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अभा कालिदास समारोह का समापन

संस्कृति के प्रवक्ता हैं महाकवि कालिदास

Kalidaas Samaroh | अभा कालिदास समारोह का समापन
ND
अभा कालिदास समारोह के सारस्वत अतिथि स्वामी गोविंदगिरि महाराज ने कहा कि महाकवि कालिदास संस्कृति के प्रवक्ता हैं। इनके आदर्शों, सिद्घांतों और प्रसंगों को लोकसभा और विधानसभा भवनों में अंकित करना चाहिए ताकि वर्तमान लोकशाही बेहतर तरीके से भारतीय संस्कृति के अनुरूप कार्य और आचरण करे।

52 वें अभा कालिदास समारोह के समापन अवसर पर भरत विशाला के मुक्ताकाशी मंच से अपने धाराप्रवाह संबोधन में स्वामी गोविंदगिरिजी ने महाकवि कालिदास की रचनाओं में उल्लेखित श्लोक और प्रसंगों को वर्तमान परिस्थितियों से जोड़ते हुए प्रस्तुत किया तो मौजूदा अतिथियों के साथ-साथ चुनिंदा श्रोता भी मंत्रमुग्ध हो गए।

स्वामीजी ने कहा कि आज महाकवि कालिदास के आदर्शों की आवश्यकता है। समाज के यूज एंड थ्रो कल्चर को त्यागने और सामाजिक विकृति को खत्म करने के लिए अध्ययन, अध्यापन, आचार, विचार में कालिदास को लाना होगा। कालिदास के ग्रंथों में उल्लेखित श्लोक, कथानक का वर्णन करते हुए स्वामीजी ने वर्तमान हालातों को जोड़कर उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है। इसके कालिदास के जरिए ही रोका जा सकता है। जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा होगी।

कालिदास ने अपने एक ग्रंथ में राजा के आश्रम अवलोकन का जिक्र किया है जिसमें वे आश्रम के बच्चे से गर्भवती हिरणी की प्रसूति के संबंध में पूछ रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कालिदास दूरदृष्टा थे और उन्होंने शिक्षा के व्यावसायीकरण को पहले ही समझ लिया था। भारतीय संस्कृति चार वर्ण, चार कर्म, चार पुरुषार्थ और चार आश्रम के सोलह स्तंभों पर टिकी हुई व्यवस्था है।

महाकवि कालिदास ने अपने प्रत्येक ग्रंथ में इसका सुंदरता के साथ वर्णन किया है और यह सभी आज प्रासंगिक हैं। भारतीय संस्कृति विश्व में सबसे महान है। यह इसलिए क्योंकि संस्कृति का सीधा-सीधा मानव और प्रकृति से संबंध है जिसका हजारों साल पहले कालिदास ने अध्ययन कर लिया था। ऋषि-मुनियों की तपोभूमि भारत में संस्कार और संस्कृति सदैव जीवित रहे और आगे बढ़े, इसके लिए कालिदास जैसे महाकवि का जन्म हुआ। आज आवश्यकता इस बात की है कि कालिदास के आदर्शों को अपनाते हुए इसे पिछड़ी बस्ती के झोपड़ों से लेकर शिक्षा संकुलों तक पहुँचाया जाए।

कसर बाकी नहीं रखेंगे
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संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा शासन द्वारा समारोह को और अधिक गरिमा तथा भव्यता प्रदान करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। इसके लिए सरकार संस्कृति, कला और शिक्षा विकास के लिए कृत संकल्पित होकर कार्य कर रही है। श्री शर्मा ने बताया कि 52वें कालिदास समारोह की शीघ्र समीक्षा कर भविष्य के लिए कार्य योजना बनाई जाएगी। इसके लिए खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पारस जैन को अधिकृत किया गया है।

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श्री शर्मा ने कहा कि उद्घाटन समारोह में उनके पास मंत्रिमंडल के कम प्रभार थे, लेकिन अब और भी जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसमें उच्च शिक्षा भी शामिल है। उज्जैन एक सांस्कृतिक शहर है और यहाँ सांस्कृतिक गतिविधियों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए सौगाते भी दी जाएगी।

खाद्य मंत्री श्री जैन ने कहा कि उज्जैन की सांस्कृतिक विविधता अपनी अलग पहचान रखती है। कालिदास ने संस्कृति को एक विशिष्ट गरिमा प्रदान की है। वर्तमान परिदृश्य में युवा पीढ़ी पुरातन संस्कृति से जीवन के संस्कारों को ग्रहण करे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद डॉ. जटिया ने कहा कि भारतवर्ष को पूर्ण संस्कारित बनाने का दायित्व हम पर है।

पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास के अथक प्रयासों से प्रारंभ हुए अभा कालिदास समारोह के आयोजन को गरिमा के साथ आयोजित करने का दायित्व हम सभी के कंधों पर है। कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी ने 52वें अभा कालिदास समारोह का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए सात दिवसीय आयोजनों की जानकारी दी। स्वागत उद्बोधन विक्रम विवि के कुलपति डॉ. शिवपालसिंह अहलावत ने दिया।

मिलेगी सौगातें
उविप्रा अध्यक्ष डॉ. मोहन यादव ने संस्कृति विभाग से मिली विभिन्न सौगातों के लिए श्री शर्मा के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उज्जैन शहर को अभी और लक्ष्य प्राप्त करने हैं। संस्कृति विभाग द्वारा विक्रम शोध पीठ की स्थापना के बाद अब इसका भव्य और आकर्षक भवन का निर्माण भी किया जाना है। इसके लिए प्रथम दृष्टया कालिदास अकादमी के समीपस्थ जवाहर छात्रावास की भूमि के लिए विचार किया जा रहा है। कृष्णायन संग्रहालय के लिए भी कवायदें शुरू हो चुकी है। उम्मीद है कि श्री शर्मा से संस्कृति के साथ-साथ उच्च शिक्षा की और कई भी सौगात आने वाले दिनों में मिलेगी।

श्रेष्ठ कृतियों के लिए पुरस्कार
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समापन अवसर पर अतिथियों ने संस्कृत की मौलिक कृति के लिए स्थापित अभा कालिदास पुरस्कार 07-08 रायबरेली के फिरोज गाँधी महाविद्यालय के संस्कृत आचार्य एवं कवि प्रशस्यमित्र शास्त्री को दिया गया। इसी प्रकार तीन राज्य स्तरीय राजशेखर, व्यास और भोज पुरस्कार रानी दुर्गावती विवि जबलपुर के संस्कृत विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. रहसविहारी द्विवेदी, सतना के सुद्युम्न आचार्य को और सिवनी के डॉ. दादूराम शर्मा को प्रदान किए गए। श्रेष्ठ चित्र के पुरस्कार रमेश राठौर भावनगर, रमेश आनंद देवास, तेजवंती यूटी बेंगलुरू, भँवरलाल कुमावत जयपुर को प्रदान किए गए। इसी तरह मूर्तिकला के लिए ललितकुमार दुबे पोंडा गाँव को पुरस्कृत किया गया।

नांदी पाठ से शुरुआत
शा उत्कृष्ट कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने नांदी पाठ और कवि कुलगुरु सुमन के कीर्तिगान की प्रस्तुति दी। अतिथियों ने महाकवि कालिदास और पं. सूर्यनारायण व्यास के चित्र पर दीप दीपन और माल्यार्पण किया। पुनर्नवा पत्रिका का विमोचन भी किया गया। संचालन डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने किया।