इक लड़की बयाबाँ में तन्हा खड़ी है
ज्ञानप्रकाश विवेक ता-हद्देनजर रेत की बेचैन नदी हैवो किसको बताए कि उसे प्यास लगी हैआई जो कभी लौट के लाएगी सितारे,इक लहर जो मिट्टी का दीया ले के गई हैक्या जाने उसे भी कोई बनवास मिला हो,घर लौट के आने में जिसे उम्र लगी हैजंगल के दरख्तों , जरा तुम जागते रहना,इक लड़की बयाबाँ में तने-तन्हा खड़ी हैमैं खौफजदा होके उसे ढूँढ रहा हूँकालीन पे जलती हुई जो सींक गिरी हैहर रोज कलैंडर की न तारीखें गिनाकर,जीना है तो जीने के लिए उम्र पड़ी हैऐ चोर, चुरा ले तू कोई दूसरा हैंगरइस पर मेरे माजी की फटी शर्ट टँगी हैरावण मेरे अंदर का मरा है न मरेगाऐ रामचन्दर, तुझसे मेरी शर्त लगी है।