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Written By भाषा
Last Modified: भुवनेश्वर , रविवार, 27 फ़रवरी 2011 (20:42 IST)

गाँवों में समृद्धि से बढ़ रही हैं कीमतें : सुब्बाराव

गाँवों में समृद्धि से बढ़ रही हैं कीमतें : सुब्बाराव -
रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा है कि ग्रामीण भारत में बढ़ रही समृद्धि से वहाँ अच्छी खाद्य वस्तुओं की माँग और उनकी कीमतों में तेजी आ रही है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भुवनेश्वर में विद्यार्थियों को सुब्बाराव ने कल बताया, ‘चूँकि ग्रामीण इलाकों में आय बढ़ रही है, लोग मोटे अनाज से प्रोटीनयुक्त खाद्य वस्तुओं की ओर रुख करते हुए बेहतर चीजें खा रहे हैं और इससे खाद्य वस्तुओं की किल्लत हो रही है।’

पिछले कुछ महीनों से दहाई अंक के स्तर से ऊपर रही खाद्य मुद्रास्फीति सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है। यह 12 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में बढ़कर 11.49 प्रतिशत पर पहुँच गई जो इससे पूर्व सप्ताह में 11.05 प्रतिशत थी। दूध, अंडा, मीट और सब्जियों की कीमतों में तेजी से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ी।

सुब्बाराव ने कहा कि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदारी थोड़ी कम है क्योंकि खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में तेजी आपूर्ति में बाधा की वजह से पैदा होती है। उन्होंने कहा कि खाद्य वस्तुओं की किल्लत और बढ़ते दाम से निपटने के लिए देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने के संबंध में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

देश में और एक हरित क्रांति की वकालत करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि अगर देश में आधे राज्य पंजाब द्वारा हासिल की गई उत्पादकता का स्तर छू लें तो खाद्य वस्तुओं की किल्लत से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।

पंजाब की खाद्यान्न उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 4,231 किलोग्राम है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1,909 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। वर्ष 2008-09 के दौरान देश में रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन में पंजाब का योगदान 11.66 प्रतिशत रहा। सुब्बाराव ने कहा कि कृषि उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए जल प्रबंधन और ग्रामीण ढाँचागत क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। देश की खेती योग्य भूमि का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भर है।

उन्होंने कहा कि भारत खाद्य वस्तुओं का आयात नहीं कर सकता क्योंकि इसे करीब 1.2 अरब आबादी का पेट भरना है। हमारे देश में खाद्य वस्तुओं की कीमतें विश्व बाजार के मुकाबले कम हैं। बिना सब्सिडी दिए आयातित खाद्य वस्तुएँ बेची नहीं जा सकती। आप विशाल स्तर पर खाद्य पर सब्सिडी की उम्मीद नहीं कर सकते। (भाषा)