ने कहा हम जीएसटी का रोडमैप जल्द से जल्द से जारी करने के प्रयास में हैं।

हालाँकि उन्होंने इसके लिए कोई तारीख नहीं बताई। करीब दस महीने बाद भारत एकीकृत कर व्यवस्था के दौर में प्रवेश की तैयारी कर रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस पेचिदा विषय यानी जीएसटी को लागू करने के लिए सरकार की तैयारियों की गति अभी काफी धीमी हैतत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अपने 2006 के बजट भाषण में अप्रैल 2010 से देश में जीएसटी को लागू करने की घोषणा की थी।

उम्मीदें परवान चढ़ीं : कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि कायदे से जीएसटी का रोड मैप 2007 में जारी होना था। अब केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद उम्मीद है कि जीएसटी को लागू करने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

जायज है देरी : उद्योग मंडल एसोचैम के अध्यक्ष सज्जन जिंदल ने कहा हमने सरकार से कहा है कि जीएसटी की योजना को यथाशीघ्र लागू किया जाए, पर चूँकी यह कर सुधारों की दिशा में एक बड़ी और पेचीदा योजना है, इसलिए इसे पूरी तरह लागू करने में समय लग सकता है।

चार दरें रखना मुनासिब : कर विशेषज्ञ और चार्टर्ड एकाउंटेंट अमरनाथ सिंगला ने कहा वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी जुलाई में पेश होने वाले बजट में जीएसटी पर कोई घोषणा कर सकते हैं। उनका मानना है कि जीएसटी में कर की चार दरें रखना ठीक रहेगा। ये दरें शून्य, चार प्रतिशत, 20 प्रतिशत और एक सामान्य कर दर 15-16 प्रतिशत तक रखी जा सकती हैं।

ड्राफ्टिंग में खामियाँ न रहे : नार्दन इंडिया चार्टर्ड एकाउंटेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरके गौड़ ने कहा जीएसटी लागू करते समय वैट के क्रियान्वयन की दिक्कतों से सबक ले कर चलना चाहिए। बेशक वैट से सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसकी ड्राफ्टिंग में कई तरह की खामियाँ रह गई थीं, इसलिए जीएसटी की ड्राफ्टिंग पर सभी की निगाहें हैं।

गौड़ ने कहा कि सरकार के दावों के बावजूद विभिन्न राज्यों में वैट की दरों में भिन्नताएँ हैं। यहाँ तक कि वस्तुओं की परिभाषा भी राज्यों के हिसाब से भिन्न-भिन्न है।

सिंगला ने कहा जीएसटी के आने के बाद देश में केंद्रीय बिक्रीकर, वैट और उत्पाद शुल्क जैसे कर खत्म हो जाएँगे, पर रोड मैप आने के बाद ही जीएसटी के बारे में तस्वीर कुछ साफ होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत जैसे देश विशाल देश में सभी राज्यों में जीएसटी दरों में एकरूपता लाना टेढ़ी खीर होगा, ऐसे में इस विषय पर सहमति बनाने में केंद्र को काफी मेहनत करना पडे़गी।

संयुक्त टास्क फोर्स की बनाएँ : वैट कमेटी के सदस्य सचिव चंद्रा का कहना है जीएसटी कर प्रणाली सभी के हित में होगी। खंडेलवाल कहते हैं कि जीएसटी का रोडमैप जल्द जारी किया जाना चाहिए तथा इसके लिए एक संयुक्त टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें अधिकारियों के साथ-साथ व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया जाए।

विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी से कर चोरी घटेगी और स्वैच्छिक रूप से कर जमा करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।

स्थानीय कर बंद हों : व्यापारी नेताओं का कहना है कि एमसीडी जैसे स्थानीय निकाय भी तरह-तरह के कर लेते हैं। जीएसटी में इन्हें समाप्त किया जाना चाहिए। खंडेलवाल के मुताबिक जीएसटी को सुचारु तरीके से लागू किया जाता है तो इससे राज्यों के बीच मुक्त व्यापार बढ़ेगा।