तुमसे मिले बीते बरस कई
-दीपाली पाटील
बहुत दूर आसमान में चमकते देखा था कल उसे एक बार उसके हक में दुआ की थी लगता है कुबूल हो गई उस तक पहुँचना नामुमकिन तो न था सफर बहुत लंबा भी न था पर कदम जाने क्यों उठे ही नहीं और अचानक शाम हो गई कई दिनों बाद खिली थी धूप थोड़ी सोचा कुछ गम सूख जाएँगे जाने कहाँ से बरसात हो गई आँखें अरसे से बुन रही थी ख्वाब कि अगली सुबह सुहानी होगी पर इस बार रात कुछ लंबी हो गई वक्त की धूल बिखर गई थी खुशियों की शाखों पर जब हटाई तो पाँखुरी बदरंग हो गई समंदर का खारापन तुम्हें कभी भाता न था तुम्हारी तस्वीर को मगर अब भीगने की आदत हो गई तुमसे मिले बीते बरस कई अब न लौटकर आ सको तो क्या यह गली अब इंतजार के नाम हो गई।