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Written By ND

मेहनत की आदत छूटना नहीं चाहिए : नमन

मेहनत की आदत छूटना नहीं चाहिए : नमन -
NDND
दोस्तो, पिछले दिनों आईपीएल टूर्नामेंट में तुमने मुझे राजस्थान रॉयल्स की तरफ से ओपनिंग करते हुए देखा होगा। हमारी टीम सेमीफाइनल में जगह नहीं बना पाई, थोड़ा बुरा जरूर लगा पर हार के बाद भी हमने अपनी कमजोरियों पर बात की और अगली बार जब हम मैदान में उतरेंगे तो अपनी गलतियों और कमजोरियों को दूर करके उतरेंगे।

हर खिलाड़ी यही करता है। आईपीएल टूर्नामेंट में हर मैच के बाद हमारी टीम-मीटिंग होती थी। जीते तो भी मीटिंग और हारे तो भी। इस मीटिंग में हम आगे किस तरह का अच्छा प्रदर्शन किया जा सकता है, इस पर विचार करते थे। ऐसी मीटिंग किसी मैच के पहले ही नहीं बल्कि जीवन में हर समय करना चाहिए।

एग्जाम के पहले, करियर चुनने से पहले और यहाँ तक कि किसी चीज को खरीदने से पहले भी। इस तरह की मीटिंग या योजना हमारे लिए फायदेमंद होती है। स्पेक्ट्रम पढ़ने वालों को यह भी बताना चाहूँगा कि पढ़ाई पूरी करना बहुत जरूरी है। दूसरी चीजों के साथ पढ़ाई को भी पूर समय देना चाहिए। पढ़ाई अच्छी हो इसके लिए भी मीटिंग जरूरी है।

दोस्तो, आईपीएल में मैंने खूब छक्के उड़ाए, जिसे देखकर टीवी पर तुम बहुत खुश हुए होंगे, पर किसी भी क्रिकेटर के लिए बड़ी स्पर्धा तक पहुँचने का सफर बड़ी मेहनत का होता है। दोस्तो, मैं उज्जैन में पैदा हुआ। फिर कुछ समय के लिए देवास भी रहना हुआ।

यहाँ से रतलाम और रतलाम से इंदौर आकर क्रिकेट पर खूब मेहनत की। इंदौर आना कुछ इस तरह हुआ कि बैंक की तरफ से ही एक शिविर इंदौर में लगा था। ‍मैं शिविर में भाग लेने इंदौर आया तो सलाह मिली कि मुझे इंदौर आकर कोचिंग लेनी होगी।

चूँकि रतलाम में कोचिंग और दूसरी सुविधाएँ ज्यादा नहीं थीं तो मैं इंदौर आ गया। इंदौर में अपने शुरुआती दिनों में मैं एक होस्टल में रहता था। होस्टल के छोटे से कमरे में मेरे साथ एक रूममेट भी था। कमरा बहुत छोटा था। हम दोनों के पलंग लगने के बाद उसमें किटबेग रखने की जगह भी नहीं बचती थी। यहाँ से सुबह उठकर मैं नेहरू स्टेडियम जाता और प्रैक्टिस करता था। जब आने-जाने में दिक्कत हुई तो मैं जावरा कंपाउंड में शिफ्‍ट हो गया।

यहाँ मैंने एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था। यह एक गोडाउननुमा कमरा था। यह भी छोटा था और बारिश के दिनों में तो उसमें पानी भी टपकता था पर मुझे तो अच्छा क्रिकेटर बनकर दिखाना था तो इन बातों की कभी परवाह नहीं की।

जब मैं जावरा कंपाउंड में रहता था तो घर से खर्च के लिए सीमित रुपए मिलते थे। इसी में दूध, खाना, कमरे का किराया, घर पर फोन करने का खर्च निकालना पड़ता था। इन स्थितियों में भी मैंने प्रैक्टिस में कोई कमी नहीं रहने दी और शायद इसी कारण आज इतनी बड़ी स्पर्धा तक पहुँच सका। क्रिकेटर बनने के लिए जरूरी है लगातार प्रैक्टिस करते रहना। सिलेक्शन हो या न हो, प्रैक्टिस नहीं छूटनी चाहिए। जो लगातार अच्छा क्रिकेट खेलने की कोशिश करते हैं उनका सिलेक्शन जरूर होता है।

एक बात और ध्यान रखो कि अपने कोच का आदर भी करना चाहिए। उनकी सलाह तुम्हें अच्छा क्रिकेटर बनाती है। मुझे इंदौर सीसीआई में संजय जगदाले, नरेंद्र हिरवानी और अमय खुर‍ासिया ने खूब आगे बढ़ाया। समय-समय पर टिप्स दी तभी मैं क्रिकेट में अच्छा कर पाया।

दोस्तो, क्रिकेट की बातों के साथ अब कुछ बचपन की बातें। मेरी स्कूल की पढ़ाई रतलाम में सेंट्रल स्कूल से हुई। आज भी वहाँ मेरा एक बचपन का दोस्त है कमलेश। इसके साथ बचपन की कई यादें जुड़ी हैं। हम दोनों इकट्‍ठे ही रहते थे। बचपन में भी मुझे खेलने का बहुत शौक था। ऐसे में जब बारिश के दिनों में खेलकर आने पर कपड़े गंदे हो जाते थे। मम्मी की खूब डाँट पड़ती थी। पर क्रिकेट नहीं छूटा। वैसे अब मम्मी मेरा हर मैच देखती है।

मम्मी और छोटा भाई अनन्य मेरे सबसे बड़े प्रशंसक हैं। दोस्तो, बचपन में मैंने फुटबॉल भी खूब खेली और पतंग उड़ाने का भी शौक था। अब मुझे घर की इंटीरियर डिजाइनिंग में और कार चलाने में खूब मजा आता है। अपने मजे की चीजें तुम भी करते रहना और हाँ प्रैक्टिस करना मत भूलना।

तुम्हारा
नमन ओझा