अजर-अमर हैं पितृभक्त परशुराम
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।। -
श्रीमद्भागवत महापुराणअश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति परशुराम भी चिरजीवी हैं। भगवान परशुराम तभी तो राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।विष्णु के छठे 'आवेश अवतार' परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में भृगु ऋषि के कुल में हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका और पिता ऋषि जमदग्नि था। परशुराम शंकर भगवान के परम भक्त थे। उनका वास्तविक नाम राम था किंतु परशु धारण करने से परशुराम कहे जाने लगे। भगवान शिव से उन्होंने एक अमोघास्त्र प्राप्त किया था जो परशु नाम से प्रसिद्ध है।
परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।परशुराम राम के समय से हैं। उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। राजा सहस्रबाहु अर्जुन आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। परशुराम ने उक्त राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।सहस्रबाहु के पुत्रों ने कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का 21 बार विनाश किया।