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Written By WD

दही : शीतलता का संगम

दही : शीतलता का संगम -
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दैनिक आहार में दही का प्रयोग विभिन्न तरीके से किया जाता है। दही के सेवन में कुछ सावधानियाँ बरतना जरूरी व स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। दही में गुण व अवगुण दोनों होते हैं, दही खाने से जहाँ लाभ होता है, वहीं कई परिस्थितियों में हानि भी होती है।

दही का सर्वाधिक प्रयोग भोजन के साथ खाने और लस्सी के रूप में पीने में किया जाता है। चाट, कचोरी, समोसे आदि के साथ भी खट्टी चटनी और दही का प्रयोग किया जाता है।

दही-बड़े में तो दही होता ही है, प्रायः उत्तर भारत और पंजाब में सुबह के नाश्ते में पराठे के साथ भी दही का सेवन किया जाता है। दही का उपयोग उचित ढंग से किया जाए तो यह गुणकारी है, अन्यथा अवगुण भी करता है।

दही का उपयोग

* स्वास्थ्यवर्धक भोजन के रूप में।
* डायटिंग करने वालों के लिए कम फैट वाले नाश्ते के रूप में।
* घरेलू दवा के रूप में, जो बुढ़ापे से लेकर उदर वायु यानी पेट की गैस तक का कारगर इलाज है।
* दूध के पूरक के रूप में, जो दूध की अपेक्षा आसानी से पचता है और ज्यादा समय तक खराब भी नहीं होता।

अच्छे दही की पहचान : अच्छा दही इतना ठोस होता है कि पानी की तरह बहता नहीं और इसे चम्मच से टुकड़ों में काटा जा सकता है। काटने पर इसमें से पानी रिसकर अलग हो जाता है। अच्छा दही दानेदार नहीं, बल्कि चिकना होता है। इसे मथने पर मक्खन निकलता है और यह तरल रूप में होकर मट्ठा या छाछ बन जाता है।

दही में दूध के सारे पोषक तत्व तो होते ही हैं, कुछ तत्व और जुड़ जाते हैं जैसे उच्चस्तरीय प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट और फेट। दही में विटामिन बी भी दूध की अपेक्षा ज्यादा होता है, खासकर फोलिक एसिड और राबोफ्लेविन। दूध की अपेक्षा दही आसानी से पच जाता है, एक घंटे में कच्चा दूध 32 प्रतिशत ही पचता है, लेकिन दही 91 प्रतिशत पच जाता है।

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दही के गुण : दही गर्म अग्निदीपक, स्निग्ध, किंचित कसैला, भारी, पाक में खट्टा और श्वास, पित्त, रक्त विकार, सूजन, चर्बी तथा कफ बढ़ाने वाला होता है। यह मूत्र कृच्छ, जुकाम, शीत, विषम ज्वर, अतिसार अरुचि और दुर्बलता, इन सभी रोगों में हितकारी और बलवीर्यवर्द्धक होता है।

दही के भेद : आयुर्वेद ने दही के पाँच भेद बताए हैं- मंद, स्वादु, स्वाद्वम्ल, अम्ल और अत्यम्ल। इनके गुणों में थोड़ा-थोड़ा अन्तर होता है, जिसकी संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है-

  रात में दही नहीं खाना चाहिए, यदि खाना ही हो तो बिना घी या शकर डाले या मूँग की दाल या शहद या आँवला डाले न खाएँ। गर्म करके न खाएँ। घी या शकर मिलाकर दही खाने से रक्तपित्त और कफ विकार नहीं होते।      
मन्द दही : दूध के माफिक हल्का गाढ़ा और कम पानी वाला होता है। यह मल, मूत्र, त्रिदोष और दाह को बढ़ाता है अतः ऐसे दही का सेवन नहीं करना चाहिए।

स्वादु दही : यह दही खूब गाढ़ा, स्वादिष्ट और खटाईरहित होता है, इसलिए इसे स्वादु कहा जाता है। यह अत्यंत रतिशक्तिवर्द्धक, चर्बी व कफ बढ़ाने वाला, पाक में मधुर तथा वात और रक्तपित्त को नष्ट करने वाला होता है। इस दही का सेवन सर्वोत्तरहता है।

स्वाद्वम्ल दही : यह खटमिट्ठा, गाढ़ा, कसैला और कम पानी वाला होता है। आमतौर से यह दही बाजार में मिलता है।

अम्ल दही : यह मिठासरहित, खट्टा, अग्नि प्रदीप्त करने वाला, पित्त और कफ बढ़ाने वाला होता है। इसका सेवन नही करना चाहिए।

अत्यम्ल दही : जिसको मुँह में रखते ही खटाई के कारण रोएँ खड़े हो जाएँ, दाँत खट्टे हो जाएँ और गले में जलन होने लगे ऐसे, दही को अत्यम्ल दही कहते हैं। यह अग्निवर्द्धक तथा रक्त विकार और वातपित्त कफ को बढ़ाने वाला होता है।

दही के पोषक तत्व : गाय के दूध से बने 100 ग्राम दही में निम्नलिखित तत्व पाए जाते हैं- प्रोटीन : 3.1 ग्राम, फैट : 4.0 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट : 3.0 ग्राम, एनर्जी : 60 किलो कैलोरी, कैल्शियम : 149 माइक्रोग्राम, फास्फोरस : 93 माइक्रोग्राम, फोलिक एसिड : 12.5 ग्राम।

दही के गुण

* रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाता है, क्योंकि दही में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के प्रभाव से शरीर में मौजूद नेचुरल किलर कोशिकाओं की कार्यशीलता बढ़ती है।

* दही में कैंसर से जूझने की क्षमता होती है, खासकर बड़ी आँत के कैंसर के मामले में। इटली के शोधकर्ताओं ने हाल ही में पाया है कि दही का जीवाणु समूह महिलाओं के स्तन कैंसर में भी फायदेमंद है। यह स्तन में कैंसर की कोशिकाओं को फैलने से रोकता है।

* एथेरोस्केलेरोसिस और कोलेस्ट्रॉल स्तर को कंट्रोल करता है, जिससे हृदय स्वस्थ रहता है।

सावधानी : रात में दही नहीं खाना चाहिए, यदि खाना ही हो तो बिना घी या शकर डाले या मूँग की दाल या शहद या आँवला डाले न खाएँ। गर्म करके न खाएँ। घी या शकर मिलाकर दही खाने से रक्तपित्त और कफ विकार नहीं होते। यदि रक्तपित्त या कफ विकार हो तो दही खाना ही नहीं चाहिए। दही में थोड़ा पानी मिला लेने से छाछ के गुण पैदा हो जाते हैं।