मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By WD

खाना भी हो गया है ग्लोबल

खाना भी हो गया है ग्लोबल -
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महानगरों में धड़ल्ले से खुल रही खान-पान की विदेशी दुकानें, टीवी और कॉल सेंटरों के कल्चरल प्रभाव ने युवाओं की खान-पान को लेकर पसंद को बिलकुल बदलकर रखा दिया है। यह बदलाव सबसे ज्यादा नाश्ते और स्नैक्स के संबंध में देखा जा सकता है। दोपहर और रात के खाने में भले युवाओं को भी अपने माता-पिता की पसंद का पारंपरिक भोजन यानी दाल, सब्जी, चावल, दही, पापड़, रोटी आदि के खाने में ज्यादा परहेज न हो, लेकिन जब बात नाश्ते या शाम के स्नैक्स की आती है तो ज्यादातर शहरी युवाओं को पारंपरिक चीजें बिलकुल पसंद नहीं आतीं। ब्रेक फास्ट तो खासतौर पर युवा मॉडर्न और स्टाइलिश ही चाहते हैं।

यही कारण है कि महानगरों में आजकल थाई, चाइनीज, इटैलियन, स्पेनिश और मैक्सिकन रेस्तराँओं की न केवल चेन लंबी होती जा रही है बल्कि तमाम देशी रेस्तराँ भी इन सब देशों की डिशें परोसने लगे हैं, जिसके चलते युवाओं के सुबह-शाम के नाश्ते खासतौर पर ट्रेंडी और ग्लोबल हो गए हैं। यही वजह है कि नई पीढ़ी नाश्ते में पराठे, पूड़ी, पकौड़े और हलवा को भूलती जा रही है और उसकी जगह विभिन्न तरह के नूडल्स, बर्गर, कई किस्म की सैंडविच, रोलक्रीम, फ्रूट सैलेड विद आइसक्रीम, पास्ता, मंचूरियन जैसी डिशेज पसंद करती है। जबकि लंच और डिनर में पिज्जा एक बड़ी युवा पसंद बनकर उभर रहा है।

जिन घरों में एक साथ तीन-तीन पीढ़ियों का अस्तित्व है, वहाँ तो रसोई की मुखिया को नाश्ते से लेकर लंच और डिनर तक में अलग-अलग पसंद के बीच तालमेल बनाने के लिए भारी कदमताल करनी पड़ती है। क्योंकि पहली पीढ़ी के शारीरिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जहाँ दही, फ्रूट्स, दलिया, कॉर्नफ्लैक्स, अंकुरित चनों और दालों पर आश्रित रहना पड़ता है, वहीं दूसरी पीढ़ी की पसंदगी की सूची में अभी भी पराठे, पकौड़े, ब्रेड-मक्खन जैसी चीजें मौजूद हैं।

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जबकि तीसरी यानी युवा पीढ़ी जो ग्लोबल हो चुकी है। उसे न तो यह नाश्ता सुहाता है और न उसे सर्व करने का अंदाज। उसकी फेहरिस्त में तरह-तरह के सूप्स हैं, तरह-तरह के नूडल्स हैं, पास्ता है, ग्रिल्ड सैंडविच है और फल भी हैं तो एक अलग अंदाज में कटे और परोसे हुए। सर्दी हो या गर्मी, फ्रूट सेलेड विद आइसक्रीम तो इस पीढ़ी को चाहिए ही।

यह पीढ़ी दूध तो पीती है लेकिन सादा नहीं बल्कि स्टाइलिश। लेकिन इन सबके बीच एक बात यह भी सच है कि आज की इस जनरेशन को कुछ भी खिलाया जा सकता है। बस अंदाज होना चाहिए। अगर कटलेट ब्रेकफास्ट टेबल पर आए तो वह अकेले नहीं आना चाहिए, बल्कि उसके ऊपर कैबेज की बारीक कतरनें, टमाटर के पतले कटे स्लाइस और चिप्स या कुरकुरे भी होने चाहिए।

सैंडविच हो तो उसमें खीरे व टमाटर के साथ मक्खन की परत भी होनी जरूरी है।

नूडल्स ने न केवल बच्चों के लंच पैक्स में अपना जलवा दिखाया है बल्कि हकीकत यह है कि किशोर और युवा पीढ़ी भी अब इसकी गिरफ्त में आ गए हैं। नूडल्स में मौजूद सौंधे और चटपटे फ्लेवर ने उन्हें इसका दीवाना बना रखा है। यही वजह है कि आज युवाओं की नाश्ते की टेबल पर भी इन्हें धड़ल्ले से देखा जा सकता है।

इन सबके साथ एक बात और खास है कि ब्रेकफास्ट में ब्रेक न आए। यह सभी फूड एक्सपर्ट की सलाह है, क्योंकि इसी से शरीर को पूरे दिन के लिए एनर्जी मिलती है।
कितना जरूरी नाश्ता

अच्छी सेहत के लिए न केवल नियमित रूप से नाश्ता करने की जरूरत होती है बल्कि इसमें शक्तिवर्द्धक खाद्य पदार्थों का समावेश होना भी जरूरी है। ऐसा न होने से हालाँकि युवकों को इसके दुष्प्रभावों का तुरंत पता नहीं चलता,लेकिन कुछ समय के अंतराल में हृदय को हानि पहुँचने लगती है। क्योंकि आधुनिक परिवेश में युवकों को अधिक मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। ऐसे में ध्यान रखें-

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* अपने नाश्ते पर एक नजर डालिए और फिर उसके गुणों के आधार पर आकलन कीजिए कि आखिर आप किस तरह का भोजन ले रहे हैं। क्या आपके नाश्ते में फल,सब्जी,अनाज व दूसरे पौष्टिक पदार्थों का समावेश है? ये आपको कितनी कैलोरी प्रदान कर रहे हैं,इसे भी चेक करें।

* आमतौर पर 40-45 वर्ष की आयु के बाद चिकित्सक लोगों को घी,मक्खन व दूसरे वसायुक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा बहुत कम कर देने या बिलकुल बंद कर देने का परामर्श देते हैं। लेकिन अगर आपको इस उम्र में भी चिकित्सक के परामर्श को नहीं सुनना और घी,मक्खन आदि का सेवन करना है तो युवावस्था में खूब शारीरिक श्रम करें। घी,मक्खन के सेवन से हानि की आशंका तब अधिक बढ़ती है जब कोई व्यक्ति शारीरिक श्रम बिलकुल नहीं करता।

* हृदय रोगों से सुरक्षा के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों का नाश्ते में समावेश सुनिश्चित करना चाहिए। क्योंकि नाश्ता दिनभर की भोजन सामग्री मात्रा ही नहीं दिशा भी तय करता है।

* किसी भी चिकित्सक व न्यूट्रीशनिस्ट के अनुसार भोजन में शारीरिक शक्ति व रोग निरोधक क्षमता के लिए सभी पौष्टिक तत्व संतुलित मात्रा में होने चाहिए। अपनी रुचि व स्वाद के लिए इसमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जा सकता है,लेकिन इतना अधिक नहीं कि किसी एक खाद्यपदार्थ की मात्रा इतनी कम न कर दी जाए कि उसकी अल्प मात्रा के कारण शरीर को हानि पहुँचने लगे।

* याद रखें दुनिया के हर क्षेत्र के भूगोल के अनुसार भोजन की परंपरा विकसित होती है और वह उसी मौसम तथा जलवायु के अनुकूल होती है। इसलिए विदेशी व्यंजनों पर महज स्वाद के लिए लट्टू न हों। याद रखें वे आपके स्वास्थ्य के प्रतिकूल भी हो सकते हैं।