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Written By WD

आर्थिक मंदी और करार पर बेकरार बुश

टूटी नहीं है आस

आर्थिक मंदी और करार पर बेकरार बुश -
नृपेंद्गुप्त

अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश इन दिनों एक अजीब-सी उलझन में फँस गए हैं। अपने कुछ दिन बचे कार्यकाल में बुश परमाणु करार को सम्पन्न करने का सपना पाले है तो दूसरी तरफ वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी मंदी के दौर से निकालना चाहते हैं।

यह दोनों ही मुद्दे अमेरिका पर दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं। परमाणु करार को लेकर बुश पिछले डेढ़ सालों से प्रयासरत हैं और चाहते हैं कि अपने कार्यकाल में इसे मंजूर करवा लें। वे इस दिशा में आगे बढ़ ही रहे थे कि अमेरिका में आए आर्थिक भूकम्प से अर्थ जगत में अफरा-तफरी मच गई। लेहमैन, मैरिल लिच, एआईजी जैसी दिग्गज कंपनियों की नींव हिल गई।

इस आर्थिक संकट ने अमेरिकियों का ध्यान करार से हटाकर इस समस्या का हल खोजने में लगा दिया और करार प्राथमिकता सूची में पीछे रह गया।

ऐसे समय में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचाने के लिए बुश के सलाहकारों ने 700 अरब डॉलर के विशेष वित्तीय पैकेज की घोषणा की। इसके साथ ही राजनेताओं में तथा अर्थ जगत में भी इस पैकेज को लेकर शंका-कुशंकाओं का दौर शुरू हो गया।

इसके पहले एनएसई में करार के पास हो जाने के बाद बुश को उम्मीद थी कि इस मुद्दे को वे अमेरिकी कांग्रेस में आसानी से मंजूर करवा लेंगे। स्थितियाँ अवश्य जटिल थीं, पर बुश के इरादे भी मजबूत थे।

बुश की बेचैनी अब इसलिए बढ़ गई है कि वे पिछले दो दिनों में न तो इस पैकेज पर अमेरिकी संसद में आम सहमति स्थापित कर पाए हैं और न ही परमाणु करार पर मतदान कराने में उन्हें सफलता मिल पाई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा से जुड़े इन दोनों मुद्दों पर कांग्रेस की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक है। अमेरिकी दौरे पर गए भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा राष्ट्रपति बुश के मध्य हुई बातचीत से करार की महत्ता भी आसानी से समझी जा सकती है।

दोनों नेता एक-दूसरे से खुश भले ही नजर आ रहे हों, पर उनकी खुशी करार के मंजूर न होने पर काफुर हो सकती है। ऐसी भी सम्भावना जताई जा रही है कि परमाणु करार को कांग्रेस में मंजूरी न मिलने पर भारत-अमेरिकी संबंध लंबे समय तक प्रभावित हो सकते हैं।

परमाणु करार और वित्तीय पैकेज दोनों पर कांग्रेस की मुहर राष्ट्रपति बुश के साथ ही अमेरिका की साख को भी प्रभावित करेगी। फिलहाल तो बुश को उम्मीद है कि अमेरिकी जनप्रतिनिधि वर्तमान हालात और निकट भविष्य को देखते हुए इन दोनों मुद्दों पर उनकी लाज बचा लेंगे।