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प्रकृति का एक अद्भुत चितेरा

पुस्तक समीक्षा

Book review | प्रकृति का एक अद्भुत चितेरा
राजेन्द्र उपाध्याय
ND
चित्रकार परमजीत सिंह पर केंद्रित किताब 'प्रकृति और प्रकृतिस्थ' अनेक दुर्लभ चित्रों से सजी है। चित्रकार परमजीत सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित इस पुस्तक में उनके संषर्घशील जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव रोचक शैली में प्रस्तुत किए गए हैं। पुस्तक में उनकी चित्रकार पत्नी अर्पिता सिंह के जीवन पर भी पर्याप्त रोशनी डाली गई है। इन दोनों पति-पत्नी ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कला का अद्भुत वितान रचा है।

कला समीक्षक और पत्रकार विनोद भारद्वाज ने इस पुस्तक में भारतीय चित्रकला के परिदृश्य पर भी अच्छा प्रकाश डाला है। भारतीय चित्रकला ने किस तरह अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ी है। इसका भी पता चलता है। परमजीत सिंह पिछले 55 वर्षों से एक अद्भुत समर्पण, एकाग्रता और निजी आग्रहों के प्रति एक गहरी निष्ठा से अपनी कला भाषा विकसित करते रहे हैं।

एक समय उनकी कला पर अतियथार्थवादी चित्र भाषा का असर था पर धीरे-धीरे उन्होंने अपने प्रकृति प्रेम को कलाकार की गहरी आध्यात्मिक साधना में रूपांतरित कर दिया है। इस पुस्तक में परमजीत सिंह के जीवन विकास और कला सरोकारों की गहरी छानबीन की गई है।

परमजीत सिंह ने लैंडस्केप कला को एक नई गरिमा और पहचान दिलाई है। पुस्तक में कलाकार और उनके मित्रों स्वजनों के अनेक दुर्लभ चित्र भी हैं। विभिन्न चरणों में किए गए कलाकार के काम का एक प्रतिनिधि चयन है और आजादी के बाद के इस दौर की ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की एक सार्थक कोशिश है जो परमजीत सिंह की कला के विकास में निर्णायक साबित हुआ। सत्तर और अस्सी के दशक में दिल्ली की कला दुनिया में बड़ा आत्मीय माहौल था।

हम सचमुच भाग्यशाली थे कि हुसैन, स्वामीनाथन, सूजा, रामकुमार, हिम्मत शाह, परमजीत सिंह, अर्पिता सिंह, मनजीत बावा सरीखे कलाकारों के साथ इतना अच्छा और आत्मीय समय बिताया।

लेखक के अनुसार परमजीत के चित्रों में एक हरी-भरी दुनिया के नष्ट-भ्रष्ट होने की उदासी, चिंता और आशंका भी है पर एक उम्मीद, एक सपना, रचनात्मकता का एक नया क्षेत्र भी है, इस दुनिया में। इस पुस्तक में एक अद्भुत आश्चर्यलोक है और इस अद्भुत आश्चर्यलोक में खो जाने का अपना सुखद आनंद है।

पहले अध्याय में उनके बचपन की स्मृतियाँ हैं- 13 साल का प्रकृति के प्रति अत्यंत संवेदनशील एक लड़का अपने स्कॉलर दादा के निजी पुस्तकालय में अपनी दुनिया खोज रहा है। दीवारों पर महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू की तस्वीरें हैं। एक तस्वीर अमृता शेरगिल की भी है। नेशनल ज्योग्रॉफिक पत्रिका की फाइलें हैं।

यह लड़का जब चाहे इस पत्रिका के पुराने अंकों को पलटते हुए दुनिया के किसी कोने में भी पहुँच सकता है, कहीं भी प्रकृति को अपनी दुनिया बना सकता है। लड़के के हाथ में एक पुरानी किताब आ जाती है। जिसमें रवींद्रनाथ ठाकुर का एक लैंडस्केप है। लड़का उस छोटे से लैंडस्केप की कॉपी करता है।

यही लड़का आज का सुपरिचित चित्रकार परमजीत सिंह है जिसका जन्म 1935 में हुआ था जिसने भारतीय कला में लैंडस्केप शैली को ही एक नया अर्थ, गरिमा और प्रतिष्ठा दिला दी है। परमजीत पंजाबी सिख है और उनकी पत्नी अर्पिता बंगाली हैं। 9 दिसंबर 1962 को परमजीत-अर्पिता का विवाह हुआ। बहुत सादे ढंग से दिल्ली की सांस्कृतिक दुनिया में यह सरदार और बंगाली का जोड़ा काफी प्रसिद्ध है।

परमजीत सिंह के काम पर कला समीक्षकों की राय भी पुस्तक में दी गई है। अंग्रेजी में ऐसी अच्छी कलात्मक किताबें कला पर निकलती रहती हैं लेकिन हिंदी में ऐसा सुंदर प्रकाशन पहली बार हुआ है और इसका स्वागत होना चाहिए।

पुस्तक : प्रकृति और प्रकृतिस्थ
लेखक : विनोद भारद्वाज
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 600 रुपए

विशेष टिप्पणी
मैंने विनोद भारद्वाज की परमजीत सिंह की कला पर 'प्रकृति और प्रकृतिस्थ' सरीखी पिछले लगभग दो दशकों में हिंदी में कोई कला पुस्तक नहीं देखी है। इस पुस्तक में शब्दों के सुंदर मेल और ऐतिहासिक महत्व की संदर्भ-सामग्री के अलावा दुर्लभ चित्रों की भी अद्भुत दुनिया है। - सुबोध गुप्ता, समकालीन चर्चित कलाकार