मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By WD

शांति स्त्री का स्वभाव है

अशांत होना पुरुष की प्रकृति है

शांति स्त्री का स्वभाव है -
ND

जीव-शास्त्री कहते हैं कि पुरुष में एक तरह की तनाव-स्थिति है, स्त्री में वैसी तनाव-स्थिति नहीं है। जीवन-वैज्ञानिकों के अनुसार जिस दो अणुओं के मिलन से, जीवाणुओं के मिलन से व्यक्ति का जन्म होता है प्रत्येक जीवाणु में चौबीस कोष्ठ होते हैं। यदि चौबीस-चौबीस कोष्ठ के दो जीवाणु मिलते हैं तो स्त्री का जन्म होता है। कुछ कोष्ठ तेईस जीवाणुओं वाले होते हैं। अगर तेईस और चौबीस, ऐसे दो जीवाणुओं वाले कोष्ठ का मिलन होता है तो पुरुष का जन्म होता है। पुरुष में संतुलन थोड़ा कम है। एक तरफ चौबीस कोष्ठ हैं, एक तरफ तेईस कोष्ठ हैं। स्त्री संतुलित है। दोनो कोष्ठ चौबीस-चौबीस हैं।

जीव-वैज्ञानिक कहते हैं कि स्त्री के सौंदर्य का कारण यही संतुलन है। ज्यादा संतुलित, ज्यादा बैलेंस्ड। यही कारण है कि स्त्री का धीरज, सहनशीलता पुरुष से ज्यादा है और यही कारण भी है कि पुरुष स्त्री को दबाने में सफल हो पाया क्योंकि बेचैनी उसका गुण है, वह जो तेईस और चौबीस का असंतुलन है, जो तनाव है, वही उसका आक्रमण बन जाता है। और पुरुष पूरे जीवन संतुलन की खोज कर रहा है।

इसलिए बहुत मजे की बात है। स्त्रियों ने बुद्ध, महावीर, कृष्ण, जीसस पैदा नहीं किए हैं। पुरुष ने किए हैं। उसका बहुत मौलिक कारण यही है कि पुरुष की ही खोज है शांति के लिए, स्त्री की कोई खोज नहीं है। स्त्री स्वभाव से शांत है, अशांति विभाव है। उसे चेष्टा करके अशांत किया जा सकता है। पुरुष स्वभाव से अशांत है। चेष्टा करके उसे शांत किया जा सकता है। इसलिए बुद्ध पुरुषों में पैदा होंगे, स्त्री में पैदा नहीं होंगे। पुरुष चेष्टा कर रहा है निरंतर कि कैसे शांत हो जाए। और आक्रामक होना उसका स्वभाव होगा, एग्रेशन उसका लक्षण होगा। इसीलिए पुरुष खोज करेगा, क्योंकि खोज आक्रमण है।

WD
पुरुष विज्ञान निर्मित करेगा, क्योंकि विज्ञान आक्रमण है। पुरुष एवरेस्ट पर चढ़ेगा, चाँद पर जाएगा, मंगल को जीतेगा, क्योंकि यह सारा अभियान आक्रमण का है। स्त्री आक्रामक नहीं है। पुरुष युद्ध करेगा, बिना युद्ध के जी नहीं सकेगा। कितनी ही शांति की बातें करे, लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि पुरुष का जीवाणु-संगठन ऐसा है कि वह बिना युद्ध के जी नहीं सकता। युद्ध उसकी प्रवृत्ति का हिस्सा है। जब तक कि उसकी प्रवृत्ति न बदल जाए, या जब तक कि हम उसके जीवाणुओं का संगठन न बदल दें, तब तक युद्ध वह करेगा। यह हो सकता है, शांति के लिए युद्ध करे।

इसलिए बड़े मजे की बात है, जो शांतिवादी हैं, अगर उनका भी जुलूस देखें और उनके भी नारे सुनें, तो वे युद्धवादियों से कम युद्धवादी नहीं मालूम होते। वे शांति के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन करते संघर्ष ही हैं। वे शांति के लिए जान देने को, लेने को तैयार हैं। बहाना कोई भी हो, पुरुष की उत्सुकता लड़ने में है। इसलिए जब युद्ध चलता है कहीं भी, तो पुरुषों की आँखों में चमक आ जाती है। जीवन में कुछ रस मालूम होता है। कुछ हो रहा है! वह जो उदासी है, टूट जाती है, एक रौनक छा जाती है। स्त्री और पुरुष के बीच जो मौलिक असंतुलन का भेद है, वही इसके पीछे कारण है।

हिंसा एक आंतरिक असंतुलन का परिणाम है और प्रेम एक आंतरिक संतुलन का। इसलिए स्त्री ने प्रेम किया है। लेकिन प्रेम से न तो चाँद पर जाया जा सकता है, न एवरेस्ट चढ़े जा सकते हैं। सच तो यह है कि स्त्रियों की कभी समझ में नहीं आता कि एवरेस्ट चढ़ने की जरूरत क्या है? चाँद पर जाने की जरूरत क्या है? स्त्री की उत्सुकता निकट में होती है, दूर में बिलकुल भी नहीं। विजय में बिलकुल नहीं होती, आक्रमण में बिलकुल नहीं होती।

एक संतुलित, शांत, प्रेमपूर्ण जीवन में होती है, अभी और यहीं। इसलिए स्त्रियाँ दूरदृष्टि की नहीं होतीं उनको बहुत पास का दिखाई पड़ता है, दूर व्यर्थ हो जाता है। पुरुष को पास का बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता है, दूर व्यर्थ हो जाता है। पुरुष को पास का बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि जो पास है, उसको जीतने में कोई मजा नहीं है। वह जीता ही हुआ है।

इसलिए बड़े मजे की घटना घटती है। पुरुष की उत्सुकता किसी भी स्त्री में तभी तक होती है, जब तक वह उसे जीत नहीं लेता। जीतते ही उसकी उत्सुकता समाप्त हो जाती है, क्योंकि वह जीती जा चुकी है। उसमें कोई अब जीतने को बाकी नहीं रहा है। इसलिए जो बुद्धिमान पत्नियाँ हैं, वे सदा इस भाँति जीएँगी पति के साथ कि जीतने को कुछ बाकी बना रहे। नहीं तो पुरुष का कोई रस सीधे स्त्री में नहीं है।

अगर कुछ अभी जीतने को बाकी है तो उसका रस होगा। अगर सब जीता जा चुका है तो उसका रस खो जाएगा। तब कभी-कभी ऐसा भी घटित होता है कि अपनी सुंदर पत्नी को छोड़कर वह एक साधारण स्त्री में भी उत्सुक हो सकता है। और तब लोगों को बड़ी हैरानी होती है कि यह उत्सुकता पागलपन की है। इतनी सुंदर उसकी पत्नी है और वह नौकरानी के पीछे दीवाना हो! पर आप समझ नहीं पा रहे हैं।

नौकरानी अभी जीती जा सकती है, पत्नी जीती जा चुकी। सुंदर और असुंदर बहुत मौलिक नहीं हैं। जितनी कठिनाई होगी जीत में, उतना पुरुष का रस गहन होगा। और स्त्री की स्थिति बिलकुल और है। जितना पुरुष मिला हुआ हो, जितना उसे अपना मालूम पड़े, जितनी दूरी कम हो गई हो, उतनी ही वह ज्यादा लीन हो सकेगी। स्त्री इसलिए पत्नी होने में उत्सुक होती है, प्रेयसी होने में उत्सुक नहीं होती। पुरुष प्रेमी होने में उत्सुक होता है, पति होना उसकी मजबूरी है।

स्त्री का यह जो संतुलित भाव है विजय की आकांक्षा नहीं है। यह ज्यादा मौलिक स्थिति है। क्योंकि असंतुलन हमेशा संतुलन के बाद की स्थिति है। संतुलन प्रकृति का स्वभाव है इसलिए हमने पुरुष को पुरुष कहा है और स्त्री को प्रकृति कहा है। प्रकृति का मतलब है कि जैसी स्थिति होनी चाहिए स्वभावतः।

साभार- डायमंड कॉमिक्स प्रकाशन लि.