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Written By ND

प्राचीनतम विश्वविद्यालय - नालंदा

प्राचीनतम विश्वविद्यालय - नालंदा -

बिहार के नालंदा जिले में बना नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। 450 ई. में इसकी स्थापना हुई थी। उस जमाने में यहाँ विभिन्न देशों के 10 हजार से अधिक विद्यार्थी निवास और अध्ययन करते थे। 12वीं शताब्दी में बख्तियार खलजी ने इसे तहस-नहस कर दिया था।

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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की। स्थापना के बाद इसे सभी शासक वंशों का समर्थन भी मिलता गया। महान शासक हर्षवर्धन ने भी इस विश्वविद्यालय के लिए दान दिया। इस विश्वविद्यालय को विदेशी शासकों की भी सहायता मिली। नालंदा विश्वविद्यालय के मठों का निर्माण प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से हुआ था।

यह किसी आँगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्ति के समान दिखाई देते थे। सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहाँ सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया। इस प्रकार यह बारहवीं शताब्दी तक सफलतापूर्वक संचालित होता रहा, परंतु तुर्क आक्रमण में तबाह होने के बाद यह दोबारा स्थापित नहीं हो पाया। इस स्थान पर हुई खुदाई के बाद इसकी संरचनाओं का पता लगा। 14 हेक्टयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं।

यहाँ की सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। आज भी हम इस विश्वविद्यालय की मुख्य दो मंजिला इमारत देख सकते हैं। माना जाता है कि शायद यहीं शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। यहाँ एक प्रार्थनागृह आज भी सुरक्षित अवस्था में है। इसमें भगवान बुद्घ की प्रतिमा रखी हुई है, परंतु वह थोड़ी खंडित हो गई है। इसके अलावा भी यहाँ बहुत से मंदिर हैं। मंदिर नंबर 3 से इस पूरे क्षेत्र का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यह बुद्घ का मंदिर है, जिसमें कई छोटे-बड़े स्तूप हैं तथा प्रत्येक में भगवान बुद्घ की मूर्ति स्थापित है।

अध्ययन का प्रमुख केन्द्र
ऐसा माना जाता है कि महात्मा बुद्घ कई बार यहाँ आए। इसी वजह से पाँचवी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक इसे बौद्घ शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता था। सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांग भी यहाँ अध्ययन करने आया था। उसके कई लेखों में यहाँ की अध्ययन प्रणाली, अभ्यास और मठवासी जीवन की पवित्रता का उत्कर्ष वर्णन मिलता है।

यह दुनिया का पहला आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। यहाँ दुनियाभर से आकर 10000 छात्र अध्ययन किया करते थे और ये सब इसी विश्वविद्यालय में रहते भी थे। सोचिए, इतने सारे विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए यहाँ कितने शिक्षक होंगे? यहाँ 2000 शिक्षक पढ़ाते थे। यहाँ आने वाले विद्यार्थियों में बौद्घ यतियों की संख्या ज्यादा थी।

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नालंदा पुरातत्वीय संग्रहालय
विश्वविद्यालय परिसर की विपरीत दिशा में एक छोटा-सा पुरातत्वीय संग्रहालय बना हुआ है। यहाँ खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्घ की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। साथ ही बुद्घ की टेराकोटा मूर्तियाँ और प्रथम शताब्दी का दो जार भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है।

इसके अलावा ताँबे की प्लेट, पत्थर पर खुदा अभिलेख, सिक्के, बर्तन तथा 12वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं। नव नालंदा महाविहार एक शिक्षण संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्घ धर्म की पढ़ाई एवं अनुसंधान होता है। यह एक नया संस्थान है। इसमें दूसरे देश के छात्र भी अध्ययन करने आते हैं।

ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल
यह भी एक नवनिर्मित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनवाया गया है। इसमें उनसे संबंधित चीजें तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकती है। नालंदा विश्वविद्यालय के जलने के बाद उससे जुड़े अधिकांश दस्तावेज समाप्त हो गए थे। ह्वेनसांग ने यहाँ से पढ़ाई करते हुए तथा उसके बाद इसके बारे में जो कुछ लिखा उससे हमें इस महान स्थान के बारे में काफी जानकारी मिल पाई।