गुरुवार, 28 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. अंतरराष्ट्रीय
Written By ND
Last Modified: लंदन , बुधवार, 26 मार्च 2008 (15:41 IST)

बायो डीजल यानी अस्थमा को न्योता!

बायो डीजल यानी अस्थमा को न्योता! -
यहाँ पर स्कूल बसों में पर्यावरण हितैषी ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के ईंधन से बच्चों में अस्थमा की शिकायत बढ़ सकती है।

अमेरिका के विशेषज्ञों का कहना है कि बायो ईंधन जो मक्का, गन्ने या रैपसीड के बने हो, सामान्य ईंधन से ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। उनका कहना है कि स्कूल बसों में जब डीजल के साथ बायो ईंधन मिलाया जाता है तो हवा में खतरनाक कण जाते हैं, जो सामान्य से 80 प्रश ज्यादा घातक होते हैं। इस वजह से अस्थमा होने की आशंका बढ़ती है।

दूषित या खराब हवा के चलते स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित होता है। लंदन के मिरर के मुताबिक पर्यावरण संरक्षा समूह लेकॉर्स ने इस संबंध में पहल की है। सरकार में बैठे मंत्रियों से भी पत्र व्यवहार करते हुए कहा है कि बायो ईंधन से बच्चों का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। दूसरी ओर सरकार का दावा यह है कि बायो ईंधन के कारण प्रदूषण 50 प्रश तक कम हो जाता है।

दूसरी ओर एक नोबल पुरस्कार विजेता पॉल क्रजन का कहना कुछ और ही है। 1995 में नोबल पुरस्कार जीतने वाले इस वायुमंडल के जानकार केमिस्ट का कहना है कि बायो ईंधन बनाने की चाह में उत्तरी अमेरिका और योरप में जो फसलें बोई जा रही हैं, वे धरती के लिए ज्यादा घातक हैं और इससे ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ जाएगी। उन्होंने रेपसीड से बनने वाले ईंधन के प्रति विशेष रूप से सजग किया। अध्ययन कहता है कि कुछ बायो ईंधन वास्तव में ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें छोड़ते हैं।

इसका खास कारण है खेती के दौरान प्रयुक्त उर्वरक। इन्होंने भी जैव-ईंधन की विश्वसनीयता पर आशंका व्यक्त की है। उनका कहना है कि रेपसीड से बनने वाला बायो डीजल परंपरागत डीजल के मुकाबले 1 से 1.7 गुना ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें छोड़ेगा। जहाँ तक मक्के की बात है तो वह परंपरागत गैसोलीन के मुकाबले 1.5 गुना ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग करेगा।