अब अकेली नहीं हूं
- ग्रॅब्रिएला मिस्त्राल
पहाड़ियों से समुद्र तकयह रात अकेली छोड़ दी गई हैलेकिन मैं जो तुझे झूला झुलाती हूं अब अकेली नहीं हूंयदि चंद्रमा गिर पड़े समुद्र मेंआकाश छोड़ दिया जाए अकेलालेकिन मैं जो तुझसे बंधी हूंमैं अकेली नहीं हूंसंसार, अकेला छोड़ दिया गयाचौतरफा है दुखलेकिन मैं जो तुझे अपने से चिपटाती हूंमैं अकेली नहींअनुवाद- नरेंद्र जैन (
पहल की पुस्तिका ‘पृथ्वी का बिंब’ से साभार)