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Written By भाषा

मुंबई हमला : पाक में कसाब भगोड़ा

मुंबई हमला : पाक में कसाब भगोड़ा -
मुंबई हमला मामले के सात संदिग्धों के खिलाफ सुनवाई कर रही पाकिस्तान की एक आतंकवाद निरोधक अदालत ने शनिवार को अजमल कसाब सहित 14 अन्य आरोपियों को ‘भगोड़ा’ करार दिया और मामले की सुनवाई सात नवंबर तक स्थगित कर दी।

सूत्रों ने बताया कि सुनवाई के दौरान जज मलिक मुहम्मद अकरम अवान ने कसाब सहित मुंबई हमले के 14 संदिग्धों को ‘भगोड़ा’ करार दिया।

कसाब एकमात्र जीवित आतंकवादी है, जिसे मुंबई हमलों के दौरान भारतीय अधिकारियों ने पकड़ा था। भगोड़ा करार दिए गए 13 अन्य के बारे में तत्काल जानकारी नहीं मिल पाई है।

पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए गए सात संदिग्धों में से एक लश्कर-ए-तोइबा के अभियान कमांडर जकीउर रहमान लखवी के वकील ख्वाजा सुल्तान ने बताया कि जज अवान मोहम्मद ने मामले की सुनवाई अगले शनिवार तक स्थगित कर दी है।

अदालत ने 10 अक्तूबर को आरोपियों पर जिस प्रकार अभियोग लगाए थे, उसे लेकर आज की कार्रवाई के दौरान आरोपियों ने आपत्ति जताई।

पूर्व में मामले की सुनवाई कर रहे जज बाकर अली राणा ने आरोपियों पर उनके वकीलों की गैर मौजूदगी में औपचारिक तौर पर अभियोग लगाए थे।

सुल्तान ने बताया कि आरोपियों ने सुनवाई के तरीके को लेकर अपनी आपत्तियों के संदर्भ में दो आवेदन भी दाखिल किए हैं। न्यायाधीश अवान ने अभियोजन पक्ष से अगली सुनवाई तक इन आवेदनों का जवाब देने के लिए कहा है। सुल्तान ने आवेदनों की सामग्री के बारे में बताने से इंकार करते हुए कहा कि इनमें आरोपियों ने कुछ आपत्तियां व्यक्त की हैं।

लाहौर उच्च न्यायालय की रावलपिंडी स्थित पीठ ने 26 अक्टूबर को आतंकवाद निरोधक अदालत को आरोपियों की दलीलों और शिकायतों पर विचार करने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय ने यह आदेश आरोपियों की उस याचिका पर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि आतंकवाद निरोधक अदालत ने उनके वकीलों की अनुपस्थिति में उनके खिलाफ आरोप लगाए।

सुल्तान ने कहा कि आतंकवाद निरोधक अदालत को अब तक उच्च न्यायालय के आदेश की प्रति नहीं मिली है। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने कहा कि उच्च न्यायलय ने आरोपियों की शिकायतों पर विचार के लिए आतंकवाद निरोधक अदालत को कोई आदेश नहीं दिया है।

सुल्तान ने बताया कि हमने कहा है कि आतंकवाद निरोधक अदालत आसानी से इसकी पुष्टि कर सकती है। पिछले कुछ सप्ताह से मुंबई हमलों को लेकर भ्रम और विवाद चल रहा है।

आतंकवाद निरोधक अदालत ने वकीलों और मामले से जुड़े लोगों से इस बारे में कुछ न कहने का आदेश दिया है, जिसके बाद मीडिया के लिए तथ्यों की जानकारी हासिल करना लगभग असंभव हो गया है।