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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

महाकुंभ : एकता और मानवता का संगम

भक्तों का जमघट : महाकुंभ

Kumbh Mela in Haridwar | महाकुंभ : एकता और मानवता का संगम
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सनातन हिंदू धर्म में कुंभ मेले का बहुत महत्व है। वेदज्ञों अनुसार यही एकमात्र मेला, त्योहार और उत्सव है जिसे सभी हिंदुओं को मिलकर मनाना चाहिए। धार्मिक सम्‍मेलनों की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है जब ऋषि और मुनि किसी नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्‍यात्मिक रहस्यों पर विचार-विमर्श किया करते थे। यह परंपरा आज भी कायम है।

कुंभ मेले के आयोजन के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान है। जब-जब इस मेले के आयोजन की शुरुआत होती है सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर धरती पर भयानक रूप में होता है। देखा गया है प्रत्येक ग्यारह से बारह वर्ष के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं।

कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन या मेला माना जाता है। इतनी बड़ी संख्या में सिर्फ हज के दौरान ही मक्का में मानव समुदाय इकट्ठा होता है। कुंभ लोगों को जोड़ने का एक माध्यम है जो प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित होता है।

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कुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह साल में चार बार किया जाता है अर्थात हर तीन साल में एक बार चार अलग-अलग स्‍थानों पर लगता है। अर्द्धकुंभ मेला प्रत्येक छह साल में हरिद्वार और प्रयाग में लगता है जबकि पूर्णकुंभ हर बारह साल बाद केवल प्रयाग में ही लगता है। बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ मेला भी हर 144 साल बाद केवल इलाहाबाद में ही लगता है।

कुंभ की कथा : कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या कलश। माना जाता है कि संमुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था उस कलश से देवता और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत छलक गया था। जहाँ-जहाँ अमृत की बूँद गिरी वहाँ प्रत्येक बारह वर्षों में एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है। बारह वर्ष में आयोजित इस कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है।

कुंभ आयोजन के स्थान : हिंदू धर्मग्रंथ के अनुसार इंद्र के बेटे जयंत के घड़े से अमृत की बूँदे भारत में चार जगहों पर गिरी- हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में शिप्रा नदी में, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर। धार्मिक विश्‍वास के अनुसार कुंभ में श्रद्धापूर्वक स्‍नान करने वाले लोगों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्‍हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ज्योतिष महत्व : कुंभ मेला और ग्रहों का आपस में गहरा संबंध है। दरअसल, कुंभ का मेला तभी आयोजित होता है जबकि ग्रहों की वैसी ही स्थिति निर्मित हो रही हो जैसी अमृत छलकने के दौरान हुई थी।

मान्यता है कि बूँद गिरने के दौरान अमृत और अमृत कलश की रक्षा करने में सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चंद्र ने कलश की प्रसवण होने से, गुरु ने अपहरण होने और शनि ने देवेंद्र के भय से की रक्षा की। सूर्य ने अमृत कलश को फूटने से बचाया। इसीलिए पुराणिकों और ज्योतिषियों अनुसार जिस वर्ष जिस राशि में सूर्य, चंद्र और बृहस्पति या शनि का संयोग होता है उसी वर्ष उसी राशि के योग में जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी वहाँ कुंभ पर्व का आयोजन होता है।

चार नहीं बारह कुंभ : मान्यता है कि अमृत कलश की प्राप्ति हेतु देवता और राक्षसों में बारह दिन तक निरंतर युद्ध चला था। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए कुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है। मान्यता यह भी है कि कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में। इसी मान्यता अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद महाकुंभ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुंभों की अपेक्षा और बढ़ जाता है।

महत्वपूर्ण तिथियों से बढ़ गया महत्व : इस बार हरिद्वार में कुंभ का आयोजन उस समय हो रहा है जबकि मकर संक्रांति का योग भी बन गया है। साथ ही दूसरे दिन सूर्य ग्रहण है। इसके अलावा भी कई और महत्वपूर्ण दिनों में स्नान करने की तिथि है। इस सभी के कारण इस बार का कुंभ स्नान महाफल देने वाला माना जा रहा है।

इस कुंभ मेले में पाँच करोड़ लोगों के हरिद्वार पहुँचने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसी के चलते हरिद्वार कुंभ मेला प्रशासन ने मेले के स्थल और अखाड़ों के तंबुओं को पूरी तरह शहर से बाहर कर दिया है और गंगा के पावन तट पर स्नान के लिए पुख्‍ता इंतजाम कर दिए हैं।

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2010 कुंभ के स्नान पर्व :
14 जनवरी 2010 मकर संक्रांति
15 जनवरी 2010 मौनी अमावस्या- सूर्यग्रहण स्‍नान
20 जनवरी 2010 बसंत पंचमी
30 जनवरी 2010 माघ पूर्णिमा
12 फरवरी 2010 महाशिवरात्रि - शाही स्‍नान
15 मार्च 2010 सोमवती अमावस्या - शाही स्‍नान
16 मार्च 2010 नव संवत्सर स्‍नान
24 मार्च 2010 श्रीराम नवमी स्‍नान
30 मार्च 2010 चैत्र पूर्णिमा (पर्व स्‍नान)
14 अप्रैल 2010 मेष संक्रांति शाही स्‍नान - मुख्‍य स्‍नान पर्व
28 अप्रैल 2010 बैसाख अधिमास पूर्णिमा

महाकुंभ का महत्व : 535 साल बाद ग्रहों के जो योग बने हैं उस कारण इस कुंभ का महत्व बढ़ गया है। उक्त स्थान पर स्नान करने से अकाल मृत्यु का भय जाता रहेगा। बदलती राशियाँ बढ़ाएगी अमृत की बूँदें तो माना जा रहा है कि तीन माह तक गंगा में स्नान करने का महत्व बना रहेगा। इस योग के कारण गंगा का पानी कई सौ गुना पवित्र हो जाएगा। वैज्ञानिकों अनुसार भी कुंभ और बृहस्पति के योग से धरती का जल पहले की अपेक्षा और ज्यादा साफ हो जाता है।