चरित्रवान छत्रपति शिवाजी
शिवाजी महाराज : चरित्र के धनी
छत्रपति शिवाजी महाराज जितने तलवार के धनी थे, उतने ही धनी चरित्र के भी थे। अपनी तलवार और चरित्र को उन्होंने कभी दागदार नहीं होने दिया। एक बार शिवाजी के एक वीर सेनापति ने कल्याण का किला जीता। हथियारों के जखीरे के साथ-साथ अकूत संपत्ति भी उसके हाथ लगी।
एक सैनिक ने मुगल किलेदार की परम सुंदर बहू को उसके समक्ष पेश किया। वह सेनापति उस नवयौवना के सौंदर्य पर मुग्ध हो गया और उसने शिवाजी को नजराने के रूप में उसे भेंट करने की ठानी। उस सुंदरी को एक पालकी में बिठाकर वह शिवाजी के पास पहुंचा। शिवाजी उस समय अपने सेनापतियों के साथ शासन-व्यवस्था के संबंध में बातचीत कर रहे थे।उस सेनापति ने शिवाजी को प्रणाम किया और कहा कि वह कल्याण में प्राप्त एक सुंदर चीज उन्हें भेंट करना चाहता है। यह कह कर उसने एक पालकी की ओर इंगित किया।
शिवाजी ने ज्यों ही पालकी का पर्दा उठाया तो देखा कि उसमें एक खूबसूरत मुगल नवयौवना बैठी हुई है। उनका शीश लज्जा से झुक गया और उनके मुख से सहसा ये शब्द निकले - 'काश! हमारी माता भी इतनी खूबसूरत होतीं तो मैं भी खूबसूरत होता।' इसके बाद अपने सेनापति को डांटते हुए शिवाजी ने कहा - 'तुम मेरे साथ रहकर भी मेरे स्वभाव को नहीं जान सके? शिवाजी दूसरे की बहू-बेटियों को अपनी माता की तरह मानता है। अभी जाओ और ससम्मान इन्हें इनके घर पहुंचा के आओ।'
सेनापति को काटो तो खून नहीं। कहां तो वह अपने को इनाम का हकदार समझ रहा था और नसीब हुई तो सिर्फ फटकार। लेकिन मुगल किलेदार की बहू को उसके घर पहुंचाने के अलावा सेनापति के पास चारा ही क्या था। मन ही मन उसने शिवाजी के चरित्र को सराहा और उस मुगल नवयौवना को उसके घर पहुंचाने के लिए वहां से चल पड़ा।