मजेदार कविता : पॉकेट खर्च
बच्चों, हम जब छोटे थे तो हमारे पूज्य पिताजी रोज चार आने पॉकेट खर्च के नाम से देते थे। हम बहुत खुश थे क्योंकि दो आने का एक गिलास गरमा-गरम दूध और दो आने की एक पाव गरम जलेबी मिल जाती थी। समय बदला दुनिया बदली और फिजा बदल गई किंतु पुराने जमाने के पापा नहीं बदले इतनी मंहगाई में भी पॉकेट खर्च केवल एक रुपए। भला बताओ क्या होगा एक रुपए में। एक नन्हीं अपनी मां से शिकायत कर रही है और मांग कर रही है पॉकेट खर्च बढ़ाने की। तुम्हारे मम्मी-पापा भला कितना देते हैं हमें बताना। हम तुम्हारा पॉकेट खर्च बढ़ाने की जरूर सिफारिश करेंगे। पॉकेट खर्च बढ़ा दो मम्मीपॉकेट खर्च बढ़ा दो पापाएक रुपए में तो पापाजीअब बाजार में कुछ न आता।एक रुपए में तो मम्मीजीचॉकलेट तक न मिल पातीइतने से थोड़े पैसे मेंभूने चने मैं कैसे लाती।ब्रेड मिल रही है पंद्रह मेंऔर कुरकुरे दस में आतेएक रुपए की क्या कीमत हैपापाजी क्यों समझ न पाते।पिज्जा है इतना महंगा है कितीस रुपए में आ पाता हैएक रुपया रखकर पॉकेट मेंमेरा तन-मन शर्माता है।आलू चिप्स पांच में आतेऔर बिस्कुट पॅकैट दस मेंअब तो ज्यादा चुप रह जानारहा नहीं मेरे बस में।न अमरूद मिले इतने मेंन ही जामुन मिल पाएएक रुपए में प्रिय मम्मीजीआप बता दो क्या लाएं।मुझको खाना आज जलेबीमुझको खाना रसगुल्लाइतने से पैसों में बोलोक्या मिल पाए आज भला।तुम्हीं बता दो अब मम्मीजीकैसे पॉकेट खर्च चलेसमझा दो थोड़ा पापा कोउधर न मेरी दाल गलेकम से कम दस करवा देंइतने से काम चला लेंगेएक साल तक प्रिय मम्मीजीकष्ट आपको न देंगे।