तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं
पंजाबी के क्रांतिकारी कवि पाश की कविता
तुम्हारे बगैर मैं बहुत खचाखच रहता हूंयह दुनिया सारी धक्कम पेल सहित बेघर पाश की दहलीजें लांघ कर आती-जाती है तुम्हारे बगैर मैं पूरे का पूरा तूफान होता हूं ज्वारभाटा और भूकंप होता हूं तुम्हारे बगैर मुझे रोज मिलने आते हैं आईंस्टाइन और लेनिन मेरे साथ बहुत बातें करते हैं जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही जिक्र नहीं होता मसलन: समय एक ऐसा परिंदा है जो गांव और तहसील के बीच उड़ता रहता है और कभी नहीं थकता सितारे जुल्फों में गुंथे जाते या जुल्फें सितारों में-एक ही बात हैमसलन: आदमी का एक और नाम मेनशेविक है और आदमी की असलियत हर सांस के बीच को खोजना है लेकिन हाय-हाय! बीच का रास्ता कहीं नहीं होता वैसे इन सारी बातों से तुम्हारा जिक्र गायब रहता है। तुम्हारे बगैर मेरे पर्स में हमेशा ही हिटलर का चित्र परेड करता है उस चित्र की पृष्ठभूमि में अपने गांव की पूरे वीराने और बंजर की पटवार होती है जिसमें मेरे द्वारा निक्की के ब्याह में गिरवी रखी जमीन के सिवा बची जमीन भी सिर्फ जर्मनों के लिए ही होती है। तुम्हारे बगैर, मैं सिद्धार्थ नहीं, बुद्ध होता हूं और अपना राहुल जिसे कभी जन्म नहीं देना कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी नहीं एक भिक्षु होता है। तुम्हारे बगैर मेरे घर का फर्श-सेज नहीं ईंटों का एक समाज होता है तुम्हारे बगैर सरपंच और उसके गुर्गे हमारी गुप्त डाक के भेदिए नहीं श्रीमान बीडीओ के कर्मचारी होते हैं तुम्हारे बगैर अवतार सिंह संधू महज पाश और पाश के सिवाय कुछ नहीं होता तुम्हारे बगैर धरती का गुरुत्व भुगत रही दुनिया की तकदीर होती है या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुजरते अ-हादसे मेरे भविष्य होते हैं लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं।