उसकी तस्वीर खूंटी में टंगी है और खूंटी में जंग लगी है जो हवा के संग झूल रही है
दीवार में गड़ी है वह खूंटी जब गड़ी थी, तो उसमें जंग नहीं लगी थी ताजा थी, और गड़ गई थी
अब किसी दीवार में यह दोबारा नहीं गड़ सकती हो सकता है कि गड़ने के पहले ही बीच से टूट जाए
इसीलिए यह किसी दीवार को एकबार में ही छेद देती है
जिस तरह जंग लगी खूंटी है उसी तरह उस पर टंगी तस्वीर भी जो अब आधी-अधूरी और पुरानी हो गई है
इसे दीमक चाट रही है
अब ऐसे में उस जंग लगी खूंटी और उस पर टंगी तस्वीर का आपस में जरूर कोई भावनात्मक संबंध है तभी इन दोनों की दशा और दिशाएं एक जैसी हैं और इन दोनों का रिश्ता मेरी उन धरोहरों से है जो समय के घात-प्रतिघात से भोथरी और कुंद होती जा रही हैं....।